इंदौर ।
लोहे और सरिये के दामों में बेलगाम तेजी का सिलसिला जारी है। शनिवार को गांधी जयंती पर मंडियों की छुट्टी के बावजूद दाम में तेजी का दौर जारी रहा। मिलों की ओर से दामों में 200 से 300 रुपये का इजाफा कर दिया गया। इंदौर के बाजार में ब्रांडेड टीएमटी सरिया के दाम में शनिवार को 60,000 रुपये के पार पहुंच गए। बड़े ब्रांड 62000 रुपये टन पर सरिया बेच रहे थे। लोहे की इस तेजी से रियल इस्टेट कारोबार से लेकर घर बना रहे आम लोग तो परेशान है ही सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर भी काम रोकने का खतरा मंडरा रहा है। कारोबारियों ने बेतहाशा तेजी पर लगाम के लिए केंद्रीय इस्पात मंत्रालय से हस्तक्षेप की मांग भी कर दी है।
सरिया कारोबारी हुजैफा लोखंडवाला के अनुसार 30 सितंबर को तो एक दिन में दामों में लगभग तीन हजार रुपये की तेजी दर्ज हुई। बीते सात दिनों का हिसाब लगाया जाए तो सरिए के दाम सप्ताहभर में 6 से 7 हजार रुपये तक बढ़ गए हैं। दाम अचानक बढ़ने से लोग घबराते हैं शुरू में बिक्री पर असर पड़ता है। हालांकि बाद में तेजी को देख खरीदी तेज हो जाती है। तेजी का कारण चीन के संकट से लेकर कोयला महंगा होना बताया जा रहा है। हालांकि असल कारण क्या है कोई नहीं जानता। एक मिल दाम बढ़ाती है और दूसरी-तीसरी उसके पीछे दाम बढ़ाकर तेजी को हवा दे देती है। इधर लोहा कारोबारियों ने दामों पर नियंत्रण के लिए केंद्रीय इस्पात मंत्रालय को पत्र लिख है।
कारोबारी और मालवा चेंबर आफ कामर्स के उपाध्यक्ष मोहम्मद पीठावाला के अनुसार चेंबर की ओर से केंद्रीय इस्पात मंत्रालय को ज्ञापन भेजा जा रहा है। दरअसल चीन में कोयले की कमी से भारत से बड़े पैमाने पर कोयला निर्यात हो रहा है। इससे स्थानीय इस्पात मिलों के लिए भी कोयला महंगा हो गया है। नतीजा लोहे के दाम बढ़ रहे हैं। ऐसे में जब कोरोना संकट थमा है। देश में निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर से लेकर वाहन उद्योग को गति मिली है। ऐसे में लोहे के दाम बढ़ते है तो उद्योगों की प्रगति और उत्पादन पर विपरीत असर पड़ने लगता है।
अटकेंगे सरकारी प्रोजेक्ट
सरकारी कांट्रेक्टर संदीप असाटी के अनुसार किसी भी प्रोजेक्ट में 30 से 35 प्रतिशत लागत सरिये की होती है। सरकारी प्रोजेक्ट में सरिये के लिए 62 रुपये अधिकतम मूल्य तय कर रखा है। कांट्रेक्ट लेने के लिए इससे कम ही प्रस्तावित करना होता है। यानी निर्माता एजेंसी 56-57 रुपये भाव पर ठेका लेता है। इसमें 8 से 10 रुपये प्रति किलो सरिया बांधने की लागत भी शामिल है। अब बड़े दामों के बाद स्थिति ये है कि कांट्रेक्टरों को जेब से पैसा लगाना होगा। ऐसे संभव नहीं है। लिहाजा सरकारी प्रोजेक्ट अटकने लगेंगे।
रोलिंग मिले उत्पादन बंद करेंगी
इंदौर में 30 रोलिंग मिले चल रही है। रोलिंग मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सतीश मित्तल के अनुसार दाम बढ़ने सेे मिलों को फायदा नहीं उलटा नुकसान हो रहा है। मिलों का बर्निंग लास बढ़ गया है। पहले जो कोयला 8000 रुपये टन था अब 22000 रुपये टन खरीदना पड़ रहा है। आने वाले दिनों में 5 से 6 मिले मजबूर होकर अपना उत्पादन रोक देंगी।