नई दिल्ली |
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि लोकतांत्रिक सरकार की आधारशिला चुनावी प्रक्रिया है और ‘‘सोशल मीडिया के कारण होने वाले हेरफेर” से उनको खतरा होता है। न्यायालय ने कहा कि डिजिटल मंच ‘‘कई बार पूरी तरह अनियंत्रित” होते हैं और उनकी अपनी चुनौतियां होती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिजिटल युग में सूचना विस्फोट नई चुनौतियां पैदा करने में सक्षम है जो ऐसे मुद्दों पर बहस को अलग दिशा दे देता है जहां विचार पूरी तरह बंटे हुए होते हैं और उदारवादी लोकतंत्र के सफलतापूर्वक काम करने के लिए आवश्यक है कि नागरिक सूचनाओं के आधार पर निर्णय कर सकें।
न्यायमूर्ति एस. के. कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि इन सोशल मीडिया की क्षमता काफी ज्यादा है जो सीमाओं से परे है और ये बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेट हैं जिनके पास काफी संपत्ति होती है और वे प्रभाव डालने में सक्षम होते हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘इन मंचों का प्रभाव सीमा पार की आबादी तक होता है। फेसबुक ऐसा ही एक मंच है।” पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हृषिकेश राय भी शामिल थे। शीर्ष अदालत ने 188 पन्नों के अपने फैसले में यह टिप्पणी की।