लोकसभा : महागठबंधन में फूट से झारखंड में भाजपा को फायदा

जातियों पर भरोसा: चतरा में माय फैक्टर, पलामू में त्रिकोणीय मुकाबला, लोहरदगा में हैट्रिक का मौका

यहां 29 अप्रैल को मतदान है झारखंड के चतरा, पलामू, लोहरदगा में कभी हवा भी बारूदी हुआ करती थी। नक्सलियों के वर्चस्व वाले ये इलाके आज शांत हैं। भय जरूर भागा है, पर भूख नहीं। भूख ही है, जिसकी वजह से यहां पलायन सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। यहां नौकरियों के बहुत सीमित अवसर हैं। विकास का स्पीडोमीटर इसी से देख सकते हैं- उत्तर कोयल नदी पर 1970 में मंडल डैम का निर्माण शुरू हुआ था। अकाल और सूखे से निजात दिलाने के लिए शुरू हुए इस डैम का शिलान्यास 49 साल बाद प्रधानमंत्री मोदी ने किया है। ।

सबसे बड़े मुद्दे के बाद बात करते हैं- चेहरों की। भाजपा ने इन सभी क्षेत्रों में अपने मौजूदा सांसदों पर ही भरोसा जताया है। झारखंड बनने के बाद भी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का यहां माय समीकरण (मुस्लिम+यादव) के आधार पर दबदबा रहा है।

लेकिन ऐन चुनाव के पहले राजद के कद्दावर नेताओं- अन्नपूर्णा देवी, गिरिनाथ सिंह और जनार्दन पासवान को अपने पाले में खींच भाजपा ने राजद को करारा झटका दिया। चतरा में महागठबंधन दरक चुका है। यहां राजद से सुभाष यादव मैदान में हैं तो कांग्रेस ने अपने विधायक मनोज यादव को उतारा है। लंबी जद्दोजहद के बाद भाजपा ने सांसद सुनील सिंह को फिर मौका दिया है। यहां कांग्रेस को अंतिम जीत 1984 में मिली थी।

कांग्रेस की नजर स्वजातीय वोटों, दलित-आदिवासी और मुसलमानों पर है तो राजद को अपने पारंपरिक समर्थकों पर गुमान है। क्षेत्र में दो लाख आदिवासी वोटर हैं। यहां यादव व मुस्लिम वोटों का बिखराव हुआ तो भाजपा की राह आसान होगी। झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर पिछला चुनाव लड़ने वाली 1 लाख से अधिक वोट हासिल करने वाली नीलम देवी भाजपा में शामिल हो चुकीं हैं। वे टिकट की दावेदार थीं।

उनका रुख भी इस चुनाव में थोड़ा बहुत मायने रखेगा। भाजपा को यह सीट बचाने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। पलामू में भाजपा के विष्णु दयाल राम फिर मैदान में हैं। पिछला चुनाव उन्होंने बड़े अंतर से जीता था। महागठबंधन के तहत यह सीट राजद के कोटे में गई है, यहां प्रत्याशी घूरन राम हैं। चतरा में महागठबंधन दरकने के बावजूद पलामू में घटक दलों के बीच रिश्ता तल्ख नहीं हुआ है। जमशेदपुर से आकर बसपा के दुलाल भुईयां अपनी पत्नी अंजना भुइयां के पक्ष में मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं। यहां भुइयां वोट ठीक-ठाक हैं। भाजपा के लोग अपने प्रत्याशी विष्णु दयाल राम पर संगठन से दूर रहने, सहजता से उपलब्ध न होने का आरोप लोग जरूर लगाते हैं पर प्रत्याशी से अधिक नमो का ही नाम लेते हैं।

चतरा के पूर्व निर्दलीय सांसद इंदर सिंह नामधारी कहते हैं इस बार चुनाव मुद्दों पर नहीं हो रहा है। एक तरफ उन्माद और जज्बात है और दूसरी ओर जातीय गणित। क्षेत्र का इतिहास बताता है कि त्रिकोणीय लड़ाई में जब-जब भाजपा के सामने ‘भुईयां’ और ‘राम’ होते हैं, उनमें जातीय आधार पर मतों का विभाजन होता है, शहरी और अन्य वोटों के बूते भाजपा फायदे में रहती है।

लोहरदगा में दो भगतों के बीच ही मुख्य मुकाबला होगा। भाजपा के सुदर्शन और कांग्रेस के सुखदेव भगत के बीच। सुदर्शन केंद्रीय मंत्री हैं। इस बार हैट्रिक लगाने के इरादे से मैदान में हैं। पिछला चुनाव वे महज साढ़े छह हजार वोट से जीते थे। जिस गुमला विधानसभा क्षेत्र में उनका घर पड़ता है, वहीं पिछड़ गए थे। इन संसदीय क्षेत्रों में आने वाले जिले लोहरदगा, लातेहार और गुमला में राज्य सरकार की नौकरियों में ओबीसी कोटा शून्य होना भी नाराजगी का बड़ा कारण है। नाराजगी वोटों में तब्दील हुई तो भाजपा को परेशानी में डालेगी।

सबसे असरदार मुद्दे

पलायन : पलामू देश के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार है। बड़े पैमाने पर नौकरी के लिए पलायन होता है। स्कूल-कॉलेज तक की कमी है। तीनों सीटों पर विकास का मुद्दा है।
रेल लाइन : चतरा को रेल लाइन से जोड़ना मुद्दा है। इतना ही नहीं, लोहरदगा से गुमला होते हुए छत्तीसगढ़ के कोरबा तक की रेल लाइन की भी बरसों से मांग है।
गठबंधन : कांग्रेस और राजद साथ हैं, लेकिन चतरा में दोनों ने ही अपने-अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं। भाजपा तीनों सीटों पर अकेले लड़ रही है।
2014 की स्थिति : तीनों सीटें भाजपा ने जीती थीं।

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