सरकार गठन को लेकर भिड़े तालिबान के दो गुट, महिलाओं के लिए नया फरमार जारी

अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान का अलग रंग दिखने लगा है। तालिबान नेतृत्व दुनिया के सामने एकता दिखा रहा है लेकिन अब इसकी अंदरूनी कलह धीरे-धीरे सामने आ रही है। जिसके बाद तालिबान के सरकार गठन की प्रक्रिया आखिरी चरण में होने और जल्द ही इसे पूरा करने के दावों पर सवाल खड़े होने लगे हैं।

खबर है कि सरकार बनाने को लेकर तालिबान के दो धड़ों में ही फूट पड़ गई है। अफगानिस्तान में मुल्लाह हिबतुल्लाह अखुंदजादा के साथ सरकार बनाने को लेकर तालिबान नेतृत्व और हक्कानी नेटवर्क में खींचतान चल रही है। दरअसल, तालिबान की स्थापना करने वाले मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब की चाहत है कि कैबिनेट में राजनीति से जुड़े लोगों की बजाय सेना से जुड़े लोगों को लाया जाए। वहीं, तालिबान के सह-संस्थापक नेता मुल्लाह बरादर की इच्छा ठीक इसके विपरीत है।

रिपोर्ट के मुताबिक मुल्लाह याकूब ने खुलेआम कहा है कि जो लोग दोहा में शाही तरीके से जी रहे हैं वे अमेरिकी सेना के खिलाफ देश में जिहाद करने वाले लोगों को नियम-कायदे न सिखाएं। बता दें कि मुल्लाह बरादर और शेर मोहम्मद स्तेनकजई ही दोहा से तालिबान की राजनीति का नेतृत्व करते हैं और इन दोनों ने ही अमेरिकी दूत जलमे खालीजन, पाकिस्तान और ब्रिटेन के साथ बातचीत की थी।

मौजूदा समय में काबुल पर नियंत्रण रखने वाले हक्कानी आतंकी नेटवर्क और मुल्लाह याकूब के बीच तनाव साफ दिख रहा है। दरअसल, यह खींचतान गैर-पश्तून तालिबान और कंधार धड़े के बीच है, ठीक वैसे ही जैसे पश्तून और गैर-पश्तूनों के बीच फासला होता है। तालिबान में जहां हर धड़ा अपने फायदे को लेकर लड़ रहा है, वहीं शीर्ष नेतृत्व को इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं यह कलह सार्वजनिक न हो जाए और आपस में ही अलग-अलग धड़ों की बीच उसी तरह हिंसा न छिड़ जाए, जैसे 1990 के दशक में देखने को मिलती थी।

तालिबान आतंकवादी नित नए प्रतिबंधों की घोषणा कर रहें हैं। नए फरमान में आंतकवादियों ने महिलाओं के अकेले यात्रा पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया है। यात्रा के दौरान परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ होना जरूरी होगा। अफगानों को भागने में मदद करने वाले कुछ निजी समूहों ने कहा कि वे लोगों को सलाह दे रहे हैं कि वे देश की सीमाओं तक पहुँचने की कोशिश न करें जब तक कि उन्हें पता न हो कि तालिबान उनका पीछा कर रहे हैं।

पूर्व अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि काबुल हवाई अड्डे से अमेरिकी निकासी समाप्त होने के बाद से तालिबान ने उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान की ओर उत्तर की ओर जाने वाली मुख्य सड़क पर अधिक चौकियां स्थापित की हैं। अमेरिका भले ही अफगानिस्तान को अलविदा कह चुका हो लेकिन वह अपने पीछे 8.5 करोड़ डॉलर के हथियार और गोला-बारूद छोड़ गया है, जिसके सहारे तालिबान के अलग-अलग धड़े आपस में अगले 10 सालों तक लड़ सकते हैं। हालांकि, तालिबान के आगे अभी सबसे बड़ा संकट याकूब और हक्कानी नेटवर्क के बीच मतभेद हैं। ये मतभेद आगे चलकर संगठन को अफगानिस्तान समर्थक और पाकिस्तान समर्थक गुटों में बांट सकते हैं।

अमरीकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी होते ही तालिबान ने अपना क्रूर रंग दिखाना शुरू कर दिया है। अमरीका के लिए काम करने वालों को चुन-चुन कर मारा जा रहा है। देश के दूसरे सबसे बड़े शहर कंधार में तालिबान के हाथ लगे अमरीकी हैलीकॉप्टर ‘ब्लैक हॉक’ को उसके लड़ाके उड़ाते दिखे। उन्होंने एक शख्स को मारकर हैलीकॉप्टर से लटका लिया और काफी देर तक उड़ान भरते रहे। कई पत्रकारों ने तालिबान की क्रूरता का यह वीडियो ट्विटर पर शेयर किया है। यह व्यक्ति अमरीका के लिए काम करता था। अमरीका के लिए काम करने वाले ऐसे ही एक व्यक्ति की जीभ काट दी गई है। कई अन्य मामलों में ऐसे ही लोगों के घरों के बाहर पोस्टर चिपका दिए गए हैं।

एक तरफ जहां तालिबान अपने फैसले खुद लेने के पक्ष में है तो वहीं हक्कानी नेटवर्क की टेरर फैक्ट्री पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से मिली मदद के जरिए ही चलती है। यहां तक कि खुफिया एजेंसी के रिटायर्ड अफसर तक हक्कानी नेटवर्क के जरिए आतंक फैलाने का काम कर रहे हैं।

अफगानिस्तान से अमेरिकी से पाकिस्तान ने मंगलवार को अफगानिस्तान से आने वाले अमरीकी बलों को इस्लामाबाद में लंबे समय तक मौजूद रहने की अनुमति देने की संभावना से इंकार कर दिया और कहा कि वे देश में सीमित अवधि तक ही रहेंगे। गृहमंत्री शेख राशिद अहमद ने इस्लामाबाद हवाई अड्डे पर अमरीकी बलों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर आने के बाद यह प्रतिक्रिया दी है।

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने कहा कि अफगानिस्तान में लगभग 1 करोड़ बच्चों को मानवीय सहायता की सख्त जरूरत है और इसके लिए करीब 20 करोड़ अमरीकी डॉलर की सहायता की अपील की गई है। संघर्ष और असुरक्षा के बीच बच्चे ऐसे समुदायों में रह रहे हैं जो सूखे के कारण पानी का संकट झेल रहे हैं। उनके पास पोलियो सहित जीवन रक्षक टीके नहीं हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जो बच्चों को जीवनभर के लिए पंगु बना सकती है। कई बच्चे कुपोषित और कमजोर हैं। ये बच्चे स्वस्थ और संरक्षित बचपन के अपने अधिकार से वंचित हैं।

इतिहासकार एवं लेखक विलियम डेलरिम्पल ने चेताया है कि तालिबान को कम नहीं आंकना चाहिए, हालांकि इस बात में कोई शक नहीं है कि तालिबान को पाकिस्तान ने प्रशिक्षित किया तथा उसकी आर्थिक मदद की है लेकिन अब यह संभावना भी है कि वह अपने आका (पेमास्टर) से ही आजादी का ऐलान कर सकता है। डेलरिम्पल ने कहा कि अमरीका का अफगानिस्तान से सैनिकों को वापस बुलाने का निर्णय ‘रणनीतिक रूप से गलत’ और ‘भावनात्मक रूप से सुविचारित नहीं’ है। डेलरिम्पल 2012 में आई ‘रिटर्न ऑफ ए किंग: द बेटल फॉर अफगानिस्तान’ नाम की किताब के लेखक हैं।

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