श्री राम की वनवास यात्रा से जुड़े जिन स्थलों के दर्शन इस बार आपको करवाने जा रहे हैं, उनमें वह स्थान विशेष रूप से शामिल है जहां के आदिवासियों के अनुसार वास्तविक किष्किन्धा वही है। रामायण में किष्किन्धा को पहले बाली का तथा उसके पश्चात् सुग्रीव का राज्य बताया गया है। रामायण काल में विंध्याचल पर्वतमाला से लेकर पूरे भारतीय प्रायद्वीप में घना दंडक वन था। उसी में यह राज्य था। यहां के निवासियों को वानर कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है वन में रहने वाले लोग। इन सभी स्थानों की मान्यता जनश्रुतियों के आधार पर है।
मल्लीकेश्वर मंदिर, मल्कानगिरि, (ओडिशा)
मल्कानगिरि वास्तव में माल्यवंत गिरि का अपभ्रंश है। उड़ीसा के आदिवासियों के अनुसार वास्तविक किष्किन्धा यहीं है। माना जाता है कि यहां श्रीराम ने भगवान शिव की पूजा की थी।
शिव मंदिर, केशकाल घाटी (छत्तीसगढ़)
शिव मंदिर कांकेर से 15-20 किलोमीटर आगे दुर्गम घाटी के ऊपर जंगल में बहुत विशाल शिवलिंग है तथा सरोवरों का निर्माण किया गया है। श्रीराम वनवास काल में यहां आए थे।
शिव मंदिर, इंजरम कोंटा, (छत्तीसगढ़)
कोंटा नगर से 8 किलोमीटर उत्तर में शबरी नदी के किनारे इंजरम गांव के पास कुछ वर्षों से एक शिव मंदिर भूमि से स्वत: उभर रहा है। यहां श्रीराम ने शिव पूजा की थी। इंजरम से शबरी सलेरू संगम पर आएं। यहां पूजन कर नाव द्वारा राम मंदिर मोटू जाएं तथा वापस संगम से नाव द्वारा पार कर आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान करें।
शबरी-गोदावरी संगम, कोनावरम्, खम्मम (तेलंगाना)
तेलंगाना के कोनावरम में शबरी तथा गोदावरी नदियों का पावन संगम स्थल है। शबरी नदी के किनारे-किनारे यहां आकर श्रीराम ने शबरी-गोदावरी नदियों के इस पावन संगम में स्नान किया था। यह संगम विशाल क्षेत्र में फैला है तथा वर्षा काल में स पूर्ण क्षेत्र जलमग्न हो जाता है।