नई दिल्ली।
कोरोना के प्रकोप के बीच भी राजनीति गर्म रही तो शायद इसका सबसे बड़ा कारण अगले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश में होने वाला चुनाव है। यूं तो बंगाल चुनाव ने ही विपक्ष का मनोबल बढ़ा दिया है, लेकिन उत्तर प्रदेश खास है और इसका अंदाजा विपक्ष से ज्यादा सत्ताधारी भाजपा को है। विपक्ष ने योगी सरकार को घेरने की रणनीति तय की है, खुद भाजपा के अंदर कुछ स्तरों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नाराजगी भी जताई जा रही है। लेकिन सूत्रों की मानें तो आज के दिन भाजपा योगी के चेहरे को ही जिताऊ मानती है और उनके चेहरे पर ही दांव लगाएगी। खुद योगी को भी साबित करना होगा कि केंद्रीय नेतृत्व ने जिस भरोसे के साथ प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी थी, वह उस पर खरे हैं और लोगों का भी विश्वास है। माना जा रहा है कि जनवरी में विधानसभा चुनाव की घोषणा होगी।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में भाजपा के बड़े नेताओं की समीक्षा बैठक ने अटकलों को तेज हवा दी। लेकिन भाजपा के सूत्र प्रदेश सरकार व संगठन में किसी बड़े बदलाव की संभावना और मुख्यमंत्री उम्मीदवार में बदलाव को खारिज करते हैं। सूत्रों के अनुसार, यह सच है कि राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष और प्रभारी राधामोहन सिंह के साथ मुलाकात में प्रदेश के कई नेताओं ने थोड़ी नाराजगी जताई थी। नौकरशाही को मिल रही वरीयता और कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगा था। लेकिन ऐन चुनाव के वक्त यह बदलाव का कारण नहीं बन सकता। योगी ने तब सक्रियता दिखाई जब कोरोना काल में कई जनप्रतिनिधि घर में घुसे बैठे थे। उन्होंने दौरा किया और लोगों का हौसला बढ़ाया। उस वक्त सपा के मुखिया अखिलेश भी दूर रहे और कांग्रेस प्रभारी प्रियंका ट्विटर पर ही दिखीं।
मुख्यमंत्री की सक्रियता ने कोरोना को थामने में की मदद
योगी कोरोना के प्रबंधन में सक्रिय दिखे। पहली लहर को काबू करने और दूसरी लहर को थामने की कोशिश की। देश का सबसे बड़ा राज्य होने के बावजूद दूसरे राज्यों के मुकाबले संक्रमण भी कम हुआ और मृत्यु भी। एक पदाधिकारी के अनुसार एक वक्त लगा था कि उत्तर प्रदेश बहुत बुरी तरह संक्रमित होगा, लेकिन मुख्यमंत्री की सक्रियता ने इसे थामने में मदद की। पहली लहर के वक्त वह प्रदेश के प्रवासियों व छात्रों को सरकारी संसाधनों के जरिये वापस लाने में सबसे आगे दिखे। दूसरी लहर में भी वह मदद की घोषणा में आगे हैं। तीसरी लहर की व्यापक तैयारी शुरू हो गई है।
सामान्य प्रशासन में वह धमक दिखाने में कामयाब रहे हैं। बाहुबली हों या उपद्रवी, योगी ने प्रशासन का इकबाल दिखाया। मंत्रिमंडल में भले कई विवाद खड़े हुए हों, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर योगी की ईमानदारी पर कोई अंगुली नहीं उठी। उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व हमेशा से एक मुद्दा रहा है और योगी उस पहलू पर सबसे फिट बैठते हैं। उन्हें जाति के खांचे में गढ़ने की कोशिश हुई, लेकिन उनका हिंदुत्व का चोला बड़ा है।
समीकरणों के लिहाज से मंत्रिमंडल या संगठन में किए जा सकते हैं छोटे मोटे बदलाव
सूत्र बताते हैं कि अब तक किसी भी स्तर पर मुख्यमंत्री चेहरे में बदलाव को लेकर न तो चर्चा हुई है और न ही इसकी कोई संभावना है। बल्कि प्रदेश स्तर पर उनकी कार्यप्रणाली को लेकर शिकायत करने वाले नेताओं की ओर से भी उन्हें बदलने को लेकर कोई सुझाव नहीं दिया गया। हां यह जरूर कहा गया कि स्वभाव से थोड़े अक्खड़ मुख्यमंत्री को कुछ स्तर पर समन्वय स्थापित करना होगा। जाहिर तौर पर इसकी जिम्मेदारी केंद्रीय नेतृत्व के पास होगी। जातिगत और दूसरे समीकरणों के लिहाज से मंत्रिमंडल या संगठन में छोटे मोटे बदलाव किए जा सकते हैं। गठबंधन के नए साथियों की खोज और उन्हें भविष्य के संबंध में वादों का जिम्मा भी केंद्रीय नेतृत्व के साथ समन्वय के साथ किया जाएगा, लेकिन चेहरा योगी ही होंगे।