मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार द्वारा विभिन्न मीडिया संगठनों के खिलाफ करीब आठ साल पूर्व वर्ष 2012 और 2013 के दौरान दायर किए गए 28 मानहानि मामलों को खारिज कर दिया है। ये मामले राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता की सरकार में दाखिल किए गए थे। इन मामलों को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी भी की और कहा कि आपराधिक मानहानि के मामलों का इस्तेमाल राज्य लोकतंत्र का गला घोंटने के लिए नहीं कर सकते हैं।.
जस्टिस अब्दुल कुद्दोज (Abdul Quddhose) ने मीडिया संगठनों के एक समूह द्वारा उनके खिलाफ दायर मानहानि के मुकदमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि लोक सेवकों और संवैधानिक पदाधिकारियों को आलोचनाओं का सामना करने में सक्षम होना चाहिए, क्योंकि वे लोगों के लिए उत्तरदायी होते हैं।
अपने 152 पन्नों के फैसले में हाई कोर्ट ने प्रेस की स्वतंत्रता का जिक्र करते हुए कहा कि आपराधिक मानहानि कानून आवश्यक वास्तविक मामलों के लिए इस्तेमाल में लाए जाने के लिए है। यह कानून राज्य या राज्य के लोक सेवकों को इसके दुरुपयोग का अधिकार नहीं देता है।
कोर्ट ने कहा कि एन राम, सिद्धार्थ वरदराजन, नकेरन गोपाल आदि के खिलाफ दायर इन आपराधिक मामलों में राज्य की ‘मानहानि’ नहीं हुई है। इसके साथ ही हाई कोर्ट का यह भी कहना था कि राज्य को एक अभिभावक की तरह व्यवहार करना चाहिए।
तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता की सरकार में मीडिया संस्थानों के खिलाफ दायर किए गए थे ये मामले