भोपाल: मध्य प्रदेश राज्य सहकारी दुग्ध महासंघ (एमपीएससीडीएफ) द्वारा संचालित सांची, भारत के सबसे प्रसिद्ध दूध ब्रांडों में से एक है। पर अमूल दूध ब्रांड एमपी की फेमस सांची डेयरी के संभावित टेकओवर के लिए बातचीत कर रहा है। यह एक ऐसा ब्रांड है जो मध्य प्रदेश के घर घर में परिचित है और उतना ही पंसद किया जाता है।
बता दें, कि सांची फेडरेशन हर दिन एमपी के किसानों से 10 लाख लीटर दूध खरीदता है, जो राज्य में उत्पादित कुल दूध का लगभग आधा होने के अनुमान है। अमूल पहले से ही मध्य प्रदेश में एक प्रमुख कॉम्पिटिटर है । अमूल किसानों से लगभग 4 लाख लीटर दूध खरीदता है। अधिकारियों के मुताबिक, सांची के अमूल एक्विजिशन से मध्य प्रदेश के किसानों को बेहतर अवसर मिलेंगे। सूत्रों ने को बताया कि भाजपा के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार एमपी में सांची के लिए गुजरात स्थित अमूल जैसा मॉडल अपनाना चाहती है, उन्होंने कहा कि अमूल मध्य प्रदेश में अपना आधार बढ़ाने के लिए सांची की ‘मदद’ करेगा या इसका एक्विजिशन कर लेगा, इसका फैसला जल्द ही लोकसभा चुनाव के बाद साफ कर दिया जाएगा।
जल्द निर्णय लेगी एमपी सरकार
पशुपालन और डेयरी विभाग के प्रधान सचिव गुलशन बामरा ने बताया कि दूध उत्पादक किसानों के लाभ के लिए मप्र में अमूल की भूमिका पर सरकार जल्द ही निर्णय लेगी। एमपी सरकार का मानना है कि यह राज्य के डेयरी किसानों के लिए फायदेमंद होगा। इस साल जनवरी से इस पर पशुपालन विभाग और अमूल के बीच कई दौर की चर्चा हो चुकी है। अधिकारियों ने कहा कि अमूल, सांची ब्रांड को टेकओवर करना चाहता है। हालांकि, सरकार कर्नाटक जैसी अमूल बनाम नंदिनी लड़ाई से सावधान है, जो पिछले साल इसी समय के आसपास विधानसभा चुनावों के दौरान एक चर्चित राजनीतिक मुद्दा बन गया था।
अमूल बनाम सांची सरकार नहीं चाहती
सरकार मध्य प्रदेश में अमूल बनाम सांची नहीं चाहती। इसलिए सावधानी से कदम बढ़ा रही है। इसी वजह से चुनाव के बाद तक इस फैसले को रोक दिया गया है। इस साल 10 जनवरी को मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मप्र के दूध उत्पादकों से दूध की खरीद सुनिश्चित करने और डेयरी किसानों के हितों की रक्षा करने में मदद करने के लिए अहमदाबाद में सांची और अमूल की संयुक्त बैठक में हिस्सा लिया था।
2022-23 में जहां अमूल का टर्नओवर 70,000 करोड़ रुपये था, वहीं सांची का उस साल 1982 करोड़ रुपये का सालाना बिक्री टर्नओवर था। इसके अलावा, मध्य प्रदेश सरकार को तकनीक और बाजार की जरूरतों को पूरा करने के लिए करीब एक दशक तक प्रति वर्ष 1,500 करोड़ रुपये खर्च करने की जरूरत है। इसे देखते हुए शायद एमपी गवर्मेंट में भी अमूल से हाथ मिलाकर साथ साथ काम करने की प्लानिंग कर रही है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि लोकसभा चुनाव की आदर्श आचारण संहिता हटने के बाद इस पर निर्णय लिया जाएगा।