बंगाल चुनाव में प्रचार करने वाले स्टार कैंपेनर्स को किया जाए क्वारैंटाइन, भीड़ जुटाने वाले आयोजकों और पार्टियों पर लगे जुर्माना

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नई दिल्ली, कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के बीच आज पश्चिम बंगाल में अंतिम चरण की वोटिंग हो रही है। 27 मार्च को हुई पहले चरण की वोटिंग के मुकाबले अंतिम चरण की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले प्रतिदिन आने वाले कोविड पॉजिटिव मामलों की संख्या में 20 गुना से भी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। जहां पहले चरण की वोटिंग के दौरान संक्रमण के 812 मामले सामने आए थे, वहीं अब यह आंकड़ा बढ़कर 17,207 पहुंच गया है।

कोविड गाइडलाइन की धज्जियां उड़ाने के बाद रैलियां-रोड शो बंद हो चुके हैं। वोटिंग के बाद काउंटिंग का दौर शुरू होगा, लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या स्टार कैंपेनर अब जब वापस अपने ठिकानों पर लौटेंगे तो क्वारैंटाइन नियमों का पालन करेंगे? क्या रैलियों और रोड शोज में मास्क लगाने और दो गज की दूरी के आदेश का पालन न करने पर स्टार कैंपेनर्स और आयोजक न केवल अपना बल्कि उनके बुलाने पर इकट्ठी हुई भीड़ का भी जुर्माना भरेंगे?

चुनावी राज्यों में स्टार कैंपेनर्स और नेताओं द्वारा कोविड गाइडलाइन का उल्लंघन करने के मामलों को लेकर 27 अप्रैल को दिल्ली हाईकोर्ट में एक अंतरिम प्रार्थना पत्र (Intrim Application-IA) दाखिल किया गया है। दरअसल, यह आवेदन 17 मार्च को पूर्व पुलिस महानिदेशक डॉ. विक्रम सिंह द्वारा फाइल की गई याचिका के तहत दाखिल किया गया है। अंतरिम आईए के जरिए कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में पिछले एक सप्ताह के दौरान चुनाव प्रचार में लगे स्टार कैंपेनर्स के लिए क्वारैंटाइन होना जरूरी किया जाए।

साथ ही पांचों राज्यों में अब तक हुईं रैलियों-रोड शो के दौरान कोविड गाइडलाइन के उल्लंघन के मामलों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। मास्क न लगाने पर न केवल सभी स्टार कैंपेनर्स से जुर्माने की तय राशि वसूली जाए बल्कि वहां मौजूद भीड़ द्वारा मास्क न लगाने पर भी रैलियों की आयोजनकर्ता राजनीतिक पार्टियों से जुर्माना वसूला जाए।

राजनीतिक रैलियों और रोड शो की अनुमति क्यों दी गई?

24 अप्रैल को भाजपा नेता मिथुन चक्रवर्ती ने मालदा में रैली की थी। इसमें बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ इकट्ठी हुई थी।

याचिकाकर्ता के वकील विराग गुप्ता कहते हैं, ‘कोरोना के संकट काल में शिक्षा, व्यापार, रोजगार, आवागमन जैसे संवैधानिक मूल अधिकार सस्पेंड कर दिए गए हैं। परीक्षाएं निरस्त कर दी गई, एक राज्य से दूसरे राज्य जाने में बंदिशें लगा दी गई हैं, लोग अपना व्यापार नहीं कर सकते, यहां तक कि धार्मिक आयोजनों पर भी रोक है। शादी-ब्याह या अंतिम संस्कार में शामिल होने वाले लोगों की संख्या सीमित कर दी गई है। दो शाही स्नान के बाद कुंभ भी प्रतीकात्मक कर दिया गया है, यानी संविधान में मिले धार्मिक आयोजन के अधिकार को भी सीमित कर दिया गया तो फिर राजनीतिक रैलियों और रोड शो की अनुमति चुनाव आयोग द्वारा क्यों नहीं निरस्त की गई?’

सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट विराग गुप्ता कहते हैं, ‘हमारी याचिका और जन दबाव के बाद बहुत देर से चुनाव आयोग ने चुनाव पूर्व प्रचार खत्म होने की अवधि को बढ़ाकर 48 की जगह 72 घंटे किया और फिर सभाओं और रैलियों में शामिल लोगों की संख्या 500 सीमित की। लेकिन क्या यह राजनीतिक वर्ग को खास दर्जा देने जैसा नहीं है?’

उनका यह भी कहना है कि चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद चुनावी राज्यों में पुलिस और प्रशासन की पूरी बागडोर चुनाव आयोग के पास आ जाती है, इसलिए यह कहना सही नहीं है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की नहीं थी।

याचिका में अगस्त 2020 में चुनाव आयोग द्वारा चुनाव और उपचुनाव के दौरान 23 मार्च को गृह मंत्रालय द्वारा जारी कोविड गाइडलाइन के ऑर्डर का भी हवाला दिया गया है। याचिका में इंडियन मेडिकल काउंसिल और नीति आयोग की गई एक रिसर्च का भी हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया है कि 30 दिनों के भीतर एक कोविड पॉजिटिव व्यक्ति 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है।

कोर्ट से क्या हैं मांगें?

कुंभ मेले से लौट रहे तीर्थयात्रियों की तर्ज पर पश्चिम बंगाल में पिछले एक सप्ताह के दौरान कैंपेन करने वाले स्टार कैंपेनर्स के लिए होम क्वारैंटाइन जरूरी किया जाए, जिससे की वो लोग कोरोना संक्रमण का फैलाव न कर सकें।
पॉलिटिकल पार्टियों द्वारा अब तक की गई सभी रैलियों और रोड शोज के प्रमाण इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया से हासिल किए जाएं।
रोडशोज और रैलियों के दौरान इकट्ठी भीड़ द्वारा कोविड गाइड लाइन जैसे मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करने पर भीड़ में शामिल लोगों की संख्या और जुर्माने की राशि के हिसाब से तय रकम सभी पॉलिटिकल पार्टियों से वसूली जाए।
चुनाव आयोग मास्क न लगाने और दो गज की दूरी के निर्देश का खुलेआम उल्लंघन करने पर सभी पार्टियों के नेताओं और स्टार कैंपेनर्स के खिलाफ FIR करे।
चुनाव आयोग के उन अधिकारियों पर मुकदमा चलाया जाए जिन्होंने कोविड गाइडलाइन का पालन नहीं होने के बावजूद रैलियों और रोड शो को दी गैर अनुमति निरस्त नहीं की।

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