एक बार एक जिज्ञासु व्यक्ति ने एक संत से प्रश्र किया, ”महाराज रंग- रूप, बनावट प्रकृति में एक जैसे होते हुए भी कुछ लोग अत्यधिक उन्नति करते हैं जबकि कुछ लोग पतन के गर्त में डूब जाते हैं।”
संत ने उत्तर दिया, ”तुम कल सुबह मुझे तालाब के किनारे मिलना। तब मैं तुम्हें इस प्रश्र का उत्तर दूंगा। अगले दिन वह व्यक्ति सुबह तालाब के किनारे पहुंचा। उसने देखा कि संत दोनों हाथों में एक-एक कमंडल लिए खड़े हैं।
जब उसने ध्यान से देखा तो पाया कि एक कमंडल तो सही है लेकिन दूसरे की पेंदी में एक छेद है। उसके सामने ही संत ने दोनों कमंडल तालाब के जल में फैंक दिए। सही वाला कमंडल तो तालाब में तैरता रहा लेकिन छेद वाला कमंडल थोड़ी देर तैरा। जैसे-जैसे उसके छेद से पानी अंदर आता गया वह डूबने लगा और अंत में पूरी तरह डूब गया।
संत ने जिज्ञासु व्यक्ति से कहा, ”जिस प्रकार दोनों कमंडल रंग-रूप और प्रकृति में एक समान थे किंतु दूसरे कमंडल में एक छेद था जिसके कारण वह डूब गया। उसी प्रकार मनुष्य का चरित्र ही इस संसार सागर में उसे तैराता है जिसके चरित्र में छेद (दोष) होता है वह पतन के गर्त में चला जाता है लेकिन एक सच्चरित्र व्यक्ति इस संसार में उन्नति करता है।”
जिज्ञासु को अपने प्रश्र का उत्तर मिल गया। अत: जीवन में चरित्र का महत्व सर्वाधिक है इसलिए हमें चरित्रवान बनना चाहिए।