
भारी-भरकम चुनाव प्रचार और बड़े मुद्दों पर दांव खेलने के बाद भी कर्नाटक भाजपा के हाथ से फिसल गया है। पार्टी को सबसे करारा झटका उन्हीं लिंगायत सीटों पर लगा है जो राज्य में उसकी सबसे बड़ी राजनीतिक शक्ति माने जाते थे। राजनीतिक गलियारों में इसे ‘येदियुरप्पा प्रभाव’ कहा जा रहा है। भाजपा को अपने बूढ़े शेर की उपेक्षा भारी पड़ी और लिंगायत मतदाताओं ने उससे किनारा कर लिया। पार्टी नेताओं का भी मानना है कि यदि चुनाव में केंद्रीय नेतृत्व ने सब कुछ अपने मनमाने आधार पर निर्णय न किया होता तो आज चुनाव परिणाम कुछ और हो सकता था।
भाजपा ने कर्नाटक को लेकर उसी समय गलती करनी शुरू कर दी थी जब उसने राज्य में येदियुरप्पा से इस्तीफा ले लिया। केवल जनरेशन चेंज और भ्रष्टाचार विरोधी फैक्टर कमजोर करने के लिए यह दांव खेला गया था, लेकिन सभी जानते हैं कि येदियुरप्पा इस निर्णय से खुश नहीं थे। हालांकि, इसके बाद भी येदियुरप्पा अपने बेटे विजयेंद्र को मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पार्टी ने परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए उनकी इस मांग को भी अनसुना कर दिया।
येदियुरप्पा की सबसे ज्यादा उपेक्षा चुनाव में टिकट बांटने के दौरान किया गया। पार्टी में ही चर्चा है कि कर्नाटक की सभी सीटों पर उम्मीदवारों का नाम तय करने में प्रह्लाद जोशी और कर्नाटक से आने वाले पार्टी के मजबूत केंद्रीय नेता बीएल संतोष की चली। यह संकेत भी भाजपा के लिए ठीक नहीं साबित हुआ।
येदियुरप्पा फैक्टर पर भाजपा की सबसे बड़ी गलती तब सामने आई जब उसने उनके बेटे को उनकी पारंपरिक सीट शिकारीपुरा से टिकट देने में टालमटोल किया। अंततः पार्टी ने येदियुरप्पा के बेटे को उनकी सीट पर टिकट दे दिया, लेकिन यह निर्णय करने में इतनी देर की गई कि तब तक लिंगायत नेताओं के बीच यह संदेश चला गया कि भाजपा लिंगायतों की अनदेखी कर रही है।
पार्टी ने जिस तरह लिंगायत नेताओं जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी को टिकट देने से इनकार कर दिया, उसने येदियुरप्पा वाले फैक्टर पर जनता के बीच रही-सही गलतफहमी भी दूर कर दी और उन्हें यह लगने लगा कि पार्टी उनके नेताओं की अनदेखी कर रही है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में लिंगायत मतदाताओं ने कांग्रेस का रुख कर लिया या अपने घर बैठ गए। इससे भाजपा की चुनावी संभावनाओं को करारा झटका लगा।
पार्टी के सभी नेता यह जानते हैं कि लंबे समय तक येदियुरप्पा के दाहिना हाथ रहे जगदीश शेट्टार अभी भी उनके बेहद भरोसेमंद हैं। कहा जाता है कि शेट्टार को अंतिम समय तक येदियुरप्पा ने ही टिकट दिलाने के नाम पर रोक कर रखा था, लेकिन केंद्र के एक नेता की शेट्टार से ठीक से न बनने के कारण उन्हें टिकट नहीं दिया गया। इस पूरी उहापोह में मतदाताओं के बीच नकारात्मक संदेश गया है।
काश पीएम अपने रोड शो में येदियुरप्पा को साथ ले लेते
कर्नाटक चुनाव में पार्टी की प्रचार की कमान संभालकर लौटे एक भाजपा कार्यकर्ता ने कहा कि जनता के बीच जाने के बाद यह समझ आ रहा था कि लिंगायत मतदाता पार्टी से खुश नहीं हैं। इसके बाद भी उसी रणनीति पर अंतिम दौर तक चला गया और इसका नुकसान हुआ।
उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोड शो कर रहे थे, तब यदि उन्होंने येदियुरप्पा को भी अपने साथ ले लिया होता, और उन्हें भी अपने साथ स्थान दे दिया होता तो पूरे राज्य में यह संदेश दिया जा सकता था कि भाजपा लिंगायतों के साथ डटकर खड़ी है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा।