बीजेपी की ताजा लिस्ट में मेनका गांधी और वरुण गांधी की सीटों की अदला-बदली ने चर्चाओं को बल दिया। इसकी वजह सुलतानपुर से कांग्रेस उम्मीदवार संजय सिंह बताए जा रहे हैं जो सुलतानपुर में अपना असर दिखाने के लिए एक बार फिर चुनावी मैदान में उतर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी की हालिया लिस्ट में मां-बेटे की सीटों की अदला-बदली ने सभी का ध्यान खींचा। इस बार वरुण गांधी अपनी मां की सीट पीलीभीत से चुनाव लड़ेंगे जबकि मेनका सुलतानपुर से चुनावी मैदान में उतरेंगी जहां से मौजूदा सांसद वरुण गांधी हैं। यह सीट कई मायनों में खास है क्योंकि जब सुलतानपुर का परिसीमन नहीं हुआ था तो यह अमेठी के हिस्से में आता था और यहां से संजय गांधी पूर्व सांसद रह चुके हैं।
इस बार मेनका का सामना संजय गांधी के ही करीबी रह चुके डॉ. संजय सिंह से होगा जो कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते हैं। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब क्षेत्र में उनका प्रभाव पहले जैसा नहीं रहा। उनकी पत्नी अमिता सिंह पिछले 3 चुनाव हार चुकी हैं लेकिन राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस बार सीटों की अदला-बदली की कॉल मेनका ने ली थी जिसकी एक वजह संजय सिंह भी हैं। दरअसल मेनका नहीं चाहती थीं कि वरुण गांधी सुलतानपुर सीट से संजय सिंह के खिलाफ उतरे चुनाव लड़ें क्योंकि इस बार उनकी स्थिति यहां अच्छी नहीं बताई जा रही है। दूसरा, वरुण के बीजेपी के नेतृत्व के साथ भी बहुत अच्छे संबंध नहीं माने जाते हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने ट्विटर हैंडल पर नाम के आगे चौकीदार लिखते ही जहां बीजेपी के सभी नेताओं में अपने-अपने ट्विटर हैंडल में नाम के साथ चौकीदार लिखने की होड़ मच गई थी, वरुण ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। आखिरकार मंगलवार को लिस्ट आने से पहले वरुण ने अपने नाम के आगे चौकीदार लिखा और टिकट मिलने पर पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का शुक्रिया अदा किया।
वरुण को मिली सेफ सीट
पॉलिटिकल एक्सपर्ट शरद प्रधान ने बताया, ‘बेशक वरुण ने सुलतानपुर में काम किया। अपनी सांसद निधि ने उन्होंने गरीबों के लिए मकान भी बनवाए थे और जो काफी चर्चा में रहा लेकिन कहीं न कहीं यहां आत्मविश्वास की कमी का मसला लग रहा है। मेनका नहीं चाहती थीं कि वरुण सुलतानपुर सीट से लड़े जहां उनका सामना संजय सिंह से हो।’ उन्होंने आगे कहा कि ऐसे में मेनका ने अपनी सेफ सीट पीलीभीत वरुण के हवाले कर दी। मेनका पीलीभीत सीट से छह बार सांसद रह चुकी हैं। संजय गांधी की वजह से राजनीति में आए संजय सिंह
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब मेनका ने वरुण के लिए अपनी सीट की कुर्बानी दी हो। इससे पहले 2009 में वरुण ने अपनी मां की सीट पीलीभीत से ही पहला चुनाव जीता था और फायरब्रैंड नेता के रूप में उभरे थे। इस बार सुलतानपुर में मेनका का सामना राजघराने से ताल्लुक रखने वाले संजय सिंह से होगा। संजय सिंह गांधी परिवार और खासकर संजय गांधी और राजीव के करीबी मित्र रह चुके हैं। कहा जाता है कि संजय गांधी की वजह से ही संजय सिंह राजनीति में आए थे और बाद में उनके सहयोगी भी रहे। उस वक्त राजा परिवार से होने की वजह से संजय सिंह की यूपी की सियासत में काफी चर्चा थी। यहां तक कि यूपी के मुख्यमंत्री तक के लिए संजय सिंह का नाम सामने आने लगा।
संजय सिंह के चचिया ससुर को बनाया सीएम
शरद प्रधान बताते हैं, ‘जब वीपी सिंह मुख्यमंत्री बने तो अखबारों में यह छापा जाता था कि संजय सिंह के चचिया ससुर को सीएम बनाया गया।’ दरअसल वीपी सिंह संजय सिंह के चचिया ससुर लगते थे। 1980 में ही जब संजय गांधी ने अमेठी से पहला संसदीय चुनाव लड़ा था तो संजय सिंह ने उन्हें समर्थन दिया था। इसके बाद वह राजीव गांधी के करीबी हो गए। लेकिन बोफोर्स मामले में राजीव गांधी की सरकार घिरी तो संजय सिंह ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ दिया था और अमेठी से विधान सभा चुनाव लड़ा था। यह अलग मत है कि कांग्रेस में रहकर जहां वो सभी विपक्षी पार्टियों की जमानत जब्त करा देते थे, वहीं कांग्रेस से अलग होकर जीत नहीं दर्ज करा सके।
कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी के टिकट से लड़ा चुनाव
1998 में पहली बार डॉ. संजय सिंह ने बीजेपी का दामन थामा था और लोकसभा का चुनाव अमेठी से लड़ा था जिसमें उन्होंने कांग्रेस के डॉ. सतीश शर्मा को शिकस्त दी थी। उस समय भी ये कयास लगाए जा रहे थे कि एनडीए सरकार में उन्हें जगह मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 1999 में सोनिया गांधी खुद सक्रिय राजनीति में आ गईं। संजय सिंह ने चुनाव लड़ने और जीतने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, इसके बावजूद उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
2009 में बने सुलतानपुर से सांसद
इसके बाद बीजेपी जैसे-जैसे राज्य में पिछड़ती गई, संजय सिंह पार्टी से किनारा करने लगे। 2004 में जब यूपीए की सरकार आई, तभी से उनका झुकाव कांग्रेस की तरफ बढ़ा और वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में वह सुलतानपुर से कांग्रेस के टिकट पर लड़े और जीते। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपनी पत्नी अमिता सिंह को वरुण गांधी के खिलाफ सुलतानपुर लोकसभा सीट से उतारा था लेकिन उन्हें करारी शिकस्त मिली थी।
अपना असर बचाने के लिए मैदान में उतरे संजय सिंह
इससे पहले 2012 विधानसभा चुनाव में अमिता सिंह एसपी के उम्मीदवा गायत्री प्रजापति से हारी थीं।, फिर 2017 का विधानसभा चुनाव संजय सिंह की पहली पत्नी और बीजेपी उम्मीदवार गरिमा सिंह के खिलाफ लड़कर हारी थीं। विश्लेषकों का मानना है कि इस बार अपना असर बचाने के लिए संजय सिंह खुद मैदान में हैं इसलिए मेनका और उनके बीच मुकाबला दिलचस्प होगा।