कानपुर का हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का नेटवर्क कुछ अलग है। वह कानपुर और लखनऊ के आस-पास के जिलों के कई छोटे-बड़े पुलिसकर्मियों और नेताओं के सम्पर्क में रहता था। बसपा सरकार में उसके कई नेताओं से सम्बन्ध थे तो सपा सरकार में उसने स्थानी सपाईयों का साथ लेकर पत्नी रिचा को जिला पंचायत सदस्य बनवा लिया था। इसी नेटवर्क की बदौल वह जेल के अंदर रहते हुए प्रधानी का चुनाव जीत गया था।
वर्ष 2016 में वह सपा के कई नेताओं के करीब आ गया था। इस दौरान उसने इन्द्रलोक कालोनी में अपने घर की साज सज्जा भी करवायी। एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक वर्ष 2017 में जब कानपुर में पुलिस उसे सरगर्मी से ढूढ़ रही थी तो वह अपने नेटवर्क का फायदा उठाकर लखनऊ में छिपा रहा था। इन्द्रलोक कालोनी वाले घर में वह रात को पहुंचता था। दिनभर वह लखनऊ में परिचितों के घूमता था। लखनऊ में विकास दुबे को कोई ज्यादा पहचानता नहीं था। अपने मोहल्ले में वह लोगों के सम्पर्क में ज्यादा नहीं रहता था।
थानों में उसके मुखबिरों का जाल फैला था
कानपुर के एक पुलिस अधिकारी कहते हैं कि वर्ष 1993 में लूट के एक मामले में जेल जाने के बाद से वह अपराध के दलदल में समाता चला गया। इस दौरान उसके सम्पर्क में स्थानीय नेता और सिपाही-दीवान आने लगे थे। 27 साल में चौबेपुर में ही उसके खिलाफ 60 मुकदमे दर्ज हुए। यहीं उसकी हिस्ट्रीशीट भी खुली। इसके बाद वह कई पुलिसकर्मियों के बीच अपनी पैठ बनाने लगा था। उसके किसी बड़े अफसरों से ज्यादा सम्बन्ध नहीं थे, लेकिन सिपाही-दरोगा के बीच उठना-बैठना था। इनकी शह पर ही वह इलाके में दबदबा बनाये हुए था। इनकी बदौलत ही वह लोगों को धमकी भी देता था।
बसपा कार्यकाल में एक भी एफआईआर नहीं
वर्ष 2007 से वर्ष 2012 के बीच चौबेपुर थाने में हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के खिलाफ एक भी एफआईआर नहीं दर्ज हुई। सूत्रों का कहना है कि इस दौरान उसने कई लोगों को धमकाया। मारपीट की। रंगदारी भी खूब वसूली। पर एफआईआर लिखाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई या पुलिस ने दबाव में एफआईआर लिखी नहीं। इस दौरान प्रदेश में बसपा सरकार थी।
नेटवर्क से ही पुलिस के पहुंचने की सूचना मिली
अफसरों के बीच ही यह चर्चा है कि अपने नेटवर्क के बूते ही उसे पुलिस के पहुंचने की खबर मिल गई थी। यही वजह रही कि वह पहले ही सतर्क हो गया और अपने साथियों के साथ पुलिस पर भारी पड़ गया।