देश में स्वास्थ्य बजट ऊंट के मुंह में जीरा वाला हाल, जानें विशेषज्ञों की राय

नई दिल्ली : केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को संसद में वर्ष 2022-23 के लिए आम बजट पेश करेंगी. इस बजट पर सबकी निगाहें टिकी हुई है. विगत दो वर्षों से देश कोरोना महामारी की विभीषिका से जूझ रहा है. इस महामारी के दौरान देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई है. विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है. सरकार के पास जीडीपी का केवल डेढ़ परसेंट ही हेल्थ पर खर्च करने के लिए है. एक से डेढ़ परसेंट हेल्थ पर बजट करीब 140 करोड़ की आबादी के लिए नाकाफी है. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगर की बात छोड़ दिया जाए तो शेष भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी खराब है कि न तो वहां योग्य डॉक्टर हैं और न ही हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर है. ग्रामीण इलाकों की स्थिति बेहद ही खराब है.


दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था इस बात पर भी निर्भर करती है उस देश के नागरिक कितने स्वस्थ हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि देश की जीडीपी का कितना हिस्सा स्वास्थ्य व्यवस्था पर खर्च किया जाता है. भारत लगभग 135 करोड़ आबादी वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. इतनी बड़ी आबादी की स्वास्थ्य की देखभाल के लिए जीडीपी का मात्र डेढ़ परसेंट हिस्सा ही खर्च किया जाता है. यह बेहद हास्यास्पद स्थिति है. विकसित देशों में जहां स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर जीडीपी का 10 से 15 फीसदी हिस्सा खर्च किया जाता है, वहीं हमारे देश में जीडीपी का केवल डेढ़ परसेंट हिस्सा ही खर्च किया जाता है. ऐसी स्थिति में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था अच्छी हो कल्पना करना भी उचित नहीं है.
ग्रामीण इलाके की स्वास्थ्य व्यवस्था

डॉ. अजय गंभीर बताते हैं कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की खराब स्थिति का असर लोगों के पॉकेट पर पड़ता है. जब लोग गंभीर रूप से बीमार होते हैं तो उन्हें निजी अस्पतालों में महंगा इलाज लेना पड़ता है, जो कि उनकी पॉकेट की क्षमता से अधिक होती है. इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. दिल्ली जैसे महानगर में स्वास्थ्य व्यवस्था के बेहतर होने के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं. दिल्ली के सरकारी अस्पताल, केंद्र सरकार के अस्पताल, एमसीडी, एनडीएमसी और डीडीए के अस्पताल के अलावा दूसरे नगर निकायों के अस्पताल एवं डिस्पेंसरी और मोहल्ला क्लीनिक है. जहां लोगों का बेहतर इलाज हो पाता है. लेकिन ग्रामीण इलाकों की स्थिति बेहद खराब है. भारत में 90 फीसदी डॉक्टर शहरों में रह रहे हैं. केवल 10 फीसदी डॉक्टर के भरोसे ही छोटे शहर एवं ग्रामीण इलाके की स्वास्थ्य व्यवस्था निर्भर है. ऐसे में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कैसे सुधरेगी?

हॉस्पीटल में डॉक्टरों की संख्या में कमी

डॉ अजय गंभीर बताते हैं कि दस वर्ष पहले कांग्रेस की सरकार में हेल्थ बजट जीडीपी का तीन प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया था, लेकिन इस पर काम नहीं हो पाया. मोदी सरकार पिछले सात वर्षों से सत्ता में है, लेकिन अभी तक यह काम नहीं हो पाया है. अगर तीन परसेंट जीडीपी का हेल्थ बजट हो जाए तो काफी हद तक स्थिति में सुधार हो सकती है. लेकिन हेल्थ बजट का ज्यादातर हिस्सा इंस्ट्रूमेंट, मेडिकल इक्विपमेंट और इंफ्रास्ट्रक्चर में ही खर्च हो जाता है. मैन पावर को नजरअंदाज किया जाता है. डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ एवं पैरामेडिकल स्टाफ की कमी को पूरा करने का प्रयास नहीं किया जाता है. केवल इंफ्रास्ट्रक्चर से ही अस्पताल नहीं चल सकता और देश की स्वास्थ्य व्यवस्था अच्छी नहीं हो सकती है. इसके लिए पर्याप्त संख्या में डॉक्टर की संख्या भी होनी जरूरी है.

health budget 2022
हॉस्पीटल में डॉक्टरों की संख्या में कमी

उडुपा कमेटी का गठन

डॉ अजय गंभीर के अनुसार, 1975 में 2000 तक हेल्थ फॉर ऑल उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उडुपा कमेटी का गठन किया गया था. लेकिन सरकारों ने इस कमेटी की सिफारिशों को लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया, जिसका नतीजा है कि हेल्थ बजट कभी नहीं बढ़ पाया. उन्होंने बताया कि देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए मौजूदा समय में जीडीपी का कम से कम पांच परसेंट किया जाना चाहिए.
एम्स के कार्डियो रेडियो डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर अमरिंदर सिंह मल्ही बताते हैं कि 2013-14 में हेल्थ बजट जीडीपी का 1.15 प्रतिशत था जिसे 2017-18 में बढ़ाकर 1.35 तक बढ़ा दिया गया. अमेरिका, फ्रांस, इटली, स्वीटजरलैंड एवं जापान जैसे विकसित देशों में जीडीपी का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा हेल्थ बजट पर खर्च किया जाता है. अमेरिका में लगभग 15 परसेंटेज हेल्थ बजट के लिए एलोकेट किया जाता है. शायद इसलिए वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत अच्छी है.

health budget 2022
ग्रामीण इलाके की स्वास्थ्य व्यवस्था

हेल्थ बजट 5 से 6 परसेंट होना चाहिए

डॉ. अमरिंदर बताते हैं कि हमारे देश में आबादी को देखते हुए हेल्थ बजट कम से कम 5 से 6 परसेंट होना चाहिए. ताकि पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया जा सके. कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य व्यवस्था की जो हालत देखने को मिली अगर भविष्य में ऐसा कुछ होता है तो हम उस से प्रभावी तरीके से निपट पाएंगे. इसके अलावा डॉक्टर्स की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन के गाइडलाइन के मुताबिक प्रति एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर की सुविधा होनी चाहिए, लेकिन हमारे देश में लगभग 1500 लोगों पर एक डॉक्टर की सुविधा है.
एनडीएमसी के पूर्व सीएमओ डॉ. अनिल बंसल बताते हैं कि देश की आजादी के बाद से लेकर अब तक जीडीपी का केवल एक परसेंट हिस्सा ही हेल्थ बजट पर खर्च होता रहा है. यानी कि पिछले 70 – 75 वर्षों में हेल्थ बजट नहीं बढ़ा. जबकि आबादी के लिहाज से हम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के गाइडलाइन के मुताबिक किसी भी विकासशील देश का हेल्थ बजट उसके जीडीपी का कम से कम 10% हिस्सा होना चाहिए. विकसित देशों का हेल्थ बजट जीडीपी का 15% से ऊपर होनी चाहिए. अमेरिका इंग्लैंड और जापान जैसे विकसित देशों का हेल्थ बजट 15 से 17% के बीच है. इसीलिए वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी अच्छी है. कम हेल्थ बजट होने से अस्पातालों में सुविधाएं नहीं है. इलाज के लिए लोग या तो निजी असप्तालों में महंगे इलाज के लिए जाने के लिये मजबूर होते हैं या झोलाछाप के चंगुल में फंसकर अपनी जान को जोखिम में डालने को विवश होते हैं.

health budget 2022
कोरोनाकाल में हेल्थ बजट पर उम्मीदें


फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रोहन कृष्णन बताते हैं कि देश की आबादी को देखते हुए हेल्थ बजट जीडीपी का कम से कम छह परसेंट होना चाहिए. हालांकि यह भी कम है, लेकिन यह इतना पर्याप्त है कि इससे सभी लोगों का मुफ्त इलाज किया जा सकता है और हेल्थ इंश्योरेंस की सुविधा दी जा सकती है. हेल्थ बजट अधिक होगा तो इनोवेशन, टेक्निक और रिसर्च पर भी अधिक खर्च किया जा सकेगा, जिससे क्वालिटी वाली रिसर्च होने से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत के हेल्थ सिस्टम की भी चर्चा होगी.

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