स्पीकर ने शिंदे-उद्धव दोनों गुटों के विधायकों को अयोग्य नहीं करार दिया, इसके पीछे की वजह भी बताई

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महाराष्ट्र में शिवसेना विधायकों की अयोग्यता के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद विधानसभा स्पीकर ने अपना फैसला दे दिया है। इस फैसले से उद्धव गुट को जहां बड़ा झटका लगा है वहीं, थोड़ी राहत भी मिली है। दरअसल, विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष दोनों पक्षों ने 34 अयोग्यता याचिकाएं दायर की थीं। इसमें खुद को असली पार्टी बताने और दलबदल विरोधी कानूनों का हवाला देते हुए दूसरे के विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की गई थी। अब चूंकि, विधानसभा स्पीकर ने अपने फैसले में सभी विधायकों की सदस्यता को बरकरार रखा है। ऐसे में उद्धव गुट के विधायक भी अयोग्य नहीं हैं।

स्पीकर ने अयोग्यता पर दिया ये फैसला
विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने कहा कि विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग करने वाली सभी याचिकाएं खारिज कर दी गई हैं। ऐसे में शिवसेना के किसी भी गुट का कोई भी विधायक अयोग्य नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने शिंदे गुट को ही असली शिवसेना माना है।

अयोग्य नहीं करार देने की वजह क्या बताई?
विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने विधायकों की अयोग्यता की मांग वाली याचिकाएं खारिज कर दी। इस दौरान उन्होंने कहा कि 21 जून की एसएसएलपी बैठक से विधायकों की अनुपस्थिति को ही मात्र आधार बनाकर विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने कहा कि चूंकि चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को ही असली शिवसेना माना है, ऐसे में उस समय चीफ व्हिप के रूप में भरत गोगावले नियुक्त थे तो सुनील प्रभु को विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार नहीं था। इस आधार पर विधायकों को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।

किन विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की गई थी
दरअसल, शिवसेना में टूट के बाद दोनों धड़ों ने एक-दूसरे के विधायकों को अयोग्य करार देने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी। इसमें उद्धव गुट के 14 विधायक और शिंदे गुट के 16 विधायक थे, जिसमें से एक सीएम शिंदे खुद थे।

‘सुप्रीम’ निर्देश के बाद स्पीकर का फैसला
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर ने यह फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष से कहा था कि वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं को जल्द अपने सामने सूचीबद्ध करें। कोर्ट ने अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए एक समय-सारणी निर्धारित करने का भी निर्देश दिया था।

कोर्ट ने कहा था कि स्पीकर संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत कार्यवाही को अनिश्चितकाल तक टालकर नहीं रख सकते। कोर्ट के निर्देशों के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए। सीजेआई ने संविधान पीठ के फैसले का जिक्र करते हुए पूछा था कि कोर्ट के 11 मई के फैसले के बाद स्पीकर ने क्या किया? पीठ ने यह भी कहा था कि मामले में दोनों पक्षों को मिलाकर कुल 34 याचिकाएं लंबित हैं।

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