रायपुर : राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में आज तीसरे दिन सुबह से पारम्परिक त्यौहार अनुष्ठान, फसल कटाई एवं अन्य पारम्परिक विधाओं पर आधारित प्रतियोगिता को आगे बढाया गया। इस श्रेणी के प्रतियोगिता की शुरूआत तमिलनाडु की कोथा लोक नृत्य के साथ हुई। इस दौरान कलाकारों की लयबद्ध प्रस्तुति ताल, थाप और संगीत से दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे। दूसरे क्रम में महाराष्ट्र के द्वारा लिंगों, दमनदीव एवं नागरहवेली-तारपा, मेघालय द्वारा बंगला और छत्तीसगढ़ द्वारा कर्मा, कर्नाटक-लंबाड़ी, लक्ष्यद्वीप-बंदिया, अण्डमान निकोबार-निकोबार नृत्य, राजस्थान-सहरिया स्वांग, झारखण्ड- छाऊ और गुजरात-वासवा होली नृत्य, पश्चिम बंगाल-संथाली, मणिपुर-खरिंग खरग फेचक, ओड़िशा-डालखाई, नागालैण्ड-माकू हे निची, मध्यप्रदेश द्वारा दंडार एवं अन्य राज्यों द्वारा लोक नृत्य की प्रस्तुति की हुई। इस दौरान छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य झारखण्ड के कलाकारों द्वारा छाऊ नृत्य ने दर्शकों की खूब तालियां बंटोरी।
छाऊ नृत्य भारतवर्ष के तीन पूर्वी राज्यों में लोक और जनजातीय कलाकारों द्वारा किया जाने वाला लोकप्रिय नृत्य है। जिसमें मार्शल आर्ट और करतबों की भरमार रहती है। इस तीन राज्यों में छाऊ नृत्य संबंधित क्षेत्रों के आधार पर तीन नामों से जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में पुरुलिया छाऊ, झारखंड में सराइकेला छाऊ, और उड़ीसा में मयूरभंज छाऊ, इसमें से पहले दो प्रकार के छाऊ नृत्यों में प्रस्तुति के अवसर पर मुखौटों का उपयोग किया जाता है, जबकि तीसरे प्रकार में मुखौटे का प्रयोग नहीं होता। इस नृत्य में रामायण महाभारत और पुराण की कथाओं को कलाकारों द्वारा मंच पर प्रस्तुत किया जाता है। इसमें गायन और संगीत का प्रमुख स्थान है, किन्तु प्रस्तुति के समय लगातार चल रही वाद्य संगीत की विशेषता प्रधान रहती है। नृत्य में प्रत्येक विषय की शुरुआत नृत्य एक छोटे से गीत से होती है, जिसमें उस विषय वस्तु का परिचय होता है। नृत्य के विषय वस्तु में सम्मिलित होने वाले सभी पात्रों का परिचय एक छोटे से गायन के आधार पर दिया जाता है, जो अगले विषय के शुरू होने तक लगातार चलते रहता है। फिर दूसरा पात्र आता है उसका परिचय दिया जाता है। छाऊ अपनी ओजस्विता और शक्ति की परिपूर्णता के लिए विशेष प्रसिद्ध है। जिसमें नर्तकों द्वारा मार्शल आर्ट्स का बखूबी इस्तेमाल करते हुए अपने शरीर में विविध तरह की मुद्राओं और भंगिमाओं उद्भूत करते हुए दर्शकों को सम्मोहित करने का गुण रहता है। छाऊ नृत्य केवल पुरुष कलाकारों द्वारा ही किया जाता है। छाऊ ने अपने कथावस्तु, कलाकारों की ओजस्विता और चपलता और संगीत के आधार पर न सिर्फ भारत देश समेत विदेशों में भी अपनी खास पहचान बनाई है।
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