साल 1949 की बात है। भारत आजाद युग में कदम रख रहा था। उस वक्त पूरी आबादी को खिलाने के लिए न तो अनाज था और न पिलाने के लिए पर्याप्त दूध। जो किसान दूध पैदा करते थे, वो बिचौलियों को औने-पौने दाम में बेचने को मजबूर थे। ये परिस्थितियां गुजरात में काम करने वाले एक युवक में बेचैनी पैदा कर रही थी, जिसका नाम था- डॉ. वर्गीज कुरियन।
डेयरी में पोल्सन का वर्चस्व और किसानों का शोषण
गुजरात के आणंद में पोल्सन नाम की एक डेयरी कंपनी चलती थी। इलाके में इकलौती कंपनी होने की वजह से किसान औने-पौने दाम पर अपना दूध इसे बेचने को मजबूर थे। जबकि पोल्सन मुंबई में दूध की सप्लाई करके बड़ा मुनाफा कमाती थी। ये कंपनी ब्रिटिश आर्मी को भी दूध सप्लाई करती थी।
किसानों के प्रतिनिधि त्रिभुवन दास पटेल अपनी समस्या लेकर सरदार वल्लभ भाई पटेल के पास गए तो उन्होंने एक सहकारी संस्था बनाने का सुझाव दिया। 14 दिसंबर 1946 को खेड़ा डिस्ट्रिक्ट मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड की शुरुआत हुई। इस सोसाइटी के बनने से बिचौलिए हट गए और किसानों की आमदनी में सुधार हुआ। साल 1950 में त्रिभुवन दास पटेल ने इस सोसाइटी की जिम्मेदारी देश के लिए कुछ करने को बेचैन डॉ. वर्गीज कुरियन को सौंपी।
त्रिभुवन दास पटेल किसानों को जोड़कर जब ऐसी अन्य सोसाइटी बना रहे थे, डॉ. कुरियन इस को-ऑपरेशन को मजबूत करने में जुटे थे। उन्हें को-ऑपरेटिव चलाने के लिए एक टेक्निकल मैन की मदद की जरूरत थी, जो एचएम दलाया के आने से पूरी हुई। ये तीनों अमूल के आधार स्तंभ साबित हुए।
1955 में जब को-ऑपरेशन का नाम चुनने की बारी आई तो डॉ. कुरियन ने इसका नाम अमूल रखा। ये आणंद मिल्क यूनियन लिमिटेड का छोटा रूप था। साथ ही संस्कृत में अमूल्य का मतलब होता है जिसकी कोई कीमत न लगाई जा सके।
‘पोल्सन गर्ल’ को टक्कर देने के लिए आई ‘अमूल गर्ल’
विज्ञापनों में दिखने वाली ‘अमूल गर्ल’ की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। इसे डॉ. कुरियन पोल्सन डेयरी के विज्ञापनों में आने वाली ‘पोल्सन गर्ल’ को टक्कर देने के लिए लाए थे। इसके लिए उन्होंने एडवर्टाइजिंग एंड सेल्स प्रमोशन एजेंसी हायर की। एजेंसी के आर्ट डायरेक्टर यूस्टस फर्नांडिंस और कम्यूनिकेशन हेड सिल्वेस्टर दाकुन्हा ने ‘अमूल गर्ल’ को क्रिएट किया। अमूल की टैगलाइन पहले ‘प्योरली द बेस्ट थी’ जिसे बाद में ‘अटर्ली बटर्ली अमूल’ कर दिया गया। अमूल गर्ल का पहला विज्ञापन 1966 में आया। इसे दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला एड कैंपेन माना जाता है।
1990 के दशक तक अमूल की मार्केटिंग लोकप्रिय होने लगी थी। करेंट अफेयर्स और बॉलीवुड फिल्मों पर अमूल गर्ल के ऐड आने लगे थे जो चर्चा के विषय बने। ये सिलसिला आज तक बरकरार है। अमूल की मार्केटिंग और सप्लाई चेन पर फोकस की बदौलत साल 1998 में अमेरिका को पीछे छोड़ भारत दुनिया में सबसे ज्यादा दूध पैदा करने वाला देश बन गया।
अमूल का सहकारी मॉडल पूरे देश के लिए बना मिसाल
अमूल का मॉडल इतना प्रभावी था कि सरकार इसे पूरे देश में लागू करना चाहती थी। इसके लिए 1964 में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड का गठन हुआ। डॉ. कुरियन ने ही दुनिया के सबसे बड़े डेयरी डेवलपमेंट प्रोग्राम का खाका तैयार किया जिसे ‘ऑपरेशन फ्लड’ या ‘श्वेत क्रांति’ के नाम से जाना जाता है।
1969-70 में हुई श्वेत क्रांति में अमूल को एक ‘मॉडल’ बनाया गया। ये मॉडल एक पिरामिड की तरह है जो तीन स्तर पर काम करता है।
पिरामिड के निचले हिस्से में गांव का किसान है, जो डेयरी कोऑपरेटिव सोसाइटी का सदस्य होता है। ये सारे सदस्य मिलकर अपना प्रतिनिधि चुनते हैं।
इन प्रतिनिधियों को मिलाकर जिला स्तर का मिल्क यूनियन बनता है। ये दूध की प्रॉसेसिंग और पैकेजिंग की जिम्मेदारी निभाता है। ये यूनियन दूध और दूध से बने उत्पाद को राज्य स्तर के मिल्क फेडरेशन को बेचता है। यहां ध्यान देने की बात ये है कि किसानों और बाजार के बीच कोई बिचौलिया नहीं है।
50 साल बाद वर्गीज कुरियन पर उठने लगे सवाल
1990 के आखिर में अमूल ने कई प्रोडक्ट लॉन्च किए, लेकिन वो फेल साबित होने लगे। 50 साल तक कंपनी को ऊंचाई पर रखने वाले भारत के मिल्कमैन की लोकप्रियता घटने लगी। 2000 से 2005 के बीच भारत की जीडीपी ग्रोथ अमूल की ग्रोथ से ज्यादा थी। उस वक्त तक अमूल राष्ट्रीय महत्व का ब्रांड बन चुका था। 2006 में डॉ. कुरियन ने चेयरमैन पद छोड़ दिया। कुछ वक्त के लिए पार्थी भटोल जैसे राजनेताओं के हाथ में भी अमूल की कमान रही।
आरएस सोढ़ी के विजन ने अमूल को दी नई ऊंचाई
साल 2010 में अमूल की कमान आरएस सोढ़ी के हाथ में गई जो पिछले 30 सालों से अमूल के साथ जुड़े थे। उन्होंने सप्लाई चेन में कुछ बदलाव किए और कई नए प्रोडक्ट लॉन्च किए जिससे अमूल फिर ट्रैक पर आ गया। 2010 से 2015 के बीच 21% ग्रोथ रेट के साथ अमूल का टर्नओवर 8,005 करोड़ से बढ़कर 20,733 करोड़ पहुंच गया।
महामारी और लॉकडाउन में भी दर्ज की ग्रोथ
‘आपदा में अवसर’ का सही मायने में पालन अमूल ने किया है। उसने लोगों की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 2021 की पहली तिमाही में 33 नए प्रोडक्ट लॉन्च किए। सप्लाई में बाधा न आए, इसके लिए अमूल ने कामगारों को 100-125 रुपए ज्यादा दिए और वितरकों को 35 पैसे प्रति लीटर बोनस दिया। डेयरी प्लांट के अंदर कामगारों के लिए खाने और रहने की व्यवस्था भी की। इन्हीं कोशिशों का नतीजा है कि अमूल ने कोरोना महामारी और लॉकडाउन में भी 20% की ग्रोथ दर्ज की।
2021 में अमूल एक नए दशक में प्रवेश कर चुका है। 1946 में 247 लीटर दूध से शुरू हुआ को-ऑपरेशन आज रोजाना 2.3 करोड़ लीटर तक पहुंच चुका है। इसलिए अगर भारत के ‘आत्मनिर्भर ब्रांड’ की बात की होगी तो अमूल का नाम सूची में सबसे पहले आएगा।