वैक्सीन के बाद कोरोना की दवा बनाने की राह पर दुनिया, वायरस का प्रभावी इलाज खोजने की तलाश

कोरोना वायरस रोधी टीका उपलब्ध हो जाने के बावजूद महामारी का प्रकोप एकबार फिर से तेज हो गया है। इसलिए संक्रमण की रोकथाम के साथ ही इसके प्रभावी इलाज की खोज भी जरूरी हो गई है। दुनियाभर के विज्ञानी इस प्रयास में जुटे हुए हैं। इसी क्रम में मानव आनुवंशिकी से जुड़े एक नए अध्ययन के आधार पर शोधकर्ताओं ने ऐसी दवाओं के क्लीनिकल परीक्षण पर जोर दिया है, जो कोविड-19 का इलाज शुरुआती चरण में ही करने में सक्षम हो।

अमेरिका में वेटरंस अफेयर्स बोस्टन हेल्थकेयर सिस्टम के शोधकर्ताओं की एक टीम ने अपने विश्लेषण के आधार पर आइएफएनएआर 2 तथा एसीईए 2 नामक प्रोटीन को निशाना बनाने वाली दवाओं के क्लीनिकल परीक्षण को प्राथमिकता देने का आह्वान किया है। इसका मकसद ऐसी मौजूदा दवाओं का पहचान करना हो कि उसमें अपेक्षित बदलाव कर उसे कोरोना के इलाज के लिए भी उपयोगी बनाया जा सके। यह अध्ययन नेचर मेडिसिन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।जो लोग केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की मल्टीपल स्केलेरोरिस (ऊतकों का कड़ा या मोटा होना) की बार-बार पैदा होने वाली बीमारी से पीडि़त होते हैं, उनके इलाज के लिए स्वीकृत दवाओं का निशाना आइएफएनएआर 2 होता है। शोधकर्ताओं का मानना है कोविड-19 के खिलाफ एसीई2 थेरेपी कारगर हो सकता है और उसके लिए महामारी शुरू होने से पहले श्वसन तंत्र में जलन या अन्य विकारों के प्रयुक्त होने वाली दवाओं के क्लीनिकल परीक्षण का मूल्यांकन किया जा सकता है।वेटरंस अफेयर्स बोस्टन हेल्थकेयर सिस्टम में महामारी विशेषज्ञ डॉ. जुआन पी. कसास कहते हैं, जब हमने पिछली गर्मी में अध्ययन शुरू किया, उस समय कोविड-19 को लेकर अधिकांश परीक्षण अस्पताल में भर्ती मरीजों पर किए गए। हमारे सामने चुनौती उन मौजूदा दवाओं की पहचान करनी थी, जिसे दूसरी स्थितियों में इस्तेमाल कर कोविड-19 के इलाज में प्रयोग किया जा सके। एसीई 2 कोविड-19 के लिए बहुत ही अहम है, क्योंकि मानव शरीर में वायरस का संक्रमण इसी के जरिये होता है। कोरोना के इलाज में एसीई2 थेरेपी इसीलिए महत्वपूर्ण है और उसके लिए एपीएन01 नामक ड्रग कारगर हो सकता है, जो प्रोटीन की नकल करता है और कोरोना वायरस को मानव शरीर में प्रवेश का रास्ता भटका देता है। अस्पताल में भर्ती रोगियों पर सीमित परीक्षण में कोविड-19 के मामले में एपीएन01 के सकारात्मक प्रभाव के सुबूत मिले हैं। इसलिए यदि हमारे आनुवंशिक (जीनेटिक) निष्कर्ष सही हैं तो अस्पताल में भर्ती नहीं होने वाले कोविड-19 के रोगियों पर क्लीनिकल परीक्षण की रणनीति बनाने की जरूरत है। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जिन कोविड-19 रोगियों में आइएफएनएआर 2 का कुछ वैरिएंट था, उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत कम पड़ी, खासकर उन लोगों की तुलना में जिनमें इसके वैरिएंट नहीं थे। कसास कहते हैं कि दुनियाभर में तेजी से चल रहे टीकाकरण अभियान के बावजूद दवा विकसित किए जाने की सतत जरूरत बनी हुई है। उनके अनुसार, ऐसा किया जाना दो कारणों से उपयुक्त होगा, पहला- यह कि हर्ड इम्यूनिटी (सामूहिक प्रतिरक्षण) हासिल करने के लिए व्यापक टीकाकरण में काफी समय लगेगा और दूसरी अहम बात यह है कि कोरोना वायरस के कुछ वैरिएंट पनप रहे हैं, जो टीके के असर को कम कर सकते हैं।

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