राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की सरकार संकट में है। राज्य के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने बागी तेवर अपना लिए हैं। पायलट गुट का दावा है कि 30 विधायक उनके साथ हैं। इस बीच कांग्रेस भी डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। देर रात पार्टी की वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई, जिसमें विधायक दल की बैठक से पहले व्हिप जारी करने पर फैसला लिया गया।
आपको बता दें कि 200 विधायकों वाली रास्थान विधानसभा में बहुमत के लिए 101 विधायकों की आवश्यक्ता होती है। अशोक गहलोत 125 विधायकों के समर्थन के साथ सरकार चला रहे हैं। इनमें कांग्रेस के 107, सीपीआईएम के दो, भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो राष्ट्रीय लोक दल के एक और 13 निर्दलीय विधायक शामिल हैं। राजस्थान में बीजेपी के 72 विधायक हैं। साथ ही तीन विधायकों वाली राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी विपक्ष में ही है।
राजस्थान के ताजा राजनीतिक हालात पर राजनीतिक विशेषज्ञों ने तीन रास्ते बताए हैं:
सचिन पायलट को स्वतंत्र रूप से काम करने की मिले छूट
कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को मोर्चा संभालना चाहिए। अशोक गहलोत को संदेश देना चाहिए कि सचिन पायलट को स्वतंत्र तरीके से काम करने दें और उनके विभाग में दखल नहीं करें। इससे पायलट, जो कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं, कैंप में वापस आ सकते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने भी ट्वीट कर पार्टी को स्थिति संभालने के लिए आग्रह किया है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, ‘अपनी पार्टी को लेकर चिंतित हूं। क्या हम तभी जगेंगे जब घोड़े अस्तबल छोड़कर चले जाएंगे?’
विशेषज्ञों का मानना है कि सचिन पायलट को उनके चार मंत्रालयों में मनपसंद नौकरशाहों की नियुक्ति के साथ-साथ पार्टी के कुछ अहम पदों पर युवा सहयोगियों को मौका देने की छूट देनी चाहिए।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया, ‘पिछले कुछ महीनों में, गहलोत के करीबी नेता पायलट को हटाने पर जोर दे रहे हैं।’ कांग्रेस के एक केंद्रीय नेता ने बताया कि वे सचिन पायलट के संपर्क में हैं और बातचीत का दौर जारी है। इस मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने नाम नहीं लेने की शर्त पर कहा कि अब काफी देर हो चुकी है।
समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो सकते हैं पायलट
इस बात की संभावना है कि राजस्थान कांग्रेस के भीतर पायलट कैंप में और भी असंतुष्ट विधायक शामिल हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में गहलोत सरकार अल्पमत में आ जाएगी। इस बात की भी संभावना है कि ये विधायक मध्य प्रदेश की तर्ज पर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। भाजपा सहयोगी दलों और निर्दलीय विधायकों के साथ सरकार बना सकती है और छह महीने के भीतर रिक्त सीटों के लिए उपचुनाव कराएगी।
कांग्रेस पार्टी अगर बातचीच से मामले को सुलझाने में असफल रहती है तो सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ एक अलग मोर्चा बना सकते हैं। अगर गहलोत और उनके समर्थक निर्दलीय और सहयोगियों के साथ मिलकर बहुमत हासिल करने में कामयाब होते हैं तो सरकार बच सकती है। लेकिन ऐसी स्थिति में सरकार काफी कमजोर हो सकती है।