प्रयागराज मेंअर्ध – कुंभ की शुरुआत हो चुकी है. मकर संक्रांति के दिन पहले शाही स्नान का आयोजन किया गया. इस शाही स्नान में केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने संगम में डुबकी लगाई.
स्मृति ने इसकी तस्वीर ट्विटर पर शेयर की है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कुंभ की शुभकामनाएं दी हैं. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है, “मुझे आशा है कि इस अवसर पर देश-विदेश के श्रद्धालुओं को भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक विविधताओं के दर्शन होंगे.”
“मेरी कामना है कि अधिक से अधिक लोग इस दिव्य और भव्य आयोजन का हिस्सा बनें.”
इस अवसर पर तट पर महानिर्वाणी और अटल अखाड़ा के साधु-संतों ने डुबकी लगाई. इनके अलावा कई अखाड़ों से जुड़े संत भी एक के बाद एक संगम पर पहुंचें.
कुंभ के श्रद्धालुओं पर हेलीकॉप्टर से फूलों की बारिश भी की गई है.
49 दिन तक चलने वाले इस मेले का समापन चार मार्च को होगा और इस बीच आठ मुख्य पर्वों पर शाही स्नान होगा.
माना जा रहा है कि इस बार के कुंभ मेले में क़रीब 12 करोड़ लोगों के आने की संभावना है जिसमें 10 लाख के क़रीब विदेशी नागरिक भी होंगे.
कुंभ के ज़िलाधिकारी विजय किरण आनंद के मुताबिक़, इस बार मेला क्षेत्र क़रीब 45 वर्ग किमी के दायरे में फैला है, जबकि इससे पहले यह सिर्फ़ 20 वर्ग किमी इलाक़े में ही होता था.
शाही स्नान में विभिन्न अखाड़ों से संबंध रखने वाले साधु-संत सोने-चांदी की पालकियों, हाथी-घोड़े पर बैठकर संगम में स्नान के लिए पहुंचते हैं.
ये साधु-संत अपनी-अपनी शक्ति और वैभव का प्रदर्शन करते हैं जिसके ज़रिए शस्त्र और शास्त्र के समन्वय का संदेश देते हैं.
भारत में कुल चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक.
इनमें से हर स्थान पर बारहवें साल कुंभ होता है. प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह साल के अंतराल पर अर्धकुंभ भी होता है.
परंपरा के अनुसार इस बार अर्धकुंभ ही पड़ रहा है लेकिन सरकार ने अर्धकुंभ का नाम बदलकर कुंभ और कुंभ का नाम महाकुंभ कर दिया है.
कुंभ मेला का आयोजन सदियों से होता आ रहा है लेकिन हाल के दशकों में इसने बहुत बड़ा रूप ले लिया है. 2001 में आयोजित कुंभ मेला इलाहाबाद का पहला ऐसा ‘मेगा मेला’ था.
इस साल के आयोजन का बजट 28 अरब रुपये है और 49 दिनों के इस आयोजन के दौरान ब्रिटेन और स्पेन की कुल आबादी जितनी संख्या में यहां लोगों के पहुंचने की संभावना है.
कुंभ में हिंदू तीर्थयात्री गंगा, यमुना और पौराणिक नदी सरस्वति के संगम पर एकत्रित होते हैं.
सरस्वती नदी अब अदृश्य हो चुकी है.
1946 में यहां खोया-पाया कैंप लगाया गया था और तभी से यह अनगिनत परिवारों को भीड़ में बिछुड़े अपनों से मिलवाने में मदद करता है.