कुल्लू: भगवान रघुनाथ की रथयात्रा के साथ अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की शुरुआत हो गई है. शुक्रवार को आयोजित रथयात्रा में कुल्लू जिले के विभिन्न इलाकों से आए 200 से अधिक देवी देवताओं ने रथयात्रा में हिस्सा लिया. वहीं, प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर भी मौजूद रहे. भगवान रघुनाथ के रथ को सभी धर्मों के लोगों ने खींचकर रथ मैदान से उनके अस्थायी शिविर ढालपुर मैदान में पहुंचाया. इस दौरान हजारों लोग जय श्री राम के जयघोष लगा रहे थे और पूरा क्षेत्र देव ध्वनि से गूंज उठा.सात दिनों तक चलने वाले कुल्लू दशहरा में इस बार 200 से अधिक देवी-देवता पहुंचे हैं. बाहरी राज्यों से आए पर्यटकों ने भी भव्य देव मिलन का नजारा देखा. इससे पहले दशहरा उत्सव में ढालपुर पहुंचे सैकड़ों देवी-देवताओं ने भगवान रघुनाथ के दरबार में हाजिरी लगाई. शुक्रवार सुबह से ही रघुनाथ की नगरी सुल्तानपुर में देवी-देवताओं के आने का सिलसिला जारी रहा. कड़ी सुरक्षा के बीच रघुनाथ जी की रथ यात्रा में सैकड़ों देवताओं की मौजूदगी में हजारों लोगों ने रथ को खींचा.
रथ यात्रा में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने भी भाग लिया. ढालपुर में आयोजित रथ यात्रा में सोने-चांदी से जड़ित देवी-देवताओं के रथों को देखकर ऐसा लग रहा था कि मानों स्वर्गलोक से देवता धरती लोक पर उतर आए हों. ढालपुर में सोने-चांदी के आभूषणों और रंग बिरंगे परिधानों से सजे रघुनाथ जी के रथ में भगवान रघुनाथ, लक्ष्मण, सीता माता तथा हनुमान की प्रतिमाओं को विराजमान किया गया. इसके बाद परंपरागत तरीके से पूजा-अर्चना के बाद सभी देवी-देवताओं ने रघुनाथ जी के रथ के आगे हाजिरी भरी और पुरातन वाद्य यंत्रों की ध्वनि से देवभूमि गूंज उठी.
विशेष पूजा अर्चना के बाद रथ यात्रा आरंभ हुई. इस भव्य रथ यात्रा को देखने के लिए जहां प्रदेश भर के हजारों लोग आए थे. सभी देवी-देवताओं ने भी रथ यात्रा में भाग लेने के बाद अपने अस्थायी शिविरों के लिए प्रस्थान किया. लिहाजा, ढालपुर मैदान में सैकड़ों देवी-देवता विराजमान हो गए हैं तथा कुल्लू शहर स्वर्ग सा प्रतीत होने लगा है. अस्थायी कैंप में भी हजारों लोग दर्शन के लिए आएंगे. यहां पर रघुनाथ जी की सात दिनों तक विशेष पूजा अर्चना होती रहेगी. इसके अलावा हर दिन देवी-देवता रघुनाथ जी के पास हाजिरी भरते रहेंगे. विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे देवी-देवताओं ने भगवान रघुनाथ से देवमिलन किया. इस दौरान ढोल, नगाड़ों व नरसिंगों की स्वरलहरियों से पूरी घाटी गूंज उठी.
इससे पहले देवी-देवता राजमहल में भी राजपरिवार को आशीर्वाद देने गए. भगवान रघुनाथ के दरबार में हाजिरी भरने के बाद देवता अपने अस्थायी शिविरों की ओर लौटे. देवी-देवताओं की उपस्थिति से कुल्लू घाटी देवलोक में तब्दील हो गई है.