राष्ट्रपति ने गांव की मिट्टी को किया नमन, बताया मातृभूमि से मिलती है देश-सेवा की प्रेरणा

कानपुर देहात: कानपुर के तीन दिवसीय दौरे पर पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद रविवार सुबह अपने गांव परौंख पहुंचे. सेना के हेलीकॉप्टर से उतरते ही उन्होंने सबसे पहले अपने गांव की जमीन के पैर छूकर नमन किया. राष्ट्रपति बनने के 4 साल बाद अपने पैतृक गांव पहुंचे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के स्वागत के लिए गांव में द्वार-द्वार पर रंगरोगन और लिपाई की गई थी. गांव में पहुंचते ही राष्ट्रपति पुरानी यादों में खो गए. यहां पहुंचकर सबसे पहले उन्होंने पत्नी सविता कोविंद और बेटी सहित पथरी देवी मंदिर में दर्शन-पूजन किया. इसके बाद उन्होंने गांव का भ्रमण कर गांव वालों का अभिनंदन करते हुए सबका धन्यवाद ज्ञापित किया. इस दौरान राष्ट्रपति के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल मौजूद रहीं.

पथरी देवी मंदिर में की पूजा

पथरी देवी मंदिर में करीब 15 मिनट तक विधि-विधान से पुजारी कृष्ण कुमार बाजपेई ने राष्ट्रपति को पूजा कराई. राष्ट्रपति इस मौके के लिए फल-मिष्ठान अपने साथ ही लाए थे. राष्ट्रपति ने मंदिर में देवी मां के चरणों में 11 हजार रुपये का दान दिया. साथ ही पुजारी को भी 11 सौ रुपये भेंट किए. राष्ट्रपति ने इस मौके पर अपनी बेटी, मुख्यमंत्री और राज्यपाल को पथरी देवी मंदिर के महत्व और अपने पिता द्वारा मंदिर की देखरेख के बारे में भी बताया.

राष्ट्रपति ने दिया ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ का मंत्र

पैतृक गांव परौंख में पहुंचकर जनसभा स्थल मंच से राष्ट्रपति ने गांव वालों को संबोधित किया. संबोधन में उन्होंने कहा कि मेरे आने से जितनी आपको खुशी है, उससे ज्यादा खुशी मुझे है. इस दौरान उन्होंने जन्मभूमि को स्वर्ग से भी महान बताया. उन्होंने कहा-‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’.राष्ट्रपति ने कहा कि इस बार आने में जितना देर हुई, कोशिश होगी कि अगली बार इतना विलम्ब न हो.

‘सपने में भी नहीं सोचा था बनूंगा राष्ट्रपति’

संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि मैं आपके जैसा ही नागरिक हूं, बस संविधान में प्रथम नागरिक का दर्जा प्राप्त है. उन्होंने कहा सपने में नहीं सोचा था कि राष्ट्रपति बनकर देश की सेवा करूंगा, लेकिन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने यह कर के दिखा दिया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री तो यूपी ने बहुत दिए, लेकिन राष्ट्रपति यूपी से पहला है. अब यूपी वालों के लिए भी राष्ट्रपति बनने का रास्ता भी खुल गया है. इस मौके पर राष्ट्रपति ने अपने सहपाठी जसवंत सिंह, चंद्रभान सिंह और दशरथ सिंह को भी याद किया.

‘बड़ों का सम्मान करने की परंपरा अब भी जारी’

राष्ट्रपति कोविंद ने अपने संबोधन में कहा कि गांव में सबसे वृद्ध महिला को माता तथा बुजुर्ग पुरुष को पिता का दर्जा देने का संस्कार मेरे परिवार में रहा है. चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग या संप्रदाय के हों. आज मुझे यह देख कर खुशी हुई है कि बड़ों का सम्मान करने की हमारे परिवार की यह परंपरा अब भी जारी है. भारतीय संस्कृति में ‘मातृ देवो भव’, ‘पितृ देवो भव’, ‘आचार्य देवो भव’ की शिक्षा दी जाती है. हमारे घर में भी यही सीख दी जाती थी.

‘मातृभूमि से मिलती है देश-सेवा की प्रेरणा’

उन्होंने कहा कि माता-पिता और गुरु तथा बड़ों का सम्मान करना हमारी ग्रामीण संस्कृति में अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है. मैं कहीं भी रहूं, मेरे गांव की मिट्टी की खुशबू और मेरे गांव के निवासियों की यादें सदैव मेरे हृदय में विद्यमान रहती हैं. राष्ट्रपति ने कहा मेरे लिए परौंख केवल एक गांव नहीं है, यह मेरी मातृभूमि है, जहां से मुझे आगे बढ़कर देश-सेवा की सदैव प्रेरणा मिलती रही है. मातृभूमि की इसी प्रेरणा ने मुझे हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से राज्यसभा, राज्यसभा से राजभवन और राजभवन से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा दिया.

‘गांव वालों को दिया राष्ट्रपति भवन देखने का न्यौता’

अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कोरोना से बचने के लिए वैक्शिनेशन पर भी जोर दिया. राष्ट्रपति ने जागरुक करते हुए कहा खुद भी टीका लगवाएं और दूसरों को भी प्रेरित करें. इस दौरान उन्होंने गांव वालों को राष्ट्रपति भवन देखने का न्यौता भी दिया. उन्होंने कहा कि गांव वालों के लिए राष्ट्रपति भवन देखने की व्यवस्था खुद करूंगा, आप लोग आएं और देखें.

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