केंद्र में मोदी सरकार की धमाकेदार पारी पर सबसे बड़ा सवाल रोजगार सृजन के कमजोर आंकड़े से पैदा हुआ। पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने 7 प्रतिशत की जीडीपी ग्रोथ के दावे पर प्रश्नचिन्ह लगाया तो आर्थिक मोर्चे पर एनडीए सरकार का ट्रैक रेकॉर्ड अचानक सवालों के घेरे में आ गया। देश के केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने वित्त वर्ष 2019 के लिए 7.2 प्रतिशत विकास दर का अनुमान जताया, जो पिछले वित्त वर्ष के 6.7 प्रतिशत से ज्यादा है। सीएसओ ने कहा कि कृषि और विनिर्माण क्षेत्रों में सुधार के कारण ज्यादा वृद्धि होगी।
प्यू रिसर्च का सर्वे
अमेरिकी संगठन प्यू रिसर्च सेंटर के एक सर्वे में सामने आया कि रोजगार के अवसरों की कमी फिलहाल अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। स्टडी में पता चला है कि 67 प्रतिशत लोगों ने माना कि रोजगार के हालात बदतर हुए हैं। 47 प्रतिशत लोगों ने तो यहां तक कहा कि रोजगार की स्थिति बहुत बुरी है जबकि 21 प्रतिशत लोगों ने कहा कि मोदी के शासन में रोजगार की हालत सुधरी है।
अर्थशास्त्रियों की सहमति
अर्थशास्त्री भी इस बात पर एकमत हैं कि जीडीपी ग्रोथ के अनुपात में रोजगार सृजन नहीं हुआ है। कई अर्थशास्त्री प्राइवेट सेक्टर्स को पूंजी के अभाव, नोटबंदी के साथ-साथ रेरा और जीएसटी जैसे सुधारों के लागू होने, कृषि संकट और रियल एस्टेट सेक्टर में मंदी को इसका जिम्मेदार ठहराते हैं।
केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि अभी रोजगार सृजन और आर्थिक वृद्धि का संबंध पहले से कहीं ज्यादा खराब है। उन्होंने कहा, ‘हमें पिछले पांच वर्षों में केंद्र और राज्यों में रोजगार का अच्छा स्तर देखने को नहीं मिला। रोजगार सृजन का स्तर 7 प्रतिशत के ग्रोथ रेट के अनुरूप नहीं है। पुरानी पद्धति से जब हमारी वृद्धि दर 8 से 9 प्रतिशत की हुआ करती थी, तब रोजगार सृजन की दर भी ज्यादा तेज हुआ करती थी।’
ज्यादातर अर्थशास्त्री मानते हैं कि रोजगार सृजन की दर ग्रोथ रेट के बराबर या थोड़ी कम रहनी चाहिए। सबनवीस ने कहा कि केयर रेटिंग्स ने पिछले वर्ष एक स्टडी की थी जिसमें पता चला था कि इकॉनमी में रोजगार-सृजन की वृद्धि दर 3 से 4 प्रतिशत तक गिर गई है जो जीडीपी ग्रोथ रेट के आसपास भी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘पहले जब जीडीपी 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी तो रोजगार सृजन में वृद्धि का आंकड़ा 6 से 7 प्रतिशत का था।’
हालांकि, उन्होंने सीएसओ के जीडीपी डेटा पर कोई आशंका प्रकट नहीं की। दरअसल, खुद केयर रेटिंग्स ने वित्त वर्ष 2018-19 के लिए 6.9 प्रतिशत जबकि अगले वित्त वर्ष के लिए 7.3 से 7.5 प्रतिशत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान जताया है।
यहां से मिल रहा है झटका
आईटी, रिटेल, कंस्ट्रक्शन और फाइनैंशल सर्विसेज से मिलकर बना सर्विस सेक्टर देश में बड़े पैमाने पर नौकरियां देता है। लेकिन, कुछ वर्षों से जारी वैश्विक चुनौतियों, घरेलू मांग में सुस्ती आदि जैसी वजहों से ये सभी क्षेत्र मामूली रफ्तार से बढ़ रहे हैं।
प्राइवेट सेक्टर की पूंजी 2010-11 में 3.7 लाख करोड़ रुपये थी जो पिछले सात वर्षों से लगातार घट रही है। यह वित्त वर्ष 2018 के दौरान वित्त वर्ष 2007 के बाद से सबसे निचले स्तर पर आ गई। हालत यह है कि यह 13 प्रतिशत के सालाना गिरावट के साथ यह 1.5 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई।
प्राइवेट कैपेक्स में गिरावट का मतलब है कि बाजार में मांग घटी है जिससे प्राइवेट सेक्टर की उत्पादन क्षमता का भरपूर उपयोग नहीं हो रहा है। इनमें स्टील, बिजली और बुनियादी ढांचों के विकास से जुड़ी कंपनियां शामिल हैं जिन्हें पूंजी बढ़ाने के लिए कर्ज नहीं मिल रहे। भूमि अधिग्रहण और क्लियरेंस सर्टिफिकेट्स मिलने में देरी से इनका संकट और बढ़ जाता है।
यानी, सरकार जब अगले पांच वर्षों में जीडीपी को 5 लाख करोड़ डॉलर और अगले 8 वर्षों में 10 लाख करोड़ डॉलर के स्तर पर ले जाने का सपना देख रही है, तब इकॉनमी के बड़े सेक्टर्स नए रोजगार पैदा करने में असक्षम दिख रहे हैं।
- पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन ने 7% की GDP ग्रोथ के दावे पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया
- राजन ने सवाल उठाया कि अगर 7% की विकास दर हुई है तो रोजगार सृजन की गति इतनी मंद क्यों रही
- अर्थशास्त्री भी मानते हैं कि जीडीपी और रोजगार सृजन में वृद्धि दरों के बीच अच्छी तालमेल नहीं है
- विभिन्न कारणों के कारण सर्विस सेक्टर में मंदी और प्राइवेट पूंजी के अभाव रोजगार सृजन में कमजोरी की वजह माने जा रहे हैं