नई दिल्ली |
कोरोना टीकों की कमी के बाद इनकी मांग को लेकर चहुं ओर से हल्ला मचने और राजनीतिक दलों की घेराबंदी के दबाव के सामने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी झुक गए हैं। नए टीकों को मंजूरी देने से पहले कड़े ट्रायल नियम को ताक पर रखकर उन्होंने विदेशी टीकों के लिए देश के दरवाजे पूरी तरह खोल दिए हैं। इतना ही नहीं, मोदी सरकार ने केवल 100 भारतीयों पर ट्रायल करने के बाद विदेशी टीकों को एक सप्ताह में मंजूरी देने की भी सहमति दे दी है। परंतु न तो फाइजर और न ही मॉडर्ना के जल्द भारत आने की संभावना है।
सरकार की कड़ी शर्तों से निराश फाइजर ने अपना आवेदन वापस ले लिया था जबकि मॉडर्ना ने तो अर्जी भी नहीं लगाई थी। जॉनसन एंड जॉनसन के भी भारत आने में समय लग सकता है। जानकारों का कहना है कि रूस के स्पूतनिक-वी टीके को छोड़कर कोई और अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड निकट भविष्य में भारत आने वाला नहीं है। इसका कारण यह है कि इन कंपनियों ने करोड़ों डॉलर एडवांस में देने वाले देशों को अपने टीके देने का वादा पहले पूरा करना है।
रूस स्पूतनिक-वी टीके की एक खुराक 10 डॉलर (2 खुराकें 20 डॉलर) में बेच रहा है जबकि फाइजर टीके की एक खुराक 1,300 रुपए में आती है। मॉडर्ना एक खुराक के लिए 18 डॉलर जबकि जॉनसन एंड जॉनसन एक खुराक की कीमत 850 रुपए मांग रहा है। जब देश के लिए खरीदारी की बात हो तो मोदी बहुत कड़ी सौदेबाजी करते हैं। यहां तक कि स्पूतनिक अपनी खुराक की कीमत कम करने में कठिनाई महसूस कर रहा है। वह इस समय एक खुराक 750 रुपए में दे रहा है और उसने 60 देशों को इसी कीमत पर टीके सप्लाई किए हैं।
स्वदेशी टीका उत्पादकों की बात करें तो सीरम इंडिया अपने कोविशील्ड की कीमत 150 रुपए प्रति खुराक से बढ़ाने की गुहार लगा रहा है जबकि भारत बायोटैक की कोवैक्सीन की कीमत 210 रुपए प्रति खुराक है। हालांकि स्पूतनिक-वी को भारत में मंजूरी मिल गई है परंतु रूसी अधिकारी टीके की कीमत कम करने को तैयार नहीं दिख रहे जबकि मोदी उन्हें प्रति टीके के 200 से 250 रुपए से ज्यादा देने को राजी नहीं हैं। यह सौदेबाजी कहां जाकर रुकेगी, अभी कहा नहीं जा सकता। पूरी दुनिया इस मोलतोल की जंग को उत्सुकता से देख रही है। पूरा मामला फंसा हुआ है।