किस्सा यूपी के सियासी दंबगों की, जिन्होंने जीते निर्दलीय चुनाव

उत्तर प्रदेश की सियासत में राजा-रजवाड़ों की भूमिका जगजाहिर है. इनमें से कुछ की छवि आज दबंग राजनेता की है. अपने सियासी रौब और अडिग रवैए के कारण प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा सीट से पिछले 29 सालों से रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया चुनाव जीतते चले आ रहे हैं. वहीं, क्षेत्र में इनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि उनकी सीट पर कभी पार्टी फैक्टर ही नहीं रहा. यही कारण है कि ये नेता कई बार निर्दलीय चुनाव लड़े और विजयी हुए. इसी तरह एक और बाहुबली अतीक अहमद जो पांच बार विधायक रहा, लेकिन आज जेल की सलाखों के पीछे है. वहीं, सुशील सिंह और विजय मिश्रा भी अपने दमखम पर राजनीति में अपनी धमक बनाए हुए हैं.

कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह ऊर्फ राजा भैया के दादा राजा बजरंग बहादुर सिंह, पंत नगर कृषि विश्वविद्यालय के उपकुलपति (वाइसचांसलर) थे. बाद में वो हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बने. राजा भैया के पिता राजा उदय प्रताप सिंह विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मानद पदाधिकारी रह चुके हैं. खुद राजा भैया विधि स्नातक हैं. वहीं, आज पूर्वांचल की सियासत में उनकी अच्छी खासी दखलंदाजी हैं.

किस्सा यूपी के सियासी दंबगों की

किस्सा यूपी के सियासी दंबगों की

पहली बार राजा भैया साल 1993 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कुंडा विधानसभा से जीत दर्ज किए. फिलहाल तक वो 6 बार विधायक बन चुके हैं. यह 1993 और 1996 का विधानसभा चुनाव भाजपा समर्थित, 2002 और 2007, 2012 का चुनाव सपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते और सूबे की दो सरकारों में वो मंत्री भी बने.

बात अगर पूर्वांचल के ही एक और बाहुबली विधायक अतीक अहमद की करे तो 1989 में यह इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से विधायक बने। इसके बाद 1991, 1993,1996 और 2002 में विधायक निर्वाचित हुए. तीन बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते. फिर 1996 में सपा और 2002 में अपना दल से चुनाव जीते. अतीक फूलपुर से सांसद रह चुके हैं.

फिलहाल योगी आदित्यनाथ सरकार में उनके खिलाफ दर्ज मामलों में कार्रवाई चल रही है और सरकार ने अब तक उनकी करीब 355 करोड़ की संपत्ति जब्त कर ली है. हालांकि, अबकी औवेसी ने उन्हें प्रयागराज से टिकट देने की घोषणा की है. इनके पिता फिरोज इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर तांगा चलाते थे. पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक अतीक अहमद पर करीब 80 मामले दर्ज हैं.

एमएलसी बृजेश सिंह के भतीजे और दो बार एमएलसी रहे उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह के पुत्र सुशील सिंह ने 2002 में बसपा के टिकट पर धानापुर विधानसभा सीट से अपने सियासी सफर की शुरुआत की थी, लेकिन पांच साल बाद 2007 में चंदौली की धानापुर विधानसभा से निर्वाचित हुए. उस दौरान दाखिल शपथ पत्र के अनुसार सुशील सिंह के खिलाफ 14 मुकदमे दर्ज थे. 2017 के मोदी लहर में सुशील सैयदराजा विधानसभा से दोबारा विधायक बने. तब उनके शपथ पत्र के अनुसार नई दिल्ली, भदोही, चंदौली और वाराणसी जिले में पांच मुकदमे दर्ज रहे.

किस्सा यूपी के सियासी दंबगों की

किस्सा यूपी के सियासी दंबगों की

विजय मिश्र पूर्वांचल के दिग्गज राजनेता रहे पंडित कमलापति त्रिपाठी के शिष्य रहे हैं. बाद में वो सपा से जुड़ गए. सपा के टिकट पर तीन बार विधायक बने . 2017 में विजय को बाहुबली मानते हुए अखिलेश ने उनका टिकट काट दिया. इसके बाद वो निषाद पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते. मायावती सरकार में नंद कुमार नंदी पर हुए जानलेवा हमले में सबसे पहले विजय मिश्रा का नाम सामने आया था. जेल में रहते हुए सपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीतें थे.

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