फैजाबाद संसदीय सीट पर लोकसभा चुनाव के लिए मतदान के रूझानों की भाजपा संगठन की ओर से की गई समीक्षा में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस रिपोर्ट कार्ड से यह साफ हो गया है कि सभी विधानसभा क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत कम होने के पीछे कई ”अपनों” की ओर से साथ न दिया जाना प्रमुख वजह है। इस दौरान जैसे को तैसा की रणनीति पर काम हुआ। पिछले विधानसभा चुनाव से सबक लेकर असहयोग की गुपचुप योजना को अंजाम दिया गया।अयोध्या जिले की यह संसदीय सीट भाजपा की प्रतिष्ठा से सीधे तौर पर अरसे से जुड़ी हुई है। अब जबकि नव्य और भव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है तो यहां के चुनाव परिणामों पर देश-दुनिया की निगाहें टिकी हुई हैं। पूरे देश में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान पहले चरण से लेकर अभी तक भाजपा के दिग्गजों की हर रैली में राम मंदिर की गूंज सुनाई दे रही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 500 वर्ष के बाद राम मंदिर के निर्माण को प्रमुख उपलब्धि के तौर पर पेश कर रहे हैं। इतना ही नहीं रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस समेत विपक्ष के कई नेताओं के न जाने को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाकर सनातन के अपमान से जोड़ दिया है।
इन सबके बीच यहां के चुनाव में वोटिंग के दिन जब मतदाताओं की उदासीनता कम मत प्रतिशत के रूप में सामने आई तो इसे स्थानीय पदाधिकारियों के साथ पार्टी नेतृत्व ने भी गंभीरता से लिया है। इसके बाद पिछले दो दिनों से इसके कारण तलाशे जा रहे हैं। इस दौरान पता चला कि फैजाबाद संसदीय सीट के कई विधानसभा क्षेत्रों में जिन पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी, उन्होंने वोटरों को घर से बाहर निकलकर मतदान करने के लिए प्रेरित करने में हीलाहवाली की। ऐसा ही उनके समर्थकों ने भी किया। हालांकि भाजपा संगठन पर करीब की नजर रखने वाले जानकार बताते हैं कि यह सब अनायास ही नहीं हुआ। इसके पीछे जो बोया है, आखिर उसे काटना तो पड़ेगा की कहावत चरितार्थ हो रही है। जिन क्षत्रपों ने लोकसभा चुनाव में उदासीनता दिखाई, उन्हें भी इसी तरह के कटु अनुभव विधानसभा चुनाव में हुए थे।