
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार घर में शुभ वातावरण के लिए व्यक्ति को नियमित रूप से अपने घर में, किसी एक स्थान पर निरंतर ध्यान साधना और पूजा अर्चना करनी चाहिए। मंदिर एक ऐसी जगह है जहां ध्यान मग्न होकर हम स्वयं से और फिर अपने इष्ट देवी देवता के साथ जुड़ सकते हैं।
हम आपके लिए इस विषय पर कुछ जानकारियाँ लाए हैं, जिसके जरिए आप अपने मंदिर को सुविधानुसार सही तरीके से बना कर पूरे घर में शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकते हैं।
घर में मंदिर कहां पर रखें?
वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर पूर्व का कोना यानी ईशान कोण ध्यान साधना के लिए सबसे अच्छा माना जाता है, अतः यदि हम इस घर की इस जगह पर मंदिर बनाएं तो यह सर्वोत्तम होगा। परंतु ऐसा ना कर सकने की स्थिति में हमें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे मंदिर में साफ हवा और और रोशनी का संचार निरंतर होना चाहिए। यदि सूर्य की सुबह की किरणें हमारे मंदिर में आती हैं तो यह अति उत्तम माना जाता है।
घर का मंदिर कितना बड़ा होना चाहिए?
घर के मंदिर का आकार न तो बहुत बड़ा होना चाहिए और ना ही बहुत छोटा। यद्यपि यह इस बात पर भी निर्भर करता हैं कि आप के पूजाघर का आकार कितना बड़ा है। कई बार देखा गया है कि बड़े पूजाघरों के लिए लोग मंदिर भी बड़ा उठा लाते हैं और उसमे ढेर सारी मूर्तियां, फोटो आदि लगा देते हैं, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने से ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
अक्सर बाजार में बिकने वाले मंदिरों को आकर्षक दिखाने के लिए उस पर गुम्बद बना दिया जाता है परंतु घर के मंदिर में गुंबद की आवश्यकता नहीं होती। बड़े मंदिरों में गुंबद छत्र के जैसे होते हैं जिनमें ऊर्जा का संचार होता रहता है, अतः वहां उसके नीचे बैठकर यदि हम ध्यान साधना करें तो हमें सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
परंतु घर के मंदिर के गुंबद के नीचे हम बैठकर पूजा नहीं करते, अतः वहां गुंबद की कोई आवश्यक्ता नहीं होती है। मंदिर लकड़ी या संगमरमर का हो तो अच्छा है। मंदिर में हल्के सौम्य रंग जैसे पीला, हल्का गुलाबी हल्का हरा या क्रीम रंग का इस्तेमाल करना उत्तम कहा गया है। मंदिर के लिए रंगों की व्याख्या ऊपर की गयी है।
मंदिर के लिए गहरे या चटकीले रंगों के प्रयोग से बचना चाहिए
आप मंदिर में गाढ़े रंगों के प्रयोग से बचें क्योंकि इससे नकारात्मकता का संचार होता है। देवी देवताओं की मूर्तियों के अतिरिक्त हमारे घर के मंदिर में शंख, गोमती चक्र, घंटी , पंचपात्र , कुशा और धार्मिक पुस्तकें भी होनी चाहिए। देवी देवताओं के चित्र या प्रतिमाएं सौम्य और मोहक हों तो बेहतर रहेगा।
मंदिर में रौशनी का विशेष ख्याल रखें। दिन में सूर्य की रौशनी और शाम या रात में सौम्य प्रकाश वाली लाइटिंग से मंदिर को अवश्य सुशोभित करें। सौम्य रौशनी जो आँखों को न चुभे, वह पूजा पाठ के लिए उत्तम होगी। इसके अतिरिक्त किस दिशा में मुँह करके पूजा करना चाहिए, हमारे लिए ये जानना भी महत्वपूर्ण होता है
घर में मंदिर बनाते समय क्या सावधानियां रखें?
कुछ बातों का आपको विशेष ध्यान रखना है जैसे मंदिर की दीवार शौचालय की दीवार से सटी ना हो और ना ही मंदिर के ऊपर या बगल में शौचालय हो। मंदिर की जगह भी निश्चित होनी चाहिए। जिस जगह पूजा होती रहती है, उस स्थान विशेष पर देवताओं की जागृत अवस्था और वास होता है।
आप महसूस करेंगे कि उस जगह पर पूजा में आपका बेहतर ध्यान लग रहा हैं और अन्य जगह पर वैसा ध्यान लग पाना शायद मुश्किल हो सकता है। अपने घर के मंदिर में हमें देवी देवताओं की मूर्तियों और चित्रों का अंबार नहीं लगाना चाहिए। जिस भी देवता या देवी मैं आपका विश्वास हो उनकी केवल एक ही प्रतिमा या चित्र लगाना चाहिए।
ध्यान रखें कि देव प्रतिमा 6 इंच से बड़ी न हो। यदि इससे बड़ी प्रतिमा आप अपने घर के मंदिर में रखते हैं तो उसकी प्राण प्रतिष्ठा करवानी चाहिए। हमें मंदिर की नियमित साफ-सफाई का भी ध्यान रखना चाहिए। ताज़े फूल रोज़ सुबह देवताओं को अर्पित करें और पिछले दिन के बासी फूल या किसी तरह की गंदगी पूजा कक्ष में न रहने दें।
यदि हम इन बातों का ध्यान रखते हैं और नियमित रूप से एक निश्चित समय पर अपने ईश्वर का ध्यान लगाते हैं तो हमारे जीवन में सकारात्मकता का संचार अवश्य होता है। हमें किसी भी प्रकार के कष्ट क्लेश से पीड़ा नहीं होती। हमें एक आत्मविश्वास मिलता है और उसकी मदद से हम जीवन की बड़ी से बड़ी खुशियों और तकलीफों को सामान्य रूप से ग्रहण करते हैं।
हमेशा ध्यान रखिये कि जिस घर में नियमित पूजा पाठ और ध्यान साधना होती है उस घर के व्यक्तियों का मानसिक, आर्थिक और शारीरिक उद्धार निश्चित ही होता है, तो आइए, आज से हम अपने घर में इन बातों का ध्यान रखते हुए मंदिर की स्थापना करें।