
आचार्य चाणक्य के नीति सूत्र में विभिन्न श्लोक के साथ-साथ उनके अर्थ भी वर्णित है। जिसमें मानव जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्व बातें वर्णित हैं। आज हम आपको चाणक्य के ऐसे ही श्लोक के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसमें मानव जीवन के लिए विभिन्न प्रकार की सीख शामिल हैं। तो आइए जानें चाणक्य नीति के ये श्लोक व उनके भावार्थ।
चाणक्य नीति श्लोक-
नास्त्यपिशाचमैश्वर्यम्।
भावार्थ: राजा के पास जब विपुल ऐश्वर्य आता है तब उसके मन में भोग-विलास तथा अहंकार की भावनाएं पनपने लगती हैं। वह धर्म-अधर्म का ध्यान नहीं रख पाता और दुष्कृत्यों में लिप्त हो जाता है। अत: ऐश्वर्य आने पर राजा को इन पाप कर्मों से बचना चाहिए।
चाणक्य नीति श्लोक-
गुणैरुत्तमतां यान्ति नोच्चैरासनसंस्थितैः।
प्रसादशिखरस्थोऽपि किं काको गरुडायते ॥
भावार्थ :गुणों से ही मनुष्य बड़ा बनता है, न कि किसी ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से । राजमहल के शिखर पर बैठ जाने पर भी कौआ गरुड़ नहीं बनता।
चाणक्य नीति श्लोक-
धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्वते।
अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम्॥
भावार्थ: धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष में से जिस व्यक्ति को एक भी नहीं पाता, उसका जीवन बकरी के गले के स्थन के समान व्यर्थ है।
चाणक्य नीति श्लोक-
गतं शोको न कर्तव्यं भविष्यं नैव चिन्तयेत्।
वर्तमानेन कालेन प्रवर्तन्ते विचक्षणाः॥
भावार्थ: बीती बात पर दुःख नहीं करना चाहिए। भविष्य के विषय में भी नहीं सोचना चाहिए । बुद्धिमान लोग वर्तमान समय के अनुसार ही चलते हैै।
चाणक्य नीति श्लोक-
यस्य स्नेहो भयं तस्य स्नेहो दुःखस्य भाजनम्।
स्नेहमूलानि दुःखानि तानि त्यक्तवा वसेत्सुखम्॥
भावार्थ: जिसे किसी के प्रति प्रेम होता है उसे उसी से भय भी होता है, प्रीति दुःखो का आधार है। स्नेह ही सारे दुःखो का मूल है, अतः स्नेह- बन्धनों को तोड़कर सुखपूर्वक रहना चाहिए।