एक दिन एक रंगीन तितली मंडराती हुई फूल से बोली, ”क्या मुझे अपना पराग (रस) दोगे?
मैं काफी प्यासी हूं?”
फूल ने उत्तर दिया, ”जरूर दूंगी मगर मुझे इसके बदले क्या मिलेगा?
मैं न जाने कब से एक ही जगह पर अटक कर रह गया हूं। मैं भी तुम्हारी तरह उड़ना चाहता हूं और दुनिया देखना चाहता हूं। कुछ समय के लिए क्या मुझे अपने पंख दे सकोगी?”
तितली भी आराम करना चाहती थी ताकि अपनी थकान मिटा सके। फूल ने पंखों को लगाया और हवा की ओर देखने लगा। पहले तो वह डर गया फिर वह झाड़ियों के ऊपर उड़ा।
उसके बाद उसे आनंद आने लगा। फिर थक जाने के बाद वह एक लकड़ी के तख्ते पर जाकर बैठ गया।
उसने देखा कि एक बड़ा-सा मेंढक उसकी ओर अपनी जीभ लपलपा रहा था। फूल उसी समय वहां से उड़ गया। फूल ने सोचा कि वास्तव में उसकी जान बच गई। उसने सोचा कि वह अन्य फूलों से बात करेगा, जो वहीं थे।
इतने में कुछ लड़के, जो वहां पर पिकनिक मना रहे थे, आपस में बात करने लगे।
उनमें से एक बोला, ”मुझे यह सुंदर तितली पकड़नी है।”
फूल डर के मारे उड़ कर वापस अपनी जगह पहुंच गया जहां तितली उसी का इंतजार कर रही थी। फूल ने तुरंत पंख उतारकर तितली को लौटा दिए और कहा, ”जब भी आप प्यासी हों, आकर मेरा पराग ले सकती हैं मगर निश्चित तौर पर मैं आपके पंख फिर से नहीं लेना चाहूंगा। किसी और का रूप धारण करना बहुत खतरनाक है।”