अगर राजीव गांधी के मृत्यु के ठीक पहले उनके दौरे की योजना नहीं बदलती तो शायद वे आज जीवित होते। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी राजनांदगांव के राजा शिवेंद्र बहादुर के चुनाव प्रचार के लिए 21 मई 1991 को राजनांदगांव आने की सहमति दे दी थी। उनकी सभा-रैली की पूरी तैयारियां कर ली गईं थीं। लेकिन अचानक प्लान बदला और वे तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर चले गए, जहां बम ब्लास्ट कर उनकी हत्या कर दी गई। यदि मृत्यु के पहले उनके दौरे का प्लान नहीं बदलता तो आज हम सबके बीच होते।
इसके पहले राजीव गांधी तत्कालीन सांसद शिवेंद्र बहादुर सिंह के बुलावे पर लोकसभा क्षेत्र में पहुंचे थे, उन्होंने कवर्धा के भोरमदेव से बैगा प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। 80 के दशक में दबंग सांसद शिवेंद्र बहादुर सिंह के बुलावे पर देश के दो-दो प्रधानमंत्री संसदीय क्षेत्र पहुंचे और यहां के लोगों ने करीब से उन्हें देखा। सांसद सिंह के बुलावे पर स्वयं पीएम इंदिरा गांधी चुनाव प्रचार के लिए राजनांदगांव के मानपुर पहुंचीं थीं। जहां उन्होंने आदिवासी बहुल मानपुर में रोड शो भी किया था।
तीन बार सांसद रहे राजनांदगांव लोकसभा से खैरागढ़ राजपरिवार के युवराज शिवेंद्र बहादुर सिंह ने 1955 से लेकर 1965 तक राजीव गांधी के साथ दून स्कूल में पढ़ाई की थी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के क्लासमेट होने के चलते उनसे सीधा संपर्क रहा। यही कारण है कि अविभाजित मध्यप्रदेश में काफी पिछड़ा माने जाने वाले छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में केंद्र के दो चर्चित प्रधानमंत्री राजीव गांधी और इंदिरा गांधी चुनावी कमान संभालने पहुंचे थे।
1982 में इंदिरा गांधी ने मानपुर में किया था रोड शो
शिवेंद्र बहादुर के बेटे भवानी बहादुर सिंह बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 1982 में मानपुर पहुंची थीं। उन्होंने तब सांसद शिवेंद्र बहादुर सिंह के साथ आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ने वाले लालश्याम शाह से उन्होंने मुलाकात की। दोनों के आग्रह पर पीएम इंदिरा गांधी ने मानपुर में रोड शो भी किया था। इंदिरा का हेलीकाॅप्टर भिलाई में लैंड हुआ था, जहां से वे सड़क के रास्ते जिले के अंतिम छोर यानी मानपुर तक पहुंची थीं।
1988 में राजीव ने भोरमदेव में शुरू किया था बैगा प्रोजेक्ट
प्रधानमंत्री राजीव गांधी राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र में पहुंचे थे। राजीव ने 1988 में भोरमदेव में बैगा प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। भारेमदेव में बड़ी सभा हुई थी, जिसमें बड़ी तादाद में बैगा मौजूद थे। यहीं से प्रदेश में बैगा जनजाति को संरक्षण देने का काम शुरू हुआ था।