लखनऊ : समाजवादी पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की मुलाकात बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के साथ सोमवार को दिल्ली में हुई थी. इस दौरान समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी साथ रहे. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले यह मुलाकात कई मायनों में महत्वपूर्ण मुलाकात मानी जा रही है. विधानसभा चुनाव से पहले यूपी में यादव वोट बैंक को एकजुट बनाए रखने को लेकर यह मुलाकात अहम मानी जा रही है.
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव हों या लालू प्रसाद, दोनों लोग यादव वोट बैंक की राजनीति करते रहे हैं. बिहार में जहां लालू प्रसाद का अपने समाज के बीच गहरी पैठ है, वहीं उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव परिवार की पैठ और पहुंच यादवों के बीच है. ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले यादव वोट बैंक में किसी प्रकार का बिखराव न हो सके, यही इस मुलाकात का मकसद माना जा रहा है.
प्रो. रविकांत कहते हैं कि लालू प्रसाद और मुलायम सिंह यादव के बीच मुलाकात के मायने उत्तर प्रदेश की राजनीति से लेकर दिल्ली की सियासत तक के संदर्भ में देखे जा सकते हैं. जैसा कि अखिलेश यादव ने सपा और कांग्रेस को दुश्मन पहचानने की सलाह दी है. इससे साफ है कि समाजवादी पार्टी, कांग्रेस के साथ एक प्लेटफॉर्म पर आना चाहती है. इसके साथ-साथ दिल्ली में जिस तरीके से विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं, उसमें निश्चित तौर पर समाजवादी पार्टी की बड़ी भूमिका हो सकती है. चूंकि आरजेडी पहले से कांग्रेस का समर्थन कर रही है. ऐसे में हो सकता है कि दिल्ली में लालू प्रसाद कांग्रेस के समर्थन के लिए सपा को और उत्तर प्रदेश के लिए कांग्रेस को सपा के समर्थन के लिए तैयार कर सकते हैं. इसके अलावा यादव वोटबैंक में भाजपा या अन्य कोई दल सेंधमारी न कर पाए, उसे एकजुट करने के लिए भी यह महत्वपूर्ण बैठक मानी जा रही है.
दरअसल उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों में 9 फीसदी यादव समाज का वोट बैंक है. यादव समाज के वोट बैंक के आधार पर ही मुलायम सिंह यादव यूपी की राजनीति करते रहे हैं. अब उनके बेटे अखिलेश यादव राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में यादव समाज का कुछ वोट बैंक भारतीय जनता पार्टी के साथ शिफ्ट हुआ था तभी भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत की सरकार बना पायी थी. ऐसे में अब समाजवादी पार्टी कोई भी रिस्क 2022 के चुनाव में नहीं लेना चाहती. यही कारण है कि वह यादव समाज के वोट बैंक को सहेज कर रखने की हर स्तर पर कोशिश में लगी हुई है.