क्या MP में है नौकरशाही का संकट ? 459 में से 68 IAS पद खाली, 41 प्रतिनियुक्ति पर

मध्यप्रदेश की आबादी लगातार बढ़ रही है और जिलों की संख्या भी 55 हो गई है. लेकिन इन जिलों को संभालने के लिये प्रशासनिक अधिकारियों की संख्या बढ़ने के बजाए घट रही है आलम ये है कि प्रदेश में तैनात 350 IAS काम के बोझ तले दबे हैं. इनमें से कई के पास एक से चार तक अतिरिक्त प्रभार हैं. जिसकी वजह से लोगों के जनहित के रोजमर्रा के कामकाज प्रभावित हो रहे हैं और मौजूदा कर्मियों पर भारी दबाव पड़ रहा है. हालांकि राज्य सरकार लगातार जमीन स्तर पर नीतियों के कड़े क्रियान्वयन पर जोर दे रही है, लेकिन जिन अधिकारियों पर इसका जिम्मा है, वे काम के भारी बोझ के कारण इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पा रहे हैं।

देखा जाए तो मध्यप्रदेश में रोज नए ऐलान हो रहे हैं. राज्य सरकार भी जमीनी स्तर पर कसावट की बात कर रही है. लेकिन इन ऐलानों और उसके क्रियान्वयन और कसाहट में एक पेंच फंसा है. वो ये है कि जिन अधिकारियों पर इसका जिम्मा है वो ही काम के बोझ तले दबे हैं. उस पर तुर्रा ये कि राज्य में तैनात कई अफसर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं. राज्य सरकार ने पांच और अफसरों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए NOC दे दी है. अब केन्द्र सरकार कभी भी उन्हें बुला सकती है. इसी बीच दूसरा डाटा ये बताता है कि 89 अफसर अगले पांच साल में रिटायर हो जाएंगे. अहम ये भी है कि केन्द्र सरकार ने अगस्त 2022 में मप्र आइएएस कैडर की समीक्षा की थी. तब राज्य में आइएएस कैडर संख्या 459 थी. दो साल गुजर जाने के बाद भी इस संख्या को बढ़ाने पर विचार नहीं किया गया. बीजेपी सांसद दर्शन चौधरी इस गंभीर मुद्दे से इत्तेफाक रखते हैं. जब हमने उनसे इस संबंध में सवाल किया तो उन्होंने बताया- मुख्यमंत्री इस विषय से अवगत हैं और सरकार इस दिशा में काम कर रही है. इस समस्या का समाधान जल्द ही कर लिया जाएगा।

अफसरों की इस कमी को लेकर सरकार विपक्ष के निशाने पर है.विपक्ष का कहना है कि सरकार प्रमोटी अफसरों को अपने फायदे के लिए तवज्जो दे रही है.कांग्रेस के पूर्व विधायक शैलेन्द्र पटेल का आरोप है कि सरकार जानबूझकर IAS अधिकारियों की कमी को दूर नहीं कर रही है क्योंकि उन्हें पता है कि प्रमोटी अधिकारियों से अपने एजेंडे को पूरा किया जा सकता है और भ्रष्टाचार किया जा सकता है. अब सच क्या है ये तो सरकार ही बता सकती है कि लेकिन इस स्थिति में, मध्य प्रदेश का प्रशासनिक ढांचा दबाव में है इसका पता तो चल ही जाता है. राज्य में प्रभावी शासन क्षमता के लिए इस मसले का समाधान तत्काल किए जाने की जरुरत है.

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