कांवड़ मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों पर प्रमुखता से नाम प्रदर्शित करने पर देशव्यापी बहस छिड़ चुकी है। एक तरफ नेताओं के बीच जुबानी जंग छिड़ी हुई है, दूसरी तरफ दुकानों के बाहर नाम प्रदर्शित करने का सिलसिला जारी है। वहीं सीएम योगी ने इस मामले पर सख्त रुख अपनाते हुए साफ कह दिया है कि पूरे प्रदेश में कांवड़ मार्गों पर दुकानदारों को नाम लिखना होगा। इससे सहयोगी दल भी खफा हो गए हैं। बहस और नेताओं की जुबानी जंग के बीच गुरुवार शाम को और शुक्रवार सुबह दुकानदार व ठेले वाले नाम और पहचान अंकित करते नजर आए।
विपक्षी पार्टियों के नेताओं के साथ-साथ सहयोगी पाटियों की भी नाराजगी झेलनी पड़ रही है। वहीं जेडीयू से लेकर आरएलडी तक की भी नकारात्मक प्रतिक्रिया सामने आई हैं। रालोद के प्रदेश अध्यक्ष ने भी इस निर्देश के लिए नारजगी जाहिर की है। वहीं कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि ये नफरत को बढ़ावा देने वाला आदेश है, ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। उधर भाजपा नेता संगीत सोम ने आदेश का समर्थन करते हुए अखिलेश यादव पर पलटवार किया है।
पीएम के नारे का उल्लंघन है ये आदेश: केसी त्यागी
जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि बिहार में इससे भी बड़ी कांवड़ यात्रा होती है, वहां ऐसा कोई आदेश लागू नहीं होता। जो प्रतिबंध लगाए गए हैं। वे प्रधानमंत्री के ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के नारे का उल्लंघन हैं। ये आदेश बिहार, राजस्थान और झारखंड में लागू नहीं है। अच्छा होगा कि इसकी समीक्षा की जानी चाहिए।
भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि कुछ अति उत्साही अधिकारियों के आदेश हड़बड़ी में गड़बड़ी वाली अस्पृश्यता की बीमारी को बढ़ावा देते हैं। आस्था का सम्मान होना ही चाहिए, पर अस्पृश्यता का संरक्षण नहीं होना चाहिए। साथ ही लिखा-
जन्म जात मत पूछिए, का जात अरू पात।
रैदास पूत सब प्रभु के, कोए नहि जात कुजात।
आदेश का समर्थन, अखिलेश यादव कर रहे राजनीति: मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी
मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कहा कि यह निर्देश हिंदू-मुस्लिम टकराव को रोकने के लिए व्यवस्था करने के लिए दिया गया था। मैं इसका समर्थन करता हूं। हालांकि, समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहे हैं। मैं उनसे अनुरोध करता हूं कि वे हिंदू और मुसलमानों के बीच विभाजन पैदा न करें।
रालोद प्रदेश अध्यक्ष बोले-गैर संवैधानिक निर्णय
वहीं रालोद के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि उत्तर प्रदेश में प्रशासन को दुकानदारों को अपनी दुकान पर अपना नाम और धर्म लिखने का निर्देश देना जाति और सम्प्रदाय को बढ़ावा देने वाला कदम है। प्रशासन इसे वापस ले। यह गैर संवैधानिक निर्णय है।
हालांकि प्रदेश अध्यक्ष के बयान पर कार्यकर्ताओं ने टिप्पणी करनी शुरू कर दी है। रालोद के एक कार्यकर्ता का कहना है कि पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बगैर क्रिया के ही प्रतिक्रिया दे रहे हैं। जब सरकार में भागीदार हैं तो इसे अलग तरीके से डिफाइन नहीं करना चाहिए।
भाजपा नेता संगीत सोम ने किया आदेश का स्वागत, अखिलेश यादव पर किया पलटवार
भाजपा के फायर ब्रांड नेता कहे जाने वाले संगीत सोम ने सोशल मीडिया पर लिखा कि कावड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी शासनादेश के अनुसार दुकानदारों को अपनी दुकान के बाहर नाम लिखने के लिए कहा गया है, केवल इसी बात को लेकर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के द्वारा जिस प्रकार से आपत्ति व्यक्त की गई है वह उनके घोर सांप्रदायिक चरित्र को उजागर करने के लिए पर्याप्त है। अनेकों बार सोशल मीडिया, टीवी चैनल पर प्रसारित खबरों में देखा गया कि किस प्रकार से एक धर्म विशेष के लोगों द्वारा किसी भी खाने पीने की वस्तुओं में थूकते हुए, पेशाब करते हुए इस देश के लोगों ने देखा है।
कावड़ यात्रा की पवित्रता को कायम रखने के लिए बहुत जरूरी है कि आस्थावान कावड़ यात्री जिस दुकान से कुछ खाने पीने की वस्तु खरीद रहा है वह जाने कि उसकी तीर्थ यात्रा की पवित्रता को अक्षुण रखने के प्रति वह दुकानदार कितना निष्ठावान है, निसंदेह हिंदू कांवड़ यात्री के आहार की पवित्रता कायम रखने के लिए तीर्थ यात्रियों को यह छूट होनी चाहिए कि वह किस दुकानदार से सामान खरीदे और किससे नहीं, वैसे भी यह उपभोक्ता के अधिकार का मामला है। उत्तर प्रदेश सरकार का यह आदेश स्वागत योग्य है और मैं मुक्त कंठ से इसकी सराहना करता हूं ।
पारदर्शिता में कोई बुराई नहीं: कपिल देव अग्रवाल
कौशल विकास राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल ने कहा कि विपक्ष बेवजह मामले को तूल दे रहा है। पारदर्शिता में क्या बुराई है। नियम किसी जाति के लिए या धर्म के लिए नहीं है। सर्वसमाज के दुकानदारों को ऐसा करने के लिए कहा गया है।
संजीव बालियान ने अखिलेश पर साधा निशाना
पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालियान ने एक्स पर पोस्ट में लिखा कि मुजफ्फरनगर पुलिस की ओर से जारी आदेश, जिसमें सभी दुकानों पर नाम लिखना, जो सभी के लिए अनिवार्य है, एक पूर्व-प्रचलित व्यवस्था है। 2013 के दंगों के समय सपा सरकार द्वारा केवल मुस्लिमों को विस्थापित मानकर पांच लाख रुपये के मुआवजे का आदेश एक धार्मिक विभेद था।
सपा सांसद बोले-मुजफ्फरनगर के नाम पर ना करें राजनीति
मुजफ्फरनगर से सपा सांसद हरेंद्र मलिक ने कहा कि मुजफ्फरनगर के नाम पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए।सभी को सांप्रदायिक सौहार्द बनाकर रखना है।
दंगा झेल चुके, नई शुरुआत नहीं होने देंगे
भाकियू प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने कहा कि मुजफ्फरनगर के लोग 2013 का दंगा झेल चुके हैं। इस तरह की नई शुरुआत नहीं होने देंगे। हिंदू और मुस्लिम सब मिलकर कांवड़ यात्रा निकलवाते हैं। कांवड़ के समय नई परंपरा शुरू नहीं होने देंगे। ट्रेनिंग सेंटर नहीं बनने देंगे। दंगा बाहर के लोग करके जाएंगे और मुजफ्फरनगर को झेलना पड़ेगा।
मामले को जाति-धर्म से नहीं जोड़ें
कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार ने कहा कि मामले को जाति या धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। नियम सर्वसमाज के दुकानदारों के लिए हैं। दुकानों के बाहर सामान्य तौर पर सभी अपना नाम लिखते हैं। विपक्ष बेवजह माहौल खराब करना चाहता है। जिले के सभी लोग एक साथ हैं
एडीजी के आदेश, मेरठ जोन में सभी कांवड़ मार्गों पर दुकानदारों को लिखने होंगे नाम
मेरठ जोन में कावड़ मार्गों वाले सभी जिलों में दुकानदारों को नाम लिखने होंगे। एडीजी जोन ध्रुवकांत ठाकुर ने कहा कि यह नया आदेश नहीं है, बल्कि पिछले साल भी लागू कराया गया। शांति और कानून व्यवस्था के मद्देनजर आदेश का पालन करना होगा। पुलिस कावड़ियों की सुविधा का ध्यान रखेगी। कावड़ मार्ग पर पड़ने वाली दुकानों के बाहर संचालक के नाम लिखे जाएंगे। मेरठ, बागपत, हापुड़, बुलंदशहर कांवड़ मार्ग पर सभी जगह आदेश का पालन कराना होगा।
प्रियंका गांधी बोलीं-आदेश तुरंत वापस लिया जाना चाहिए
वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा है कि हमारा संविधान हर नागरिक को गारंटी देता है कि उसके साथ जाति, धर्म, भाषा या किसी अन्य आधार पर भेदभाव नहीं होगा। उत्तर प्रदेश में ठेलों, खोमचों और दुकानों पर उनके मालिकों के नाम का बोर्ड लगाने का विभाजनकारी आदेश हमारे संविधान, हमारे लोकतंत्र और हमारी साझी विरासत पर हमला है। समाज में जाति और धर्म के आधार पर विभाजन पैदा करना संविधान के खिलाफ अपराध है। यह आदेश तुरंत वापस लिया जाना चाहिए और जिन अधिकारियों ने इसे जारी किया है, उन पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।