पटना । लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में सियासी खींचतान जारी है। चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस गुट ने लोजपा पर कब्जा कर लिया है जबकि इसकी नींव जमुई सांसद के दिवंगत पिता ने रखी थी। ऐसे में चिराग पासवान ने बुधवार को बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचने की कोशिश की। पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग ने खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताया था। लोजपा सांसद ने कहा, ‘हनुमान का वध होने पर यदि राम चुप रहे तो यह ठीक नहीं है।’ उन्होंने कहा कि सतयुग के समय से लेकर आज तक रामायण में देखा गया है कि हनुमान जी ने हर कदम पर भगवान राम का साथ दिया। चिराग ने कहा, ‘हर कदम पर हनुमान भगवान राम के साथ चले और उसी तरह हर कदम पर उनकी पार्टी लोजपा हर छोटे-बड़े फैसले पर नरेंद्र मोदी जी के साथ खड़ी रही है। हर फैसले पर भाजपा के साथ मजबूती से खड़े रहने वाले हनुमान की लोजपा पर जब आज संकट की घड़ी आई है तो उम्मीद थी कि राम हस्तक्षेप करेंगे और किसी तरह इस विवाद को सुलझाने की कोशिश करेंगे। लेकिन बीजेपी की चुप्पी ने मुझे दुखी जरूर किया है, फिर भी मैं कहूंगा कि मुझे पीएम पर पूरा भरोसा है कि वे स्थिति को नियंत्रण में लेकर इस राजनीतिक मुद्दे को सुलझाने के लिए हस्तक्षेप जरूर करेंगे।’ चिराग ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि भाजपा हस्तक्षेप करेगी और लोजपा पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए अपने चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ जारी संग्राम को सुलझाएगी। रविवार को सूत्रों ने कहा था कि लोजपा नेता ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर पार्टी के चुनाव चिह्न पर अधिकार मांगा है। यह कदम तब उठाया गया जब पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व वाले लोजपा गुट ने राष्ट्रीय, राज्य कार्यकारिणी और विभिन्न प्रकोष्ठों की समितियों को भंग कर दिया था। चिराग ने लोजपा के अंदर जारी घमासान में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा अपनी किसी तरह की भूमिका न होने को लेकर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, ‘हर किसी को पता है। यह एक खुला रहस्य है। जो लोग इसके पीछे हैं उन्हें पता है। यह पहली बार नहीं है जब सीएम ने हमारी पार्टी में फूट डालने की कोशिश की है। यह उनके काम करने की शैली रही है। 2005 में जब हमारे 29 विधायक जीते थे तब नीतीश कुमार ने हमारी पार्टी को तोड़ा था। उन्होंने 2020 में विधानसभा चुनाव जीतने वाले हमारे एकमात्र विधायक को भी तोड़ने का काम किया। तोड़ने की उनकी परंपरा रही है, फिर वह किस मुंह से कह रहे हैं कि उनकी कोई भूमिका नहीं है।’
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शिवसेना (यूबीटी) ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को उनके राजनीति छोड़ने के वादे की याद दिलाई, यदि 2022 में अविभाजित शिवसेना के विभाजन के दौरान उनके साथ रहने वाले…