केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को कृषि भवन में एक महत्वपूर्ण बैठक की. इस दौरान उन्होंने देश में दलहन की आत्मनिर्भरता पर आठ राज्यों के मंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चर्चा की.
शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि खरीफ सीजन शुरू हो चुका है. ऐसे में राज्यों के साथ चर्चा कर प्लानिंग करने का यह उपयुक्त समय है. भारत, दुनिया का सबसे बड़ा दलहन उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक है. 2023-24 के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, देश में दलहन की फसल 270.14 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगाई गई है. इसमें 907 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उत्पादकता पर 244.93 लाख टन उत्पादन होने की संभावना है. यह 2015-16 की तुलना में 50 प्रतिशत ज्यादा है. मैं इस उपलब्धि को हासिल करने में मदद करने के लिए राज्यों के सामूहिक प्रयासों के लिए उन्हें धन्यवाद देता हूं. परंतु हम और बहुत कुछ कर सकते हैं.
दलहन में आत्मनिर्भर बनने का लिया संकल्प
तुअर, मसूर और उड़द उत्पादन में सामूहिक प्रयासों से आत्मनिर्भर बनना है. हम सब मिलकर काम करें तो दो साल में आयात पर निर्भरता पूर्णतः खत्म कर सकते हैं. खरीफ की तीन महत्वपूर्ण दलहनी फसलों- तुअर, उड़द और मूंग पर जोर देना होगा.
अब नेफेड और एनसीसीएफ खरीदेंगे तुअर और मसूर
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में किसानों के लिए हमारी प्रतिबद्धता है. इसलिए किसानों से सीधे जुड़ते हुए, नेफेड और एनसीसीएफ को किसानों से तुअर और मसूर खरीदने का अधिकार दिया गया है. केंद्र और राज्य सरकारें किसानों को खाद, बीज सहित अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित करें.
नई तरह के बीज किए जा रहे हैं तैयार
उन्होंने कहा कि बीज के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए आईसीएआर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पल्सेस रिसर्च (आईआईपीआर), कानपुर के तत्वावधान में 150 बीज केंद्र विशेष रूप से नई दलहन किस्मों के लिए गुणवत्ता वाले बीज तैयार करने पर कार्य कर रहे हैं. कृषि मैपर ऐप के द्वारा किसानों को फायदा पहुंचाना चाहिए.
दलहन उत्पादन बढ़ाने के दिए निर्देश
शिवराज सिंह चौहान ने बैठक में महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए. उन्होंने मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, बिहार और तेलंगाना में मसूर के लिए परती भूमि को लक्षित करने के निर्देश दिए. तुअर की खेती में उत्पादकता बढ़ाने के लिए बेहतर कृषि पद्धतियां अपनाने पर जोर दिया.
उत्पादकता में किए जाएंगे सुधार
चौहान ने कहा कि एनएफएसएम दलहनी खेती के लिए परती क्षेत्रों को लक्षित कर रहा है. दलहन एवं तिलहन की उपयुक्त किस्मों को शुरू करके और खरीफ की धान की फसल की कटाई के बाद प्रभावी भूमि के उपयोग को प्रोत्साहित कर रहा है. 2025-26 तक दलहनी फसलों जैसे अरहर, उड़द, मूंग, चना, मसूर आदि के लिए समर्पित क्षेत्र का पर्याप्त विस्तार और साथ ही उत्पादकता में सुधार करने का लक्ष्य है, जिससे दलहन उत्पादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा.
मॉडल दलहन ग्रामों को भी दिया जा रहा बढ़ावा
तुअर के उत्पादन वृद्धि पर है फोकस
2027-28 तक आत्मनिर्भरता हमारा प्रमुख लक्ष्य है. हमें फसल विविधीकरण सुनिश्चित करके एवं कम उत्पादकता वाले जिलों पर ध्यान केंद्रित करके बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है. इसमें पर्याप्त संभावनाएं हैं. तुअर की अल्पकालिक किस्मों को उगाने के लिए धान की मेड़ का उपयोग किया जाना, एक ऐसी संभावना है, जिस पर भी विचार किया जा सकता है.
आईसीएआर द्वारा मॉडल दलहन ग्रामों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के जरिये किसानों को अधिकाधिक लाभ मिलना सुनिश्चित करना होगा. विस्तार प्रणाली द्वारा भी किसानों के हित में सभी कार्य करें. किसानों को उच्च उपज देने वाली किस्मों और उचित फसल पद्धतियों का लाभ राज्यों के माध्यम से होना चाहिए.
इन राज्यों पर किया जाएगा फोकस
असम, छत्तीसगढ़, बिहार, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में मसूर के लिए बड़े पैमाने पर चावल की परती भूमि को लक्षित किया जा सकता है. अंतर-फसलन के माध्यम से तुअर की खेती में पर्याप्त वृद्धि की जा सकती है. उत्पादकता बढ़ाने के लिए बेहतर कृषि पद्धतियां अपनाना जरूरी है. उपज के अंतर को दूर करने पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है.
गुणवत्तापूर्ण बीज की उपलब्धता बढ़ाने पर विचार
केंद्र सरकार, नवीनतम किस्मों के प्रचार-प्रसार के लिए मिनीकिट दे रही है. इनके माध्यम से भी दलहन उत्पादन में इजाफा करने पर राज्य ध्यान दें. गुणवत्तापूर्ण बीज की उपलब्धता बढ़ाने के लिए बीज हब बनाए गए हैं भारत सरकार तुअर, उड़द और मसूर के उत्पादन का 100 प्रतिशत खरीद करने के लिए प्रतिबद्ध है. राज्य सरकारों से अनुरोध है किसानों को इस अभियान के बारे में जागरूक करें और सुनिश्चित खरीद से लाभान्वित करें.