वैदिक मान्यताओं के अनुसार धार्मिक त्यौहारों का अपना विशेष महत्व रहा है, क्योंकि त्यौहारों से जीवन आनन्दित हो उठता है, जीवन में खुशियाँ छा जाती है, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तिथि दशमी तारीख 17 को भगवान विश्वकर्मा जयंती मनायी जाती है, यह जयंती सिर्फ 17 तारीख को ही मनायी जाती है, इस दिन औजारों की पूजा की जाती है, यह पर्व बडी-बडी कंपनियों में, फैकट्रियों में, बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, इस दिन भगवान विश्वकर्मा की झांकी निकाली जाती है, इस दिन बडी-बडी मशीन, बस, ट्रक, मोटर, जहाज, रेल, मोटर साइकिल, आदि बडे वाहनों की पूजा होती है, इस प्रकार विश्वकर्मा जयंती संपूर्ण भारत वर्ष में उत्साह पूर्वक मनायी जाती है।
विश्वकर्मा जयंती की महत्ता :-
भगवान विश्वकर्मा की झांकी ढोल ढमाकों की धुन पर नाचते युवक युवतियां, भक्तिमय गीत-गाती महिलाएं, जयकारों से धर्ममय हुआ परिवेश। विश्वकर्मा जयंती समारोह पर निकाली जाने वाली शोभायात्रा जिलेभर में आनन्द पूर्वक धूमधाम से मनाई जाती है, इस अवसर पर शोभायात्रा का आयोजन किया जाता है, तथा मंदिरों में पूजा अर्चना की जाती है, इस शोभायात्रा में कई समाजबंधुओं ने भाग लिया इस जयंती समारोह को लेकर काफी संख्या में समाज बंधुओं की भीड़ लगी रहती है,
शोभायात्रा के दौरान सुंदर झांकियां भी निकाली जाती है, शोभायात्रा में राधाकृष्ण की झांकी संदुर आकषर्ण का केन्द्र बनती है, इसी प्रकार विश्वकर्मा की झांकी ने सभी का ध्यान अपनी और आकर्षित किया इस दौरान नगर में भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, शोभायात्रा में भगवान विश्वकर्मा, विष्णु भगवान और शिव-पार्वती सहित विभिन्न झांकिया आकर्षण का केन्द्र रही इससे पूर्व भजन संध्या का आयोजन किया गया। शोभायात्रा से पहले विश्वकर्मा मंदिर में चढ़ावों की बोलियां लगाई जाती है, चढ़ावों के बाद शोभायात्रा निकाली गई, जिसमे बालिकाओं द्वारा कलश यात्रा भी निकाली जाती है, इस दौरान भगवान विश्वकर्मा की झांकी आकर्षक का केंद्र रहती है।
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