कभी न करें पद और नाम का घमंड

मार्गदर्शन

फकीर च्वांगत्सु एक अंधेरी रात में मरघट से गुजर रहा था। वह मरघट शाही खानदान का था। अचानक उसका पैर एक आदमी की खोपड़ी पर लग गया। च्वांगत्सु फकीर घबरा गया। उसने वह खोपड़ी उठाई और घर लाकर उसके आगे हाथ-पांव जोडऩे लगा कि मुझे क्षमा कर दो। उसके मित्र इकट्ठे हो गए और कहने लगे, ”पागल हो गए हो, इस खोपड़ी से क्षमा मांगते हो?”

च्वांगत्सु ने उत्तर दिया, ”यह बड़े आदमी की खोपड़ी है। यह सिंहासन पर बैठ चुकी है। मैं क्षमा इसलिए मांगता हूं क्योंकि अगर यह आदमी आज जीवित होता और मेरा पैर उसके सिर पर लग जाता तो पता नहीं मेरी क्या हालत बनाता? यह तो सौभाग्य है, यह आदमी जीवित नहीं है लेकिन क्षमा मांग ही लेनी चाहिए।”
मित्रों ने कहा, ”तुम बड़े पागल हो।”

च्वांगत्सु ने कहा, ”मैं पागल नहीं हूं। मैं तो इस मरे हुए आदमी से कहना चाहता हूं कि जिस खोपड़ी को तू सोचता था, सिंहासन पर बैठी है वही लोगों की, एक फकीर की ठोकर खा रही है और ‘उफ’ भी नहीं कर सकती। कहां गया तेरा सिंहासन? कहां गया तेरा अहंकार?”

कितना अच्छा जवाब था च्वांगत्सु का। आदमी को कभी भी पद और नाम का घमंड नहीं करना चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *