राष्ट्रीय युवा दिवस: स्वामी विवेकानंद से जुड़ी ये रोचक बातें, हर किसी को कर सकती हैं प्रेरित

भारत के आध्यात्म गुरु स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को मनाई जा रही है। इस दिन को देश में राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद का जीवन हर किसी के लिए आदर्श है। उनके दिए भाषण और अनमोल विचार युवाओं के लिए सफलता के मूलमंत्र की तरह हैं। ईश्वर और ज्ञान की प्राप्ति के लिए सांसारिक मोह माया त्याग कर स्वामी विवेकानंद ईश्वर और ज्ञान की प्राप्ति के मार्ग पर चल दिये।
गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बनने के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसी ज्ञान को सभी के जीवन में आत्मसात करने के लिए विवेकानंद ने प्रेरणादायक संदेश देना शुरू किया। स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी ऐसी ही कई रोचक बातें हैं, जो हर किसी के लिए सफलता का मूलमंत्र बन सकती हैं।
सन्यासी क्यों बने विवेकानंद जी
कोलकाता में जन्म लेने वाले विवेकानंद का असली नाम नरेंद्र नाथ था। उनकी माता धार्मिक महिला थीं, जो पूजा पाठ में ध्यान लगाती थीं। बचपन से ही नरेंद्रनाथ अपनी माता के आचरण, व्यवहार से काफी प्रभावित थे। इसी का असर था कि महज 25 वर्ष की कम उम्र में उन्होंने सांसारिक मोहमाया को त्यागकर सन्यास ले लिया और ज्ञान की तलाश में चल पड़े ।
फकीर ने बचाई विवेकानंद की जान

1890 में जब स्वामी विवेकानंद हिमालय की यात्रा पर थे, तो उस दौरान उनके साथ स्वामी अखंडानंद भी थे। एक रोज काकड़ीघाट में पीपल के पेड़ के नीचे स्वामी विवेकानंद तपस्या में लीन थे, तभी उन्हें इस जगह ज्ञान की प्राप्ति हुई। वहाँ से स्वामी विवेकानंद अल्मोड़ा से चलते हुए कुछ दूर करबला कब्रिस्तान के पास पहुंचे तो भूख और थकान के कारण अचेत हो कर गिर पड़े। एक फकीर ने उन्हें खीरा खिलाया, जिससे वह चेतना में लौटे।

धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद का भाषण
ये भारत के इतिहास में देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि और गौरवपूर्ण रहा कि 11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित हुए धर्म संसद में भारत की ओर से स्वामी स्वामी विवेकानंद शामिल हुए। इस धर्म सम्मेलन में विवेकानंद ने हिंदी में भाषण की शुरुआत करते हुए कहा ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’। उनके भाषण के बाद पूरा हाॅल दो मिनट तक तालियों से गूंजता रहा।
स्वामी विवेकानंद के भाषण के मुख्य बिंदु
  • ‘अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों, मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के सताए लोगों को शरण में रखा है।’
  • ‘मैं आपको अपने देश की प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से भी धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।’
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