
पुराणों के अनुसार ब्रज के कण-कण में भगवान कृष्ण का वास है। यही वजह है कि इस पावन भूमि पर साल भर लोग दर्शन के लिए उमड़ते हैं। ब्रज का मतलब है मथुरा, वृंदावन, गोकुल, नंदगांव, बरसाना। ब्रज को भगवान कृष्ण की लीला स्थली और उनका स्थायी निवास माना जाता है।
भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए ब्रजभूमि भी भगवान के समान है, यह विश्व प्रसिद्ध है। यहां भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 84 कोस परिक्रमा का विशेष महत्व है। ब्रज की चौरासी कोस परिक्रमा क्या है, इसे यह नाम कैसे मिला, जानें इसका महत्व।
ब्रज की 84 कोस परिक्रमा क्या है?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रज की चौरासी कोस की परिक्रमा सबसे महत्वपूर्ण यात्रा मानी गई है। मान्यता है कि इस परिक्रमा को करने के दौरान भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़े स्थानों, सरोवरों, जंगलों, मंदिरों, कुंडों आदि का भ्रमण और दर्शन किया जाता है। यह पूरी यात्रा करीब 360 किलोमीटर लंबी होती है। 84 कोस परिक्रमा का महत्व
पौराणिक कथाओं के आधार पर परिक्रमा भक्ति के 64 अंगों में से एक है। पुराणों के अनुसार, गांव के स्थानों पर जाना, घूमना और रुकना ब्रज यात्रा कहलाती है। ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा एक वरदान देती है। लाख चौरासी योनि के संकट हर लेत। मान्यता है कि 84 कोस की परिक्रमा करने से व्यक्ति 84 लाख योनियों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
वराह पुराण के अनुसार, पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास के दौरान ब्रज में आकर निवास करते हैं। यही कारण है कि चातुर्मास में इस परिक्रमा का महत्व दोगुना हो जाता है। मान्यता है कि जब माता यशोदा और नंद बाबा ने चारों धामों के दर्शन की इच्छा जताई तो भगवान श्री कृष्ण ने सभी तीर्थों को अपने दर्शन के लिए ब्रज में बुलाया।
84 कोस यात्रा कब शुरू होती है?
ब्रज की 84 कोस परिक्रमा वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर सावन पूर्णिमा तक चलती है। परिक्रमा जहां से शुरू होती है, वहीं पर समाप्त होती है। चतुर्मास में इस परिक्रमा का विशेष महत्व है।
परिक्रमा कैसे की जाती है?
बता दें कि 84 कोस परिक्रमा में श्रद्धालु करीब 1300 स्थानों पर जाते हैं। यह स्थान भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से जुड़े हुए हैं। बता दें कि 1300 स्थानों में 1100 सरोवर, 36 वन, उपवन, पहाड़ और पर्वत शामिल हैं। इस दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है। परिक्रमा आमतौर पर पैदल की जाती है, इसे वाहन से भी किया जा सकता है। इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है और प्रतिदिन भगवान की पूजा की जाती है। अहंकार, लोभ, मोह, क्रोध जैसे दुर्गुणों को त्यागकर ही यात्रा करनी चाहिए, तभी इसका फल मिलता है।