बाजार की बदलती परिस्थितियों और बंपर उपज से पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष प्याज की खेती करने वाले किसानों की आमदनी 42 अरब रुपये घट गई है। केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट में इस बात की पता चला है। इस वर्ष जनवरी महीने में कृषि बाजार उत्पाद समिति (एएमपीसी) के जरिए करीब 13.22 लाख टन प्याज 13,760 रुपये प्रति टन की दर से बिका था। इसी प्रकार, दिसंबर महीने में 13,310 रुपये प्रति टन के हिसाब से कुल 11.10 लाख टन प्याज की बिक्री हुई थी। रिपोर्ट कहती है कि यह 2017 में किसानों को मिली प्याज की कीमत के मुकाबले 61 प्रतिशत कम है।
उपज ज्यादा, दाम कम
देश के करीब एक-तिहाई प्याज का उत्पादन करने वाले राज्य महाराष्ट्र ने कीमतों में और बड़ी गिरावट देखी। यहां 5,180 रुपये प्रति टन की दर से प्याज बिके जो पिछले वर्ष की दर से 80 प्रतिशत कम है। कीमतों में इतनी बड़ी गिरावट का एक कारण यह हो सकता है कि पिछले पांच वर्ष के औसत उत्पादन के मुकाबले इस वर्ष प्याज की अनुमानित उपज 12.48 प्रतिशत ज्यादा रहना है। 210 लाख टन प्याज के उत्पादन का अनुमान था, लेकिन इस वर्ष आंकड़ा 236 लाख टन पर पहुंचने की उम्मीद है।
तीन तरह के प्याज
राज्य सरकार के कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘प्याज तीन तरह के होते हैं- खरीफ प्याज, पिछैती खरीफ प्याज और गृष्मकालीन या गरमा प्याज। हालांकि, पिछैती खरीफ प्याज, खरीफ प्याज के मुकाबले ज्यादा दिनों तक टिकता है और जल्दी खराब नहीं होता, लेकिन किसानों को उपज के दो से तीन हफ्ते के अंदर प्याज बेचना पड़ता है, चाहे उन्हें कोई भी कीमत मिले।’ उन्होंने कहा, ‘हालांकि, गरमा प्याज से इस वर्ष ज्यादा कीमत मिलने की उम्मीद है क्योंकि राज्य में सुखाड़ की स्थिति के मद्देनजर फसल बर्बाद होने का खतरा है। कम उपज के कारण किसानों को अच्छी कीमत मिल सकती है।’
सरकारी विफलता
नाशिक, महाराष्ट्र का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक क्षेत्र है। यहां से शेतकरी संगठन के नेता गिरिधर पाटील ने कहा, ‘हालांकि, किसानों को बिचौलियों को किनारे लगाकर एपीएमसी के बाहर भी प्याज बेचने की अनुमति है, लेकिन यह कागजों तक ही समीति होकर रह गई है क्योंकि सरकार किसानों को सुपरमार्केट्स, होटल्स, कैटरर्स और दूसरे बड़े खरीदारों से जोड़ने का इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में विफल रही है।’
आयात-निर्यात नीति
पाटील ने आगे कहा, ‘इसके अलावा, हमारी आयात-निर्यात नीति भी बदलती रहती है। अगर घरेलू बाजार में कीमत थोड़ी भी बढ़ती है तो निर्यात में कटौती का आदेश आ जाता है और किसान ऊंची कीमत पाने से वंचित रह जाते हैं। ऐसी हालत में घरेलू बाजार में दाम बढ़ने पर पाकिस्तान से भी प्याज मंगाया जाता है। लेकिन, जब घरेलू बाजार में कीमतें बिल्कुल नीचे चली जाती हैं तो ऐसी तत्परता देखने को नहीं मिलती है और तब निर्यात की मात्रा नहीं बढ़ाई जाती है।’