EVM मशीन कैसे करती है काम? कौन सी कंपनी इसे बनाती है

देश में आम चुनाव चल रहा है. चुनाव में EVM का बहुत ही महत्वपूर्ण रोल होता है. वैसे तो EVM हर बार राजनीति का शिकार होती है. सभी आरोपों के बाद भी EVM देश को नई सरकार देने में मदद करती है. इसका इस्तेमाल दूसरे चुनावों में भी होता है. EVM यानी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल लोकसभा और विधानसभा चुनाव में शुरू कैसे हुआ. ईवीएम ने भारत में बैलेट पेपर के इस्तेमाल को रिप्लेस किया है.

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर कई बार आरोप लगे हैं, लेकिन आज तक कोई इसे सिद्ध नहीं कर पाया है. इन आरोपों के बाद इलेक्शन कमीशन ने वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल यानी VVPAT सिस्टम को इंट्रोड्यूस किया है. हालांकि, ये सिस्टम अभी पूरी तरह से लागू नहीं है. साल 2014 में इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था.

स्टैंड अलोन मशीन है EVM

EVM वोट सबमिट करने वाली एक इलेक्ट्रॉनिक मशीन है. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन दो यूनिट्स से बनी होती है जिसमें कंट्रोल यूनिट और बैलेटिंग यूनिट शामिल है. ये पांच मीटर की केबल से जुड़ी होती हैं.

  • ईवीएम एक स्टैंड अलोन मशीन होती हैं, इससे किसी भी तरह का कोई नेटवर्क नहीं जुड़ा होता है.
  • चुनाव आयोग के मुताबिक, ये मशीन किसी कंप्यूटर से कंट्रोल नहीं होती हैं.
  • ईवीएम में डेटा के लिए फ्रीक्वेंसी रिसीवर या डिकोडर नहीं होता है. वोटिंग के बाद इन्हें सीलबंद कर दिया जाता है. इसके बाद कड़ी सुरक्षा के बीच केवल रिजल्ट वाले दिन ही खोला जाता है.

Control Unit (CU): कंट्रोल यूनिट पीठासीन अधिकारी यानी रिटर्निंग ऑफिसर (RO) के पास होती है.
Balloting Unit (BU): बैलेटिंग यूनिट वोटिंग कंपार्टमेंट में रखी जाती है. यहां पर आकर लोग वोट डालते हैं.

EVM मशीन से वोट डालने का प्रोसेस

पीठासीन अधिकारी वोटर की आइडेंटिटी को वेरिफाई करता है, इसके बाद कंट्रोल यूनिट का बैलट बटन दबाता है. इस प्रोसेस के बाद वोटर बैलेटिंग यूनिट पर मौजूद कैंडिटेट- उसके चुनाव चिन्ह के सामने वाला नीला बटन दबाकर वोट कर सकता है.

कैसे शुरू हुई EVM की कहानी?

साल 1980, एम. बी. हनीफा ने पहली वोटिंग मशीन को बनाया था. इस वक्त इसे इलेक्ट्रॉनिक्ली ऑपरेटेड वोट काउंटिंग मशीन नाम दिया गया था. इसका ओरिजनल डिजाइन आम लोगों को तमिलनाडु के 6 शहरों में हुए सरकारी एग्जीबिशन में दिखाया गया था. EVM का पहली बार इस्तेमाल 1982 में केरल के उत्तर परवूर में हुए उप-चुनाव में हुआ था. शुरुआती दिनों में चुनाव आयोग को EVM के इस्तेमाल को लेकर बहुत से विरोध का सामना करना पड़ा. साल 1998 में EVM का इस्तेमाल 16 विधानसभा में हुआ था. इसके बाद 1999 में इसका विस्तार हुआ और 46 लोकसभा सीट पर इन्हें इस्तेमाल किया गया. साल 2004 में लोकसभा चुनाव में EVM का इस्तेमाल सभी सीट पर हुआ.

ईवीएम में कैसे डाला जाता है वोट ?

ईवीएम में बैलेट पेपर नहीं दिया जाता है बल्कि कंट्रोल यूनिट के प्रभारी मतदान अधिकारी कंट्रोल यूनिट पर बैलेट बटन दबाकर एक बैलेट जारी करते हैं. फिर वोटर अपनी पसंद के उम्मीदवार और चुनाव चिह्न के सामने बैलेटिंग यूनिट पर नीले बटन को दबाकर अपना वोट डालता है.

वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) क्या है?

वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPT) इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के साथ जुड़ा एक स्वतंत्र सिस्टम है जिससे मतदाता को यह जांच कर सकते हैं कि उनके वोट उनकी पसंद के उम्मीदवारों को ही गए या नहीं. जब कोई वोट डालता है तो उम्मीदवार की क्रम संख्या, नाम और चुनाव चिह्न वाली एक पर्ची निकलती है जो 7 सेकंड के लिए एक पारदर्शी खिड़की में दिखती है. इसके बाद, यह पर्ची खुद ही कटकर वीवीपीएटी के सीलबंद ड्रॉप बॉक्स में गिर जाती है.

EVM को दो कंपनियां मिलकर बनाती हैं. इसे इलेक्शन कमिशन, भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड, बेंगलुरू (मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस) और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदरबाद ( डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी) के साथ मिलकर तैयार करता है।

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