बीजिंग:चीन की सेना इन दिनों ताइवान को चौतरफा घेरकर सैन्य अभ्यास के नाम पर बारूद बरसा रही है। चीन की कोशिश है कि ताइवान के नए राष्ट्रपति के डराया जाए जिन्होंने हाल ही में कमान संभाली है। वहीं ताइवानी राष्ट्रपति ने भी अपने इरादे साफ कर दिए हैं और ड्रैगन के आगे झुकने से इंकार कर दिया है। ताइवान की सेना ने भी मिसाइलों से लेकर फाइटर जेट तक की तैनाती करके चीन को कड़ा संदेश दिया है। चीन ने पिछले दो दशक में भारत से लेकर दक्षिण चीन सागर तक विभिन्न क्षेत्रों में अप्रत्याशित तरीके से आक्रामक दावे करने शुरू कर दिए हैं जिससे तनाव भड़कने लगा है। दुनिया की फैक्ट्री बन चुके चीन ने खरबों डॉलर खर्च करके अपनी सेना को हाइपरसोनिक मिसाइलों से लेकर पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट से लैस किया है। ड्रैगन का इरादा दुनिया के 6 देशों से युद्ध लड़ने का है। दरअसल, चीन अपने एक ‘सपने’ को पूरे करने की अभियान में है और इसका साल 1840-42 तक लड़े गए अफीम युद्ध से गहरा कनेक्शन है। आइए समझते हैं.
अपने सपने को पूरा करने के लिए चीन के पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओं ने देश की अर्थव्यवस्था के साथ साथ अपनी सेना को मजबूत करना शुरू किया। साल 2012 में सत्ता में आए वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस ‘चीनी सपने’ को पूरी तरह से शक्ल दिया और अपने देश के खो चुके ऐतिहासिक गौरव को लौटाने का प्रण किया। खुद चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी चाइना न्यूज सर्विस ने साल 2013 में अपने एक लेख में खुलासा किया था कि अगले 50 साल में चीन को 6 युद्ध लड़ने होंगे। चाइना न्यूज सर्विस का इशारा चीन के उन इलाकों को वापस हासिल करने की ओर था जिसे उसने साल 1840-42 के अफीम युद्ध के दौरान खो दिया था। इससे चीन की काफी बेइज्जती हुई थी। अब आर्थिक और सैन्य महाशक्ति बन चुका चीन इन इलाकों को वापस लेना चाहता है। इस लेख के मुताबिक चीन का इरादा इन देशों के साथ युद्ध लड़ने का है
पहला- ताइवान का एकीकरण
चीन का इरादा साल 2025 तक ताइवान का मुख्य भूमि से एकीकरण करने का है। वहीं अमेरिकी विश्लेषक इस तिथि को साल 2027 तक भी देते हैं। ताइवान में नए राष्ट्रपति के आने के बाद चीनी सेना ने बहुत बड़े पैमाने पर सैन्य ड्रिल शुरू की है। विश्लेषकों का कहना है कि यह ताइवानी राष्ट्रपति को डराने की कोशिश है जो खुलकर चीन का विरोध कर रहे हैं। चीन की पहले कोशिश थी कि शांतिपूर्ण तरीके से एकीकरण हो जाए लेकिन अब ऐसा होता नहीं दिख रहा है। ताइवान की रणनीति है कि अमेरिका की मदद से यथास्थिति को बहाल रखा जाए। वहीं चीन अमेरिका से लेकर ताइवान तक को आंखें दिखा रहा है और बड़े पैमाने पर हथियार बना रहा है।
दूसरा- दक्षिण चीन सागर पर ‘कब्जा’
चाइना न्यूज सर्विस के मुताबिक चीन का इरादा साल 2025 से 2030 के बीच में ताइवान के एकीकरण के बाद दक्षिण चीन सागर पर अपनी पकड़ को मजबूत किया जा सके। चीन के निशाने पर वियतनाम और फिलीपीन्स हैं जो चीनी आक्रामकता का खुलकर जवाब दे रहे हैं। हाल ही में फिलीपीन्स ने भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदी है।
तीसरा भारत से अरुणाचल प्रदेश लेना (2035-2040)
साल 1914 में ब्रिटिश सरकार और चीन के बीच बातचीत के बाद शिमला समझौते के तहत मैकमोहन लाइन बनी थी। यह भारत और चीन के बीच एक कानूनी सीमा है। इस संधि से तिब्बत दो भागों में बंट गया ‘इनर’ और ‘ आउटर’ तिब्बत। चीन के विरोध के बाद भी यह साल 1962 के युद्ध तक भारत और चीन के बीच सीमा रखा बनी रही। इस युद्ध के बाद नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी को अरुणाचल प्रदेश नाम दिया गया। इसको लेकर भारत और चीन के बीच विवाद बना हुआ है। चीन का इरादा है कि वह साल 2035 से 2040 तक ताकत के बल पर भारत से अरुणाचल प्रदेश को छीन ले। चीन इसे दक्षिण तिब्बत कहता है और हाल ही में इसके कई इलाकों के चीनी नाम रख दिए हैं।
चीन की रणनीति है कि वह इसके लिए चीन अपने गुलाम बन चुके पाकिस्तान की मदद लेगा। भारतीय राज्यों में मतभेद पैदा करेगा और पाकिस्तान को कश्मीर पर कब्जे में सहयोग करेगा। इसके बाद चीन अरुणाचल प्रदेश में बड़ा हमला बोलेगा और उस पर कब्जा कर लेगा। चीनी विश्लेषकों का कहना है कि इससे चीन अपनी ताकत का प्रदर्शन करेगा और अमेरिका, यूरोप तथा रूस के खिलाफ अपने स्टेटस को और मजबूत करेगा। चीन के इसी खतरे को देखते हुए भारत लगातार अरुणाचल प्रदेश और पूरे पूर्वोत्तर में सैन्य पकड़ मजबूत कर रहा है। यही नहीं भारत बांग्लादेश के साथ भी अपने रिश्ते को मजबूत कर रहा है ताकि चीनी आक्रामकता का करारा जवाब दिया जा सके।
चौथा- जापान से विवादित द्वीपों को छीनना
चीनी समाचार एजेंसी के लेख में कहा गया है कि चीन का इरादा साल 2040-45 के बीच में जापान से उसके कब्जे वाले सेनकाकू और रयूकयू द्वीपों को अपने कब्जे में लेना है। चीन का दावा है कि जापान इसे प्राचीन समय से अपना क्षेत्र बताता है लेकिन इसका सैकड़ों सालों से चीन से संबंध है। चीन अक्सर इन द्वीपों के पास अपने युद्धपोत भेजता रहता है। वहीं जापान भी चीनी खतरे को देखते हुए अपनी मिसाइलों के जखीरे को बढ़ा रहा है। जापान अब शांति से युद्ध की तरफ बढ़ता दिख रहा है।
पांचवां- मंगोलिया पर हमला कर कब्जा (2045-2050)
जापान के बाद चीन का इरादा मंगोलिया पर कब्जा करने का है। मंगोलिया चीन का पड़ेसी देश है और अनमोल प्राकृतिक खजाने से लैस है। चीनी लेखक ने जोर देकर कहा था कि मंगोलिया चीन का अभिन्न हिस्सा है और यह चीन का स्वायत्त प्रांत है जिसे ‘इनर मंगोलिया’ कहा जाता था। चीन ने सन 1600 के आसपास मंगोलिया पर शासन किया था। मंगोलों ने भी बाद में अपना प्रभुत्व स्थापित किया था। चीनी लेखक ने सलाह दी कि चीन की सरकार को साल 2045 से 50 के बीच में युद्ध को तैयार रहना चाहिए।
छठवां- रूस के साथ युद्ध (2055-2060)
चीनी लेखक ने अपने विश्लेषण में कहा कि रूस चीन का भविष्य में निशाना हो सकता है। चीन और रूस इन दिनों यूक्रेन युद्ध के बीच जमकर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। चीन को उम्मीद है कि जब वह ताइवान का एकीकरण करेगा तब रूस उसे समर्थन देगा। इससे पहले शीत युद्ध के समय सोवियत संघ और चीन के बीच रिश्ते काफी तनावपूर्ण हो गए थे। चीनी विश्लेषकों का मानना है कि रूस ने उसके 16 लाख वर्ग किमी इलाके पर कब्जा कर रखा है। यह जमीन किंग राजवंश के समय से ही ऐतिहासिक रूप से चीन की थी। चीनी विश्लेषक का कहना है कि साल 2045 तक रूस की ताकत में बहुत ज्यादा गिरावट आ जाएगी। ऐसे में चीन के पास मौका होगा कि वह अपनी जमीन को वापस ले सके। चीनी विश्लेषक ने तो भीषण परमाणु हमला करने की भी सलाह दी है।