उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा विकास दुबे के पांच सहयोगियों की हत्या की सीबीआई जांच की मांग को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी। आपको बता दें कि सभी पांचों आरोपियों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था।
इस याचिका में विकास दुबे के मारे जाने से पहले उसको कथित एनकाउंटर में ढेर किए जाने की संभावना भी व्यक्त की गई थी। याचिकाकर्ता घनश्याम उपाध्याय ने याचिका दाखिल करके दुबे को पर्याप्त सुरक्षा दिए जाने की मांग की थी। याचिका में कहा गया कि मुठभेड़ के नाम पर पुलिस द्वारा आरोपियों को मारना कानून के शासन के खिलाफ है और यह मानव अधिकार का गंभीर उल्लंघन है और यह देश के तालिबानीकरण से कम नहीं है।
दुबे को यूपी पुलिस ने शुक्रवार सुबह कानपुर के पास एक मुठभेड़ में मार गिराया। जब यह एनकाउंटर हुआ तब उत्तर प्रदेश पुलिस गैंगस्टर को मध्य प्रदेश के उज्जैन से लेकर आ रही थी, जहां उसे गुरुवार को गिरफ्तार किया गया था।
पुलिस ने बताया कि पुलिस काफिले में जिस कार में दुबे बैठा था वह वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। उन्होंने बताया कि दुबे की कार पलट जाने के बाद उसने भागने की कोशिश की और एक खेत में घुस गया। पुलिस ने दुबे का पीछा किया और उसे सरेंडर करने के लिए लेकिन जब उसने ऐसा नहीं किया तो उसे एनकाउंटर में ढेर कर दिया। विकास दुबे पर कानपुर के पास बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करने का आरोप था।
पुलिस ने दुबे के प्रमुख सहयोगियों को उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में अलग-अलग मुठभेड़ों में मार गिराया। जबकि 3 जुलाई को – जिस दिन आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे – उसके दो साथी, प्रेम प्रकाश पांडे और अतुल दुबे को एक मुठभेड़ में मारे गए थे। 8 जुलाई को पुलिस ने एक अन्य सहयोगी अमर दुबे को मार गिराया, जिस पर 50 हजार रुपये का ईनाम था।
9 जुलाई को कानपुर कांड में गैंगस्टर विकास दुबे के दो और साथी कानपुर और इटावा जिलों में अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गए। कानपुर में प्रभात मिश्रा को पुलिस ने मार गिराया जब उसने पुलिस हिरासत से भागने की कोशिश की और विकास दुबे के एक अन्य सहयोगी, प्रवीण उर्फ बाउवा दुबे को इटावा में एक मुठभेड़ में गोली मार दी गई। मिश्रा को बुधवार को फरीदाबाद से गिरफ्तार किया गया था।