नई दिल्ली। IDBI Bank में सरकारी हिस्सेदारी बेचने का रास्ता साफ हो गया है। सेंट्रल कैबिनेट ने इसे मंजूरी दे दी है। इससे 1 दशक से हो रही बैंक डील की कोशिश अब साकार होगी। यह सरकार का पहला बैंकिंग Disinvestment होगा। हालांकि IDBI बैंक के कर्मचारी इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार को इसमें 51 फीसद हिस्सेदारी रखनी चाहिए।
बैंक स्टेक सेल को मिली मंजूरी;मंत्रिमंडल ने इस साल के बजट में की गई घोषणा के मुताबिक IDBI Bank की हिस्सेदारी चुनिंदा निवेशक को बेचने की इजाजत दी है। IDBI Bank में केंद्र सरकार और LIC की कुल हिस्सेदारी 94 प्रतिशत से ज्यादा है। LIC के पास बैंक के 49.21 प्रतिशत शेयर हैं और साथ ही वह उसकी प्रवर्तक है। उसके पास बैंक के प्रबंधन का नियंत्रण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने आईडीबीआई बैंक की रणनीतिक बिक्री को मंजूरी दी। इसमें कहा गया कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ बातचीत के बाद तय होगा कि इस बैंक में केंद्र सरकार और LIC की कीतनी कितनी हिस्सेदारी बेची जाए।
बजट में है बैंकों की हिस्सेदारी बेचने का ऐलान;बता दें कि फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने 2021-22 का बजट पेश करते समय ऐलान किया था कि चालू कारोबारी साल के विनिवेश कार्यक्रम में सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ बैंकों (PSB) का निजीकरण भी होगा। बजट में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य है।
बैंक यूनियन तैयार नहीं;हालांकि अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (AIBEA) ने IDBI BANK का निजीकरण करने से जुड़े सरकार के फैसले का विरोध करते हुए इसे एक “प्रतिगामी” कदम बताया। संघ ने कहा कि सरकार को बैंक की पूंजी शेयर का 51 प्रतिशत हिस्सा अपने पास रखना चाहिए।
कॉरपोरेट कर्ज से डूबा बैंक;बैंक संघ ने कहा कि बैंक इसलिए मुश्किलों में आया क्योंकि कुछ कॉरपोरेट घरानों ने उसके कर्ज वापस न कर उसके साथ धोखाधड़ी की। इसलिए वक्त की जरूरत है कि कर्ज वापस न करने वाले कर्जदारों के खिलाफ कार्रवाई कर पैसों की वसूली की जाए।