मध्यप्रदेश स्टेट प्रेस क्लब के द्वारा आयोजित तीन दिवसीय भारतीय पत्रकारिता महोत्सव के अंतर्गत आयोजित सांध्यकालीन सांस्कृतिक गतिविधियों में प्रथम दिवस शुभारम्भ एक यादगार कवि सम्मेलन और मुशायरे के साथ हुआ। पहली प्रस्तुति बरेली से पधारे ख्यातनाम शायर शारिक कैफी की रहा जिसमें उन्होंने पढ़ा।
हमे पता है पर्चा बुरा नहीं आया
मगर तुम्हारा पढ़ाया हुआ नही आया
खुद को इतना दुनियादार नहीं कर सकते
आधे दिल से पूरा प्यार नहीं कर सकते
मौत ने सारी रात हमारी नब्ज टटोली
मरने का ऐसा माहौल बनाया हमने
शायर शारिक कैफी को श्रोताओं की भरपूर दाद मिलने के बाद मंच से देश विदेश की ख्यात शायरा शबीना अदीब रूबरू हुईं जिन्होंने पढ़ा।
जो रईस होते हैं खानदानी मिजाज रखते हैं नर्म अपना
तुम्हारा लहजा बता रहा है तुम्हारी दौलत नई नई है
इनके बाद अपने ही मजाकिया अंदाज के लिए पहचाने जाने वाले मशहूर शायर डॉ पॉपुलर मेरठी आए। जिन्होंने चुटीले अंदाज में श्रोताओं को गुदगुदाया उन्होंने पढ़ा
अजब नहीं है जो तुक्का भी तीर हो जाये
फटे जो दूध तो फिर वो पनीर हो जाये
मवालियों को न देखा करो हिकारत से
न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाये
एक बीवी कई साले हैं, खुदा खैर करे
खाल सब खींचने वाले हैं, खुदा खैर करे
मेरा सुसराल में कोई भी तरफदार नहीं
उनके भी होठों पर ताले हैं, खुदा खैर करे
डॉ मेरठी के बाद मंच पर आए गाजियाबाद से पधारे गीत विधा के अद्भुत हस्ताक्षर डॉ विष्णु सक्सेना जिन्होंने पढा
प्यास बुझ जाए तो शबनम भी खरीद सकता हूं
जख्म मिल जाये तो मरहम खरीद सकता हूँ
ये मानता हूं के मैं दौलत नहीं कमा पाया
मगर तुम्हारा हर इक गम खरीद सकता हूं
रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा
एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं
तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया
पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं
अंत मे काव्य मंच के सर्वाधिक चर्चित नाम हिंदी गीतों के लोकप्रिय डॉ कुंवर बेचैन आए और उन्होंने पढ़ा
उसने मेरे छोटेपन की इस तरह इज्जत रखी
मैने दीवारें उठाई उसने इन पर छत रखी
क्यूं हथेली की लकीरों से हैं आगे उंगलियां
रब ने भी किस्मत से आगे आपकी मेहनत रखी
किसी भी काम को करने की चाहें पहले आती हैं
अगर बच्चे को गोदी लो तो बाहें पहले आती हैं
हर इक कोशिश का दर्जा कामयाबी से भी ऊंचा है
के मंजिल बाद में आती हैं राहें पहले आती हैं।
कार्यक्रम का संचालन शहर के संस्कृतिकर्मी और सूत्रधार विनीत शुक्ला ने किया और देर रात तक चला ये गजल और गीत का सिलसिला शहर के श्रोताओं के लिए यादगार रहा।