वर्तमान समय की बात करें तो लोगों में धीरज, धैर्य, सबर आदि बहुत कम है। जिस कारण लोग अपने जीवन के रिश्ते निभाने में असमर्थ हो रहे हैं। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि लोगों की असफलता का सबसे बड़ा कारण यही होता है। क्योंकि सफलता चाहे किसी भी तरह की हो, उसे पाने के लिए जितना जरूरी होता है, मेहनत करना उससे कई गुना जरूरी है व्यक्ति में धैर्य होना। जिस व्यक्ति में धैर्य नहीं होता वह लोगों को अपना बनाने में असमर्थ होता है। और न ही वह व्यक्ति पर कोई विश्वास कर पाता है। तो आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य द्वारा बताए गए एक ऐसे ही श्लोक के बारे में जिसमें उन्होंने बताया है कि जो व्यक्ति अधिक क्रोध नहीं करता, उसका शांत स्वभाव उसे जीवन में हमेशा हर मुश्किल समय में लाभ देता है।
चाणक्य नीति श्लोक–
शांत’ व्यक्ति सबको अपना बना लेता है
भावार्थ- सर्व जयत्यक्रोध:।
अर्थ: क्रोध करना किसी दृष्टि से उचित नहीं है। क्रोधी व्यक्ति क्रोध करके अपनी शक्तियों का क्षय करता है जबकि एक शांतचित्त व्यक्ति अपने विरोधियों पर भी विजय प्राप्त कर लेता है और अपने व्यवहार से उन्हें अपना बना लेता है।
चाणक्य नीति श्लोक-
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम् ॥
भावार्थ- जिस स्थान पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, और लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसी पांच जगहों को भी मनुष्य को अपने निवास के लिए नहीं चुनना चाहिए।
अर्थ: आचार्य चाणक्य कहते हैं व्यक्ति को जिस स्थान पर रोज़गार प्राप्त न हो, जहां रहने पर किसी प्रकार का भय सताए, आस पास के लोग लज्जाहीन हो, किसी प्रति उदारता या दया की भावना न हो। ऐसे जगह पर रहना कभी अच्छा नहीं माना जाता है। बल्कि जितना हो सके ऐसे स्थानों से दूर रहना चाहिए। चाणक्य नीति के अनुसार ऐसे स्थल पर निवास करने से जीवन में नकारात्मकता का आगमन होता है।