इंदौर:कोरोना महामारी में मालवा और निमाड़ के करीब 11 हजार गंभीर मरीजों की सांंसें इंदौर की व्यवस्था पर निर्भर होकर रह गई हैं। इनमें इंदौर और उज्जैन संभाग के 15 जिलों के मरीज शामिल हैं। आक्सीजन हो या रेमडेसिविर इंजेक्शन या फिर अस्पतालों में बेड की जरूरत, सभी के लिए इंदौर केंद्रबिंदु बना हुआ है। इसीलिए इंदौर इस समय दोहरे बोझ से लदा हुआ है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दो संभागों के 15 जिलों के 159 अस्पतालों में 9 हजार से अधिक मरीज भर्ती हैं, जबकि अनुमान है कि करीब 2000 मरीज ऐसे हैं जिनको अस्पताल की जरूरत है, लेकिन जगह नहीं मिल पा रही है। जिनको अस्पताल में जगह मिली हुई है उनके लिए भी आक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन का बड़ा संकट है।मालवा और निमाड़ के अस्पतालों में हर दिन करीब 200 टन आक्सीजन चाहिए। शासन-प्रशासन द्वारा एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बाद भी जरूरत की आक्सीजन नहीं मिल पा रही है। इंदौर में स्थित आक्सीजन प्लांटों से इंदौर संभाग के इंदौर, धार, खरगोन, खंडवा, बड़वानी, झाबुआ, बुरहानपुर सहित आठ जिलों के अलावा उज्जैन संभाग के उज्जैन, देवास, शाजापुर, मंदसौर, रतलाम तक आक्सीजन भेजी जा रही है
उधर, राजस्थान की सीमा से लगे नीमच, मंदसौर और रतलाम के अस्पतालों को राजस्थान के कोटा और उदयपुर से भी आक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है। इसके बाद भी अधिकारी कह रहे हैं कि आक्सीजन के मामले में रोज कुआं खोदकर पानी पीने जैसे हालात हैं। इससे समझा जा सकता है कि आक्सीजन अब भी बड़ा संकट है, जिस पर सरकार और प्रशासन लगातार सतर्कता रख रहे हैं।लिक्विड आक्सीजन खत्म होने से रात में बंद हुआ प्लांट:इंदौर के आक्सीजन सिलिंडर प्लांट गुजरात और छत्तीसगढ़ आने वाली लिक्विड आक्सीजन से चल रहे हैं। शुक्रवार की रात इंदौर के बीआरजे कार्पोरेशन के प्लांट पर लिक्विड आक्सीजन खत्म होने से प्लांट बंद करना पड़ा। सुबह जब भिलाई से आक्सीजन का टैंकर आया, तब जाकर प्लांट में सिलिंडर भरने का काम शुरू हो पाया। प्रशासन के अधिकारी भिलाई से आने वाले टैंकर का रातभर इंतजार करते रहे और लगातार टैंकर संचालक कंपनी के संपर्क में रहे। टैंकर जल्दी आए और रास्ते में कोई रुकावट न आए, इसके लिए रास्ते में पड़ने वाले जिलों के प्रशासन से भी लगातार समन्वय बनाए रखा
रेमडेसिविर के बिना चुनौतीभरा रहेगा एक सप्ताह:रेमडेसिविर की आपूर्ति बहुत कम मात्रा में होना प्रशासन के लिए चिंता का विषय है। इसकी कमी के बीच एक सप्ताह बहुत चुनौतीभरा रहने वाला है। रेमडेसिविर एक पेंटेंट ड्रग है और देश की पांच-छह चुनिंदा दवा कंपनियां ही इसे बनाती हैं। इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने बताया कि देश में जनवरी-फरवरी में कोरोना संक्रमण बहुत कम होने से इन कंपनियों ने भी अपना प्रोडक्शन कम कर दिया था। 15 मार्च के बाद अचानक संक्रमण बढ़ने से महाराष्ट्र, गुजरात सहित देशभर में रेमडेसिविर की मांग बढ़ गई।मांग को देखते हुए कंपनियों ने फिर प्रोडक्शन शुरू किया है। लेकिन रेमडेसिविर का प्रोटोकाल है कि इसे 18 से 20 दिन क्वालिटी ट्रायल के लिए इन्क्यूबेशन में रखना पड़ता है। इसके बाद ही इसकी पैकेजिंग होकर उपलब्ध होती है। कंपनियों के नए निर्माण की खेप 22 से 25 अप्रैल तक आने की संभावना है। तब बाजार में इतनी किल्लत नहीं होगी। मरीजों को यह आसानी से उपलब्ध होने लगेगी।