मिथुन संक्रांति का पर्व मनाया जाने वाला है। ऐसे में इस बार सूर्य मिथुन संक्रांति है और इस दिन सूर्य स्तोत्र का पाठ कर आप सूर्य देव को खुश कर स्वस्थ रहने का वरदान मांग सकते हैं। अब हम आपको बताने जा रहे हैं सूर्य स्तोत्र वह भी अर्थसहित।
सूर्य स्तोत्र- विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।
लोक प्रकाशकः श्री मांल्लोक चक्षुर्मुहेश्वरः॥
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा।
तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः॥
गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः।
एकविंशतिरित्येष स्तव इष्टः सदा रवेः॥
अर्थ- ‘विकर्तन, विवस्वान, मार्तण्ड, भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान, लोकचक्षु, महेश्वर, लोकसाक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्त्ता, तमिस्राहा, तपन, तापन, शुचि, सप्ताश्ववाहन, गभस्तिहस्त, ब्रह्मा और सर्वदेव नमस्कृत- इस प्रकार इक्कीस नामों का यह स्तोत्र भगवान सूर्य को सदा प्रिय है।’ (ब्रह्म पुराण : 31।31-33)
कहा जाता है यह शरीर को निरोग बनाने वाला, धन की वृद्धि करने वाला और यश फैलाने वाला स्तोत्र है। कहते हैं इसकी तीनों लोकों में प्रसिद्धि है और जो सूर्य के उदय और अस्तकाल में दोनों संध्याओं के समय इस स्तोत्र के द्वारा भगवान सूर्य की स्तुति करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।
मिथुन संक्रांति|
सौर वर्ष के अनुसार सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने की क्रिया को संक्रांति कहा जाता है. सूर्य देव जिस राशि में प्रवेश करते हैं उसे उसी राशि की संक्रांति के रूप में मनाया जाता है. सौर वर्ष के माह को भी सूर्य के राशि परिवर्तन के अनुसार ही निर्धारित किया जाता है. जब सूर्य देव मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं तब मिथुन संक्रांति का पर्व मनाया जाता है.
मिथुन संक्रांति का महत्व|
सूर्य देव के मिथुन संक्रांति में प्रवेश करने पर सौरमंडल में बहुत सारे बदलाव आते हैं. मिथुन संक्रांति के दिन से ही वर्षा ऋतु का प्रारंभ हो जाता है. मिथुन संक्रांति के दिन सूर्य देव वृषभ राशि से निकलकर मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं. जिसके कारण सभी राशियों के नक्षत्रों की दिशा में बदलाव आता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन दान पुण्य और पूजा अर्चना का खास महत्व है. हमारे देश में अलग-अलग जगहों पर मिथुन संक्रांति को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. साथ ही अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. दक्षिण भारत में मिथुन संक्रांति को संक्रमानम पर्व के रूप में मनाया जाता है. पूर्व में इसे आषाढ़, केरल में इससे मिथुनम ओंठ और उड़ीसा में इसे राजा पर्व के रूप में मनाया जाता है. उड़ीसा राज्य में मिथुन संक्रांति का पर्व 4 दिनों तक बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. सभी लोग इस दिन पहली बारिश का स्वागत करते हैं. मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव हर राशि में 1 महीने तक विराजमान रहते हैं. अगर मिथुन संक्रांति के दान, दक्षिणा और पूजा पाठ की जाए तो वह बहुत ही शुभकारी मानी जाती है. इस दिन भगवान सूर्य देव की पूजा की जाती है.
मिथुन संक्रांति से जुडी विशेष बातें|
हमारे शास्त्रों में मिथुन संक्रांति के दिन सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इसके अलावा मिथुन संक्रांति के दिन सूर्यदेव के साथ साथ भगवान् विष्णु और धरती मां की पूजा का भी नियम है. मिथुन संक्रांति के दिन गरीब और जरूरतमंदों लोगों को वस्त्रों का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टे की पूजा भूदेवी के रूप में की जाती है. मिथुन संक्रांति के पर्व पर घर के पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है. मिथुन संक्रांति के दिन किसी भी प्रकार का कृषि कार्य नहीं किया जाता है. शास्त्रों में मिथुन संक्रांति के दिन चावल का सेवन निषेध बताया गया है.
पूजन विधि|
मिथुन संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करने के लिए सबसे पहले प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात् एक तांबे के लोटे में स्वच्छ जल लें. अब इस जल में लाल फूल, चंदन, तिल और गुड़ मिला लें. अब इस जल से श्रद्धा पूर्वक सूर्य देव को अर्ध्य दें. सूर्यदेव को जल अर्पित करते समय ‘ऊं सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप करें.
मिथुन संक्रांति कथा|
मान्यताओं के अनुसार महिलाओं को जिस प्रकार मासिक धर्म होता है, उसी प्रकार धरती माता को शुरुआती 3 दिनों तक मासिक धर्म हुआ था. जिसे धरती के विकास के प्रतीक के रूप में माना जाता है. 3 दिनों तक लगातार धरती माता मासिक धर्म में रहती हैं. 3 दिनों के पश्चात चौथे दिन में सिलबट्टे जिसे भूदेवी का प्रतीक माना जाता है, उसे स्नान करके शुद्ध कराया जाता है. इस दिन धरती माता के साथ-साथ सूर्य देव की भी पूजा की जाती है.