लखनऊः प्रदेश में विधानसभा चुनाव अगले साल होने वाले हैं, लेकिन अभी से ही सियासी हलचल तेज हो गई है. सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी सियासी बिसात बिछाने में जुट गई हैं. इसके साथ ही मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने की भी कवायद शुरू कर दी है. वहीं, राजनीतिक दल विकास कराने और मुफ्त सुविधाएं देने का वादा अभी से ही कर रहे हैं. जनता जनार्दन से कोई धर्म के नाम पर तो कोई जाति के नाम पर 2022 में जिताने की गुहार लगा रहा है. इसी कड़ी में बसपा प्रमुख मायावती ने खुलकर ब्राह्मणों से साथ देने की अपील की है. ब्राह्मणों का साथ मिलने से 2007 में सत्ता हासिल कर चुकीं मायावती ने एक बार फिर ब्राह्मणों से अपील कर भाजपा की परेशानी बढ़ा दी है.
यूपी पॉलिटिक्स में ब्राह्मण जरूरी क्यों?
ब्राह्मण मतदाताओं के पीछे राजनीतिक दलों के भागने पीछे की वजह स्पष्ट है. क्योंकि राज्य में करीब 15 फीसदी ब्राह्मण हैं. प्रदेश के करीब 18 से 20 जिले ऐसे हैं, जहां 20 प्रतिशत या उससे अधिक ब्राह्मणों की आबादी है. गोरखपुर, गोंडा, बलरामपुर, बस्ती, अयोध्या, संत कबीर नगर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, रायबरेली, वाराणसी, कानपुर, प्रयागराज, उन्नाव, कन्नौज, भदोही, झांसी, मथुरा, चंदौली जिलों में ब्राह्मणों की संख्या अच्छी है. इन जिलों में चुनाव को ब्राह्मण प्रभावित करने की स्थिति में हैं. लिहाजा राजनीतिक दलों को ब्राह्मणों को अपने पक्ष में लाने की मजबूरी बन गई है.
बसपा का 2007 में प्रयोग रहा सफल
वैसे तो यूपी की सियासत में ब्राह्मणों का अच्छा बर्चस्व रहा है. लेकिन मतदाता की हैसियत से ब्राह्मणों का प्रभाव 2007 में देखेने को मिला था. 2007 के चुनाव में सपा के खिलाफ प्रदेश में माहौल था और कांग्रेस, भाजपा मजबूत लड़ाई में नहीं दिखे. दूसरी तरफ बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग करके ब्राह्मणों को साथ लिया. बसपा ने सतीश चंद्र मिश्र की अगुआई में ब्राह्मण सम्मेलन किया और 86 ब्राह्मण चेहरों को टिकट दिया. जिससे ब्राह्मण बसपा के साथ चले गए और मायावती की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. इस चुनाव में ब्राह्मण विरादरी के अच्छी संख्या में विधायक चुने गए थे. राजनीतिक विश्लेषक राकेश पांडेय कहते हैं कि भारतीय जाति व्यवस्था में जाटव और ब्राह्मणों में टकराव बहुत कम देखने को मिला है. जाटवों का टकराव अन्य दलित या फिर पिछड़ी जातियों से रहा है. इसलिए ब्राम्हण ने जाटव के साथ राजनीतिक संधि आसानी से कर लिया था. अब एक बार फिर मायावती ने ब्राह्मणों से खुलकर अपील की है. माना जा रहा है कि उनकी यह अपील भाजपा को परेशान करने वाली है.
ब्राह्मणों पर क्या सोचती है भाजपा?
बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में यूपी में 56 ब्राम्हणों चेहरे विधायक चुने गए थे, जिसमें से 44 भाजपा के थे. यूपी भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी कहते हैं कि मायावती को अब ब्राह्मण क्यों याद आये. उन्होंने कहा कि मायावती 2 चुनाव पहले भी उन्होंने ब्राह्मण सम्मेलन किए थे. दो चुनावों के दौर में वह ब्राह्मणों को क्यों भूल गईं थीं. ब्राह्मणों के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई थी और बाद में उन्हें भुला दिया. आज ब्राह्मण कैसे याद आए ? लक्ष्मीकांत बाजपेयी कहते हैं कि भाजपा सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास वाली पार्टी है. हम जाति, धर्म, पंथ और पूजा पद्धति से ऊपर उठकर राजनीति करना चाहते हैं. राजनीति का सिद्धांत हमारा राष्ट्रवाद और भारत माता है. इसी परिभाषा के अंतर्गत का भाजपा राजनीति करती है. उन्होंने कहा कि चुनाव आने पर फिर ब्राह्मण की बात उठाना जातिवाद राजनीति से प्रेरित है. उन्होंने कहा कि केवल ब्राह्मण नहीं, जातिवाद से ऊपर उठकर जनता के सरोकारों से संबंध रखने वाले मुद्दों को लेकर राजनीतिक दल चुनाव में जाएं.
सपा और कांग्रेस भी ब्राह्मणों को लुभाने में पीछे नहीं
2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर बसपा ही नहीं सपा और कांग्रेस भी ब्राह्मणों को लुभाने की कवायद में है. समाजवादी पार्टी ने भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने की घोषणा की है. वहीं, कांग्रेस में प्रमोद तिवारी के नेतृत्व में चुनाव लड़ाने की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जनेव धारण किया है और अब उनके दौरों में मंदिरों में जाने का कार्यक्रम शामिल होता है. कांग्रेस की तरफ से यूपी की कमान संभाल रहीं प्रियंका गांधी भारतीय पोशाक में ज्यादा दिखती हैं. गले में रुद्राक्ष की माला भी धारण करती हैं. जानकर मानते हैं कि कांग्रेस इस प्रकार की रणनीति अपनाकर मुसलमानों को नाराज किये बगैर हिंदुओं, खासकर ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश कर रही है.
ब्राह्मणों को मनाने के लिए क्या कर रही बीजेपी
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार से ब्राह्मण नाराज बताए जा रहे हैं. इसके पीछे की कई वजह बताई जा रही है. नाराजगी के पीछे का तर्क दिया जा रहा है कि योगी सरकार में ब्राह्मणों को ठीक से महत्व नहीं दिया गया है और सुनवाई भी कम हो रही है. कानपुर बिकरु कांड के बाद से तो विपक्ष ने ब्राह्मणों पर अत्यचार के आरोप भी लगाए. कहा गया कि इस सरकार में जानबूझकर कर ब्राह्मणों का एनकाउंटर किया गया. हालांकि योगी आदित्यनाथ सरकार यह कहती रही है अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. इस सरकार में जाति और धर्म देखकर कार्रवाई नहीं की जाती. इस सब के बीच भाजपा ने नाराज ब्राह्मणों को मनाने की कवायद शरू कर दी है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल किया गया. पार्टी जल्द ही कुछ ब्राह्मण चेहरों को विधान परिषद भेज सकती है. इसके अलावा भाजपा 24 जुलाई को पूरे प्रदेश भर में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गांव गांव कार्यक्रम आयोजित करके पुरोहितों, पंडितों, पुजारियों, साधु-संतों को सम्मानित करने जा रही है. पार्टी के इस अभियान को नाराज लोगों को मनाने और साथ लाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.