अवधी होनहार छात्रा थी। सी.सै. स्कूल की फाइनल वर्ष की विद्यार्थी थी। डाक्टर बनने का सपना था। माता-पिता के साथ भरतपुर जा रही थी। धीमी गति से जैसे ही रेलगाड़ी स्टेशन से चली, छटपटाहट में गाड़ी चढ़ने लगी कि पैर फिसल गया। बच गई लेकिन दोनों टागें कट गईं।
माता-पिता पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया। गरीब थे। कई लोगों के आगे हाथ पसारे। अंत में संस्था के बड़े अस्पताल गए। उस संस्था के डाक्टर से मिले। डाक्टर ने सुझाव दिया कि नई बनावटी टांगें लगाकर इस लड़की को जीवन दान मिल जाएगा। माता ने कहा कि अवधी के पिता नेत्रहीन हैं। सारे खर्च का बोझ मुझ अकेली पर है, मैं इतना उठा नहीं सकती। अवधी रोने लगी कि मैं डाक्टर बनना चाहती हूं। मेरा सपना है। कैसे पूरा होगा।टांगों से लाचार हूं। डाक्टर ने कहा, ”कि तुम लाचार बेटी नहीं हो। सपना तुम पूरा करोगी।”
बेटी अवधी ने कहा कि क्या मैं डाक्टर बन पाऊंगी? डाक्टर ने कहा, हां। आप्रेशन किया गया। बनावटी टांगों के सहारे अवधी को नया जीवन मिल गया। संस्था ने सहायता दी। अवधी आज डाक्टर बनने का सपना पूरा कर रही है ताकि लाचारों की सेवा कर सके।
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